Tuesday, May 12, 2015

माँ

लेती नही दवाई माँ,
जोडे पाई पाई माँ।
दुःख थे पर्वत राई माँ
हारी नही लडाई माँ।

इस दुनिया में सब मैले हैं
किस दुनिया से आई माँ।
दुनिया के सब रिश्ते ठंडे
गरमा-गरम रजाई माँ।

जब भी कोई रिश्ता उधडे
करती है तुरपाई माँ
बाबूजी बस तनखा लाये
पर बरकत ले आई माँ।

बाबूजी थे छडी बेंत की
मख्खन और मलाई माँ।
बाबूजी के पांव दबाकर
सब तीरथ हो आई माँ।

नाम सभी हैं गुड से मीठे,
अम्मा, मैया, माई, माँ।
सभी साडियाँ छीज गईं पर
कभी नही कह पाई माँ।

अम्मा में से थोडी थोडी
सबने रोज चुराई माँ।
घर में चूल्हे मत बाँटों रे,
देती रही दुहाई माँ।

बाबूजी बीमार पडे जब
साथ साथ मुरझाई माँ।
रोती है लेकिन छुप छुप कर
बडे सब्र की जाई माँ।

लडते लडते सहते सहते
रह गई एक तिहाई माँ
बेटी की ससुराल रहे खुश
सब जेवर दे आई माँ।

अम्मा से घर घर लगता है
घर में घुली समाई माँ।
बेटे की कुर्सी है ऊँची
पर उसकी ऊँचाई माँ।

घर में शगुन हुए हैं माँ से
है घर की शहनाई माँ।
दर्द बडा हो या छोटा हो
याद हमेशा आई माँ।

सभी पराये हो जाते हैं
होती नही पराई माँ।

किसी अनाम कवि की यह कविता बहुत प्यारी लगी सोचा आप सबसे बाँटू इसे।