Friday, February 12, 2010

मां

माँ तो है संगीत रूप
माँ गीत रूप, माँ नृत्य रूप
माँ भक्ति रूप, माँ सक्ति रूप
माँ की वाणी है मधु स्वरूप
गति है माँ की ताल रूप
सब कर्म बने थिरकन स्वरूप
व्यक्तित्व बना माँ का अनूप
शृद्धा की है वह प्रतिरूप
माँ के हैं अनगिनत रूप .

डॉ. मीना अग्रवाल

9 comments:

संगीता पुरी said...

सचमुच मां तो मां ही है .. बहुत सुंदर रचना !!

Udan Tashtari said...

माँ के हैं अनगिनत रूप ...बिल्कुल सही!

Asha Joglekar said...

मां के ये रूप कितने सुंदर हैं ।

Pushpa Bajaj said...

माँ तू शक्ति है माँ तू भक्ति है

माँ की क्या बात कहे ?

माँ ही तो आत्म शक्ति है.

कडुवासच said...

...प्रभावशाली रचना !!

Satish Saxena said...

डॉ मीना !
आपकी इस खूबसूरत रचना के लिए आपको बधाई !

Arjun Singh Pal said...

Bahut achhi rachna hai.

हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World said...

बहुत सुन्दर कविता. इसे हम नव सृजन पर साभार प्रकाशित कर रहे हैं-
http://navsrijan.blogspot.com/2010/05/blog-post_09.html

राजेंद्र माहेश्वरी said...

माँ के हैं अनगिनत रूप .