माँ केवल माँ नही होती
वह होती है शिक्षक
रोटी बेलते बेलते केवल अक्षर और अंक ही नही
और भी बहुत कुछ पढाती है
यह करो वह नही, कहते कहते संस्कारित करती है
दंड भी देती है कई बार कठोर
हमारी हर गतिविधि पर होती है उसकी पैनी नजर
और हमारी सुरक्षा सर्वोपरि
माँ केवल माँ नही होती
वह होती है रक्षक
सिखाती है इस दुनिया में रहने और जीने के तरीके
दुनिया में हमेशा धोका समझ कर चलो
भरोसा मत करो जाने पहचाने का भी,
अनजान का तो बिलकुल भी नही
य़हाँ वहाँ अकेले बिना जरूरत न जाना
कितनी बुरी लगती थी तब उसकी यह टोका टाकी
अब पता चलता है कितनी सही थी माँ
माँ केवल माँ नही होती
वह होती है परीक्षक
उसकी सिखाई बातों को हमने कितना आत्मसात किया
यह जाने बिना उसे चैन कहाँ
हलवा बनाओ, बर्तन चमकाओ
सवाल करो,जवाब तलाशो, कविता सुनाओ
हजार चीजें ।
माँ होती है परिचारिका भी
और कभी कभी डॉक्टर
बुखार में कभी भी आँख खुले माँ हमेशा सिरहाने
माथे पर पट्टियाँ रखते हुए
छोटे मोटे बुखार, सर्दी जुकाम तो वह
अपने अद्रक वाली बर्फी या काढे से ही ठीक कर देती
तब माँ कितनी अच्छी लगती
आज जब सिर्फ उसकी याद ही बाकी है
उसकी महत्ता समझ आ रही है ।
तुम सुन रही हो न माँ ?
Thursday, November 6, 2008
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11 comments:
बहुत भावपूर्ण रचना.
माँ तो सब कुछ होती है..
ek dam satya anni khara,aai chi jagakoni nahi gheu shakat,khup sundar
मर्मस्पर्शी रचना, वाकई माँ दुनिया का सबसे पहला, और सबसे प्यारा शब्द है आशा जी!
माँ,
सिर्फ माँ होती है।
इस शब्द में
सारी दुनियाँ होती है।
माँ केवल माँ नही होती
" very true true and true....... very emotional expresisons in this poetry"
Regards
मां को मां होने के ये सारे भाव ईश्वर देता है.
Bahut khub !
माँ से बढ़ कर दुनिया में कोई और चीज नहीं .बहुत अच्छा लिखा है आपने
आप ने बहूत अच्छा और भावात्मक लिखा है
bahut sunder rachana
बहुत ही सच्ची और सुंदर रचना
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