माँ,
एक शब्द नहीं,
एक भावना है,
मानव के चरणबद्ध विकास,
उसके बढ़ते स्वरुप की अवधारणा है.
माँ,
जो भूलकर अपना अस्तित्व,
संवारती है
मनुष्य का अस्तित्व,
बड़े जतन से,
बड़े ही मन से,
गढ़ती है एक मनुष्य.
माँ,
जिसके किसी भी कृत्य के पीछे,
किसी भी कार्य के पीछे
नहीं छिपा होता स्वार्थ,
नहीं चाहती उसका कोई अर्थ,
बस लगी रहती है,
सवारने में उसे,
जो निर्मित है उसी के रक्त से,
सृजित है उसी के अंश से.
माँ,
अपने सपनों को,
अपने बच्चे के सपनों में मिला कर,
गिनती है एक-एक दिन,
देखती रहती है सपने,
अपने सपने के सच होने सपने,
उस खुशनुमा दिन के सपने,
जब सच होंगे उसके सपने,
उसके बच्चे के सपने.
फ़िर आता है एक वो भी दिन,
जब संवारते लगते हैं सपने,
महकने लगते हैं सपने.
माँ,
इस महकते सपनों के बीच भी,
सच होते सपनों के बीच भी,
रह जाती है अकेली,
रह जाती है तनहा,
क्योंकि उसका सपना,
उसका अपना,
छोड़ कर उसे सपनों की दुनिया में,
चला जाता है
कहीं दूर,
सच करने को अपने सपने.
और माँ,
माँ, अकेले ही रहकर
अपने सपनों के बीच,
दुआएं देती है,
आशीष देती है कि
सच होते रहें उसके बच्चे के सपने,
बच्चे के सपनों में मिले उसके सपने.
8 comments:
आपने एक मॉ की संवेदना एवं प्यार को खुबसूरती के साथ उकेरा है.सच में दुनिया की हरेक मॉ इस पल को जी रही हैं और शायद आगे भी जीयेंगी.क्या इसका कोई उपाय हम नई पीढ़ी के पास होगा??
ma to ma hoti hi hai..............
lekin aap ne jo ma ke sapane ke bhwishya ki bat ki hai wo kasht bhi deti hai aur ek soch bhi deti hai..............
बहुत सुंदर । माँ के जीवन का यथार्थ आपने सहज ही सरल शब्दों में कह दिया । बधाई ।
mother is the manifestation of god.
mom hai to sab kuch mast hai sab kuch aacha hai nice post
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apne bahut khub likha hai.
mere liye to maa bhagwan se bhi aage hai.
vaki bahut sunder
बेहद सुंदर और भावभीनी कविता ।
रह जाती है तनहा,
क्योंकि उसका सपना,
उसका अपना,
छोड़ कर उसे सपनों की दुनिया में,
चला जाता है
कहीं दूर,
सच करने को अपने सपने.
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बेहद सुंदर कविता।
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