Saturday, March 28, 2009

एक वोट माँ के लिए भी !


आज के चुनावी माहौल में एक वोट माँ के लिए भी -उस माँ के लिए जिसके लिए कहा गया है -जननी जन्म भूमिस्च स्वर्गादपि गरीयसी ! और यह भी कि माता भूमिः पुत्रो अहम् पृथिव्या : ।

भारत सहित ७४ दूसरे देशों का यह संकल्प है कि आज "धरती प्रहर " ( रत्रि साढे आठ बजे और साढे नौ के बीच ) में अपना वोट दीजिये ताकि धरती तरह तरह के पर्यावरणीय आघातों ,प्रदूषणों से बची रहे और प्रकारांतर से ख़ुद हमारा अस्तित्व भी सही सलामत रहे !यह वैश्विक मतदान प्रहर -रात्रि ८.३० और ९.३० के बीच में है ! आप किसे चुनेंगें -पर्यावरणीय संघातों से विदीर्ण धरती को बचाने की मुहिम को या फिर उन कारकों को जिनसे यह धरती तबाह होने को उन्मुख है ? फैसला आपके हाथ में है !

यह सिलसिला सिडनी से वर्ष २००७ से शुरू हुआ जब २२ लाख लोगों ने अपने बिजली की स्विच को एक घंटे के लिए आफ कर दिया ! वर्ष २००८ में पाँच करोड़ लोगों ने यही काम दुहराया और अपने बिजली स्विचों को आफ किया भले ही सैन फ्रैंसिस्को का मशहूर का गोल्डन गेट ब्रिज ,रोम का कोलेजियम ,सिडनी का ऑपेरा हाउस ,टाईम्स स्क्वायर के कोकोकोला बिल्ल्बोर्ड जैसे मशहूर स्मारक भी अंधेरे से नहा गए !

यह अभियान दुनिया के एक अरब लोगों तक मतदान की अपील ले जाने को कृत संकल्प है .यह आह्वान किसी देश ,जाति ,धर्म के बंधन को तोड़कर अपने ग्रह -धरती के लिए है -धरती माँ के लिए है ! और इसकी आयोजक संस्था कुछ कम मानी जानी हस्ती नही है बल्कि वर्ल्ड वाईड फंड (WWF) है जिसकी वन्यजीवों की रक्षा के उपायों को लागू करने के अभियान में बड़ी साख रही है -अब यह पूरे धरती को ही संरक्षित करने के लिए लोगों के ध्यान को आकर्षित करने की मुहिम में जुट गयी है ! वोट फॉर अर्थ के नारे के साथ यह आज एक अरब लोगों तक अपनी अपील लेकर जा पहुँची है !
तो आज आप अपने मतदान के लिए अपने घर के बिजली के स्विचों को मतदान -स्विच बनाएं -ठीक रात्रि साढे आठ बजे स्वेच्छा से घर की बिजली गोल कर दें और एक घंटे बिना बिजली के बिताएं -यह आपका प्रतीकात्मक विरोध होगा उन स्थितियों से जिनसे धरती की आबो हवा ही नही ख़ुद धरती माँ पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं !

Thursday, March 19, 2009

माँ तेरी जय का नमन गीत पूरा हुआ !

माता तेरी जय हो संगीत बद्ध हुआ । शुरू से ही माँ , तेरा ही आशीर्वाद रहा होगा ,सराहा भी जा रहा है । वैसे यह फ़िल्म का भी हिस्सा होगा पर अब इसका स्वतंत्र विडियो भी होगा। कुछ मित्रों ने कहा है की इसमे सच्चे भारत की हर एक झलक हो । होगा , हो रहा है ।


थोड़ा सा गीत का इतिहास भी। लिखने की प्रेरणा रहमान और अन्य भारतीयों को ऑस्कर मिलने से हुयी । उसी दिन लिखा गया और इस ब्लॉग पे पोस्ट हुआ। लेकिन लिखने में एक दर्द भी शामिल था । जब तक विदेशी मान्यता न मिले हमारा कुछ सम्माननीय होता ही नहीं । वैसे रहमान और गुलज़ार जी के न जाने कितनी रचनाओं के सामने यह इनामी रचना पानी भरती हुयी ही थी ।


लेकिन जिस चीज ने दुखी किया वह 'जय हो ' था। जहाँ तक मैं समझता हूँ ' जय हो 'का 'जै कारा ' सिर्फ़ माँ के दरबार में लगता है। शिव, राम, कृष्ण , कोई पुरूष देवता भी इस जय कारे का अधिकारी नहीं होता । सिर्फ़ काली, दुर्गा ,भवानी, वैष्णोदेवी आदि मात्रि शक्तियों के लिए ही 'जै हो ' होता है । स्लम डॉग........में किसका और कैसा जिक्र है देखा ही होगा । अतः भारत माता के लिए जै कारा ही मेरा उद्देश था और ' माता जै हो' लिखा ।लिखते वक़्त भी संगीत धुन भी मन में चल रही थी । लेकिन जब मैं और मेरे संगीतकार सहयोगी विवेक अस्थाना ने संगीत पर काम शुरू किया तो हमने तै किया की इसमे सभी भारतीय वाद्य ही होंगे .

सबसे बड़ा खतरा था की ये कहीं अंग्रजी 'जय हो ' की परोडी न समझ ली जाए । अतः माता और जय हो प्रतिबिंबित करते राग दुर्गा और जैजैवंती रागों को संगीत में पिरोया हमने और भारतीय सितार, बंशी ,सारंगी आदि के साथ तबला,मृदंग, पखावज, ढोल, घटम आदि का प्रयोग किया । जो भी बन पड़ा आपके सामने है। गायक मुख्या स्वर राजेश बिसेन और सुमेधा के रहे । पुरुषों , स्त्रीयों , के साथ ही छोटे बच्चों ने भी कोरस में खुल कर हिस्सा लिया और मुग्ध आनंद से गाया । एक चार वर्षीया बच्चीकी आवाज आप अलग ही देखेंगे ।

शुरू का निवेदन मैंने जो कहा है वही इस गीत का आशय भी है उद्देश भी।
मेरे मित्र सहयोगी शैलेश भारतवासी ने इसे हिन्दयुग्म पर भी लोड किया है । उसकी भी लिंक दी जा रही है।

तो आप सब भी सुने और सुनाएँ ,आनंद लें ।
एक विशेष निवेदन की आप इसे आपस में कॉपी कर सकते हैं, बाँट सकते हैं,डाउनलोड कर सकते हैं पर किसी तरह का कोई उपयोग ,हमारी आपकी भावना को आह़त करते या किसी तरह का कामर्सियल उपयोग , कॉपीराइट का उल्लंघन होगा ।

यहाँ सुने और डाउनलोड करें ।
http://podcast.hindyugm.com/2009/03/maa-teri-jai-ho-rajkumar-singh.html


Saturday, March 7, 2009

एक माँ

ट्रेन के कोने में दुबकी सी वह
उसकी गोद में दुधमुँही बच्ची पड़ी है
न जाने कितनी निगाहें उसे घूर रही हैं,
गोद में पड़ी बच्ची बिलबिला रही है
शायद भूखी है
पर डरती है वह उन निगाहों के बीच
अपने स्तनों को बच्ची के मुँह में लगाने से
वह आँखों के किनारों से झाँकती है
अभी भी लोग उसको सवालिया निगाहों से देख रहे हैं
बच्ची अभी भी रो रही है
आखिर माँ की ममता जाग ही जाती है
वह अपने स्तनों को उसके मुँह से लगा देती है
पलटकर लोगों की आँखों में झाँकती है
इन आँखों में है एक विश्वास, ममत्व
उसे घूर रहे लोग अपनी नजरें हटा लेते हैं
अब उनमें एक माँ की नजरों का सामना
करने की हिम्मत नहीं।

कृष्ण कुमार यादव