Wednesday, December 24, 2008
माँ छुपा लो ना मुझे अपने ही आँचल में कहीँ
समझ सकती हूँ मैं माँ ..
वोह दिन कितना ख़ास होगा,
जब कुछ लम्हों के इंतज़ार के बाद एक कली की तरह
मैं तुम्हारे दोनो हाथों में पूरी सिमट गयी हूंगी ,
देखकर मेरी नन्ही नन्ही आँखें रोशनी की तरह
तुम्हारी आँखों में भी चमक भर गयी होगी
फिर अपनी चमकती आँखों में ख्वाब लेकर
प्यार से तुमने मेरे माथे को चूमा होगा
तब तुम्हे ख़ुद पे ही बहुत गुरूर हुआ होगा
जब मैने तुम्हे पहली बार माँ कहा होगा
नये ख्वाबों की नयी मंज़िल सामने देख
तुमने हाथ पकड़ कर मुझे चलना सिखाया होगा
मुझे बार बार गिरते देख,
तुम्हारा दिल भी दर से कंपकापाया होगा
और अपने प्यार भरे आँचल में छुपा कर
कई ज़ख़्मो से मुझे बचाया होगा
फिर धीरे धीरे चढी मैने अपनी मंज़िलों की सीढ़ियाँ
और दुनिया की भीड़ में तेरा हाथ मुझसे कहीं छूट गया
तूने फिर भी थाम कर संभालना सिखाया मुझे
अपनी सीखों से दुनियादारी की अच्छी बुरी बातें बताई मुझे
पर मैने हमेशा ही अपनी ज़िद्द से ठुकराया उसे
समझ सकती हूँ आज मैं दिल से कि
मेरी ज़िद्द के आगे तुमने अपने दिल पे पत्थर रखा होगा
पर आज मुझे यक़ीन हो चला है कि माँ तुम सही थी
और अब मैं एक बार फिर-
वापिस तुम्हारे दोनो हाथों में सिमटना चाहती हूँ
तुम्हारे प्यारे आँचल में फिर छिपना चाहती हूँ
तुम्हारे हाथों के सहारे एक बार फिर से अपने
ड़गमागते हुए कदमाओं को संभालना चाहती हूँ
माँ छुपा लो ना मुझे अपने ही आँचल में कहीँ
मेघा भाटिया ...[पुत्री रंजू भाटिया ]
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20 comments:
bahut bhavsparshi rachana,dil ko rula gayi.
meghaji kahi ranju ji ka phool to nahi agar haa to maa si khubsurat kalam payi hai badhai.
bahut sundar ..bhaavpoorn ...
ranjana ji ,aapki beti ,aapki tarah hi likh thi hai ..
bahut badhai....
vijay
bahut khoob.... jaisi samvedansheel maa vaisi samvedansheel bitiya.
पुत्री की भावभीनी गुहार मां से -हृदयस्पर्शी !
बहुत अच्छी भावपूर्ण कविता
बहुत सुंदर रचना....दिल को छू लेने वाली।
वाह जी वाह। क्या बात हैं। सच खुशी मिली कि बेटी भी अपने अनुभव और जज्बात लिखने लगी। बहुत खूब। दिल से लिखी गई रचना। कुछ भावुक भी कर गई। खैर सुन्दर लिखी है मेघा को ढेरों बधाई। God Bless you.
वापिस तुम्हारे दोनो हाथों में सिमटना चाहती हूँ
तुम्हारे प्यारे आँचल में फिर छिपना चाहती हूँ
तुम्हारे हाथों के सहारे एक बार फिर से अपने
ड़गमागते हुए कदमाओं को संभालना चाहती हूँ
" very beautiful and touching expresions, great Megha, good luck"
Regards
रचना अच्छी है, एक स्वाभाविक सोच का प्रतिनिधित्व करती हुई।
लेकिन मतभिन्नता है कि
बेटियों को माँ के आंचल में फिर से लौटना क्या प्रतिगामी नहीं है? उन्हें तो खुद अपनी बेटियों के लिए एक ममतामय, सुरक्षित आँचल का निर्माण करना है।
नये ख्वाबों की नयी मंज़िल सामने देख
तुमने हाथ पकड़ कर मुझे चलना सिखाया होगा
मुझे बार बार गिरते देख,
तुम्हारा दिल भी दर से कंपकापाया होगा
और अपने प्यार भरे आँचल में छुपा कर
कई ज़ख़्मो से मुझे बचाया होगा...
बहुत ही अच्छी लगी ये रचना पढ़ कर...
कुछ पंक्तियां अच्छी हैं।
संस्कार।
हर बेटी-बेटे में हों।
वाह ! मन गद गद हो गया.
मेघा को ढेर सारा प्यार और आशीर्वाद......बेटी से माँ और माँ से बेटी कोई किसी से कम नही...बहुत सुंदर विभोर कर देने वाली अभिव्यक्ति. उसे ऐसे ही लिखने को प्रोत्साहित कीजिये.
नये ख्वाबों की नयी मंज़िल सामने देख
तुमने हाथ पकड़ कर मुझे चलना सिखाया होगा
सुंदर कविता ।
na sirf maa ka lahu hamare andar bahta hai, uski aatma ka bhi ek ansh ham me chala aata hai..jo hamare dard me use rulata hai..hamare ek ek pal ki khabar deta hai.. maa shabd har dard ka marham hai.. bahut khoobsurat rachna..
behtareen bhaaw hain aapke, aur unse bhi sundar aapke shabd jisme aapne apne bhaawon ko piroya hai. bahut bahut badhayi aapko.
hum gujju mai ek kahawat hai ki peacock ke eggs ko paint nhai karna padta.. waise hi ranju ji itna accha likhti hai to unki beti kel iye ba aur kya kahna... bahut hi badhiya likha hai ..keep it up dear. God Bless U...
बेटी प्रतिभावान लेखक है, मेरी शुभकामनायें स्वीकार करें रंजू जी !
Kanya nhi to beti nhi
beti nhi to patni nhi
patni nhi to mata nhi
mata nhi to pariwar nhi
pariwar nhi to desh nhi........
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