Saturday, March 7, 2009

एक माँ

ट्रेन के कोने में दुबकी सी वह
उसकी गोद में दुधमुँही बच्ची पड़ी है
न जाने कितनी निगाहें उसे घूर रही हैं,
गोद में पड़ी बच्ची बिलबिला रही है
शायद भूखी है
पर डरती है वह उन निगाहों के बीच
अपने स्तनों को बच्ची के मुँह में लगाने से
वह आँखों के किनारों से झाँकती है
अभी भी लोग उसको सवालिया निगाहों से देख रहे हैं
बच्ची अभी भी रो रही है
आखिर माँ की ममता जाग ही जाती है
वह अपने स्तनों को उसके मुँह से लगा देती है
पलटकर लोगों की आँखों में झाँकती है
इन आँखों में है एक विश्वास, ममत्व
उसे घूर रहे लोग अपनी नजरें हटा लेते हैं
अब उनमें एक माँ की नजरों का सामना
करने की हिम्मत नहीं।

कृष्ण कुमार यादव

13 comments:

अनिल कान्त said...

माँ के ऊपर लिखी गयी एक सशक्त रचना
मुझे पसंद आई

राज भाटिय़ा said...

बहुत ही सुंदर.... लेकिन कोई कमीना ही ऎसे दर्श को देखे गा जिसे मां का समान करना नही आता, ओर जहां मां का रुप आ जाये वहा एक श्रद्धा जनम ले लेती है मन मै.
इस अति सुंदर कविता के लिये धन्यवाद.


आपको और आपके परिवार को होली की रंग-बिरंगी भीगी भीगी बधाई।
बुरा न मानो होली है। होली है जी होली है

रंजू भाटिया said...

इन आँखों में है एक विश्वास, ममत्व
उसे घूर रहे लोग अपनी नजरें हटा लेते हैं
अब उनमें एक माँ की नजरों का सामना
करने की हिम्मत नहीं।

बहुत सुन्दर बढ़िया ..

संगीता पुरी said...

बहुत अच्‍छी रचना ...

Asha Joglekar said...

सुंदर । माँ की महिमा ही ऐसी है .

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

शानदार और सच्ची कविता। बधाई।

Poonam Agrawal said...

Sunder bhav.....Dil se nikle dil tak pahunche

Badhai .....Saath hi Holi ki dher sari mubaarakvaad

हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World said...

कृष्ण कुमार यादव जी! माँ पर बड़ी प्यारी कविता लिखी है आपने. पढ़कर दिल गदगद हो गया. शुभकामनायें.

* મારી રચના * said...

Maa... jitna likhe utna kam hai.. ek aur bhaavpurna kavita....bahut sundar

Bhawna Kukreti said...

bahut si sundar kavita . maa ki mamata ko koi buri najar se dekh hi nahin sakta . papi bhi maa ki god ko nahin bhula sakte .is rachna ke liye badhai

पूनम श्रीवास्तव said...

ma ke oopar likhi behtareen kavita.
khaskar ye panktiyan ..bahut marmsparshee...
इन आँखों में है एक विश्वास, ममत्व
उसे घूर रहे लोग अपनी नजरें हटा लेते हैं
अब उनमें एक माँ की नजरों का सामना
करने की हिम्मत नहीं।
Poonam

Unknown said...

बहुत सुंदर रचना।

दिनेशराय द्विवेदी said...

बहुत सुंदर कविता है।