आदरणीय शास्त्री जी,
"माँ " ब्लाग पर शामिल होने का, आप जैसे विद्वान् सम्मानित लेखक का अनुरोध टालने का प्रयत्न, मेरे जैसे व्यक्ति के लिए एक अस्वाभाविक घटना थी ! आपने कहीं न कहीं मुझे भी "नखरैल" समझा होगा जो अपनी विद्वता और लेखन पर बड़ा गर्व करते घूमते हैं ! मगर न चाहते हुए भी मैं आपका दूसरी बार का आदेश ठुकरा नही पाया !
क्यालिखूं मैं यहाँ माँ के बारे में ! यह एक ऐसा शब्द है जो मैंने कभी किसी के लिए नही बोला, मुझे अपने बचपन में ऐसा कोई चेहरा याद ही नही जिसके लिए मैं यह प्यारा सा शब्द बोलता ! अपने बचपन की यादों में उस चेहरे को ढूँढने का बहुत प्रयत्न करता हूँ मगर हमेशा असफल रहा मैं अभागा !
मुझे कुछ धुंधली यादें हैं उनकी... वही आज पहली बार लिख रहा हूँ ....जो कभी नही लिखना चाहता था !
-लोहे की करछुली (कड़छी) पर छोटी सी एक रोटी, केवल अपने इकलौते बेटे के लिए, आग पर सेकती माँ....
-बुखार में तपते, अपने बच्चे के चेचक भरे हाथ, को सहलाती हुई माँ ....
-जमीन पर लिटाकर, माँ को लाल कपड़े में लपेटते पिता की पीठ पर घूंसे मारता, बिलखता एक नन्हा मैं ...मेरी माँ को मत बांधो.....मेरी माँ को मत बांधो....एक कमज़ोर का असफल विरोध ...और वे सब ले गए मेरी माँ को ....
बस यही यादें हैं माँ की ......
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22 comments:
भाई मेरे, रुला दिया//...अभी ३ साल पहले खोया माँ को मगर आपको पढ़कर लगा कि जाने कब से खो बैठा हूँ.
विषय से संबंधिक्त (कुल मिला कर) आपने 3 वाक्य लिखे हैं. लेकिन ये 3 वाक्य 300 का काम कर गये.
मुझे एकदम अपने मां की याद आ गई. 3 साल पहले खोया. मेरे सामने ही उनका जाना हुआ. लेकिन सौभाग्य कि मैं उनके सान्निध्य का भरपूर लाभ उठा सका था क्योंकि मैं उस समय 52 साल का था.
आपके 3 वाक्यों ने उन लोगों की वेदना भी याद दिला दी जिन को मां का सान्निध्य अधिक समय नहीं मिल पाया है.
लोहे की करछुली (कड़छी) पर छोटी सी एक रोटी, केवल अपने इकलौते बेटे के लिए, आग पर सेकती माँ....
-बुखार में तपते, अपने बच्चे के चेचक भरे हाथ, को सहलाती हुई माँ ....
-जमीन पर लिटाकर, माँ को लाल कपड़े में लपेटते पिता की पीठ पर घूंसे मारता, बिलखता एक नन्हा मैं ...मेरी माँ को मत बांधो.....मेरी माँ को मत बांधो....एक कमज़ोर का असफल विरोध ...और वे सब ले गए मेरी माँ को ....
" aaj ye kya pdh liya humne, smej nahee aa rha..... kitnee peeda or dard ka ehsas se gujar gya hai maira mun..... soch nahee paa rhee kee us chote se bacche kee halat jisne bhee ye dard apnee ankhon se dekha hoga.....ankhen num or dil preshan sa ho gya hai....... aapke shabdon ne vhee rekhachitr samne kceenh kr rekh diya hai or dil deemag sub ek kruna se bhr gua hai.....or kuch nahee suj rha kya likhun kaise apnee soch ko vykt krun.."
Regards
अंतिम पाँच पंक्तियाँ अत्यधिक पीड़ादायक हैं. मैने अभी अभी एक माँ को छोटे लड्के द्वारा मुखाग्नि देते देखा था और न जाने क्या क्या भावनाएँ मन में उठीं थीं. आपके इन पाँच पंक्तियोने भी हमें झकझोर दिया.
बहुत दिल को छु लेने वाला लिखा है आपने सतीश जी ..आँखे नम हो गई ..
जमीन पर लिटाकर, माँ को लाल कपड़े में लपेटते पिता की पीठ पर घूंसे मारता, बिलखता एक नन्हा मैं ...मेरी माँ को मत बांधो.....मेरी माँ को मत बांधो....एक कमज़ोर का असफल विरोध ...और वे सब ले गए मेरी माँ को ...इन पक्तियों ने मुझे बहुत कुछ फ़िर से वह दर्दनाक पालो को याद कर दिया ...
कल रात आपके ब्लाग पर ये बातें पढकर रोई। आज दोबारा यहां रो रही हूं।
किसी टेक्नीकल गल्ती की वजह से पहली बार शास्त्रीजी के अनुरोध को मैं भी नहीं स्वीकार पायी थी। दोबारा उन्हें पत्र तो लिखा , पर अभी तक उनकी ओर से कोई उत्तर नहीं मिला है।
बेहद मार्मिक...
Some writers write to gain publicity, others try to make money out of it n some of them r like u .... who write just to speak their heart out....!! it was one of the most touching creation of yours.. it actually left me spell bound .... n left some tears in my eyes.... U r truly one of the best poets i have known.....!! God bless you always....
क्यालिखूं मैं यहाँ माँ के बारे में ! यह एक ऐसा शब्द है जो मैंने कभी किसी के लिए नही बोला,........
All those who read these lines will hold their breath for a second before going on futher.
It is very sentimental,emotional,& very touchy.
बुखार में तपते, अपने बच्चे के चेचक भरे हाथ, को सहलाती हुई माँ ....
-जमीन पर लिटाकर, माँ को लाल कपड़े में लपेटते पिता की पीठ पर घूंसे मारता, बिलखता एक नन्हा मैं ...मेरी माँ को मत बांधो.....मेरी माँ को मत बांधो....एक कमज़ोर का असफल विरोध ...और वे सब ले गए मेरी माँ को ....
बस यही यादें हैं माँ की ......
A very painful memories .I just cant imagine the pain you would have undergone while writing these three lines
Uncle
I love you so much . I have nothing else to express, more than these three words. I love you .
Naveen
aaj subah se maa ko yaad kar rhai thi. phone lagaya lekin baat na ho saki... aur dekhlo. yaha ye padhe maa ki yaad aur aane lagi...
teenage baccho ki maa hone par bhi muje aa jbhi meri maa ki kami mahesoon hoti hai... nazaro se dur hai.. par jo dil mai basi hai... uss maa se aaj baat karni hi padegi warna raat ko so na sakungi...
shukriya itna accha post hame padhne ko mila
सतीश जी,
ये क्या लिख दिया आपने...! आपके शब्दो में ढले उस मासूम के आँसू अब कितनी आँखों में तिर आये हैं...! मैं तो निःशब्द हूँ :(
भाई सचमुच आपने एक ऐसा दर्द भरा अहसास दे दिया.....सचमुच दर्द से भर गया दिल....
सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी जी !
यह मेरे अपने जीवन की वास्तविकता और मेरी अपने यादें हैं ! मेरी माँ मुझे ढाई वर्ष की अवस्था में छोड़ गयीं थीं !
I have no word to express my feelings on this .
यहाँ माँ के बारे में !
बेहद मार्मिक...!!!!!!!!!!!!!!!!!!
Uncle !
You are a Banyan Tree. we are yet to bud on it uncle.So my conscience does not allow to comment on your creativity which is your god gifted..........
So mai apne aap ko layak hi nahi samajti to give comment either on your articles or on geet.We all know you write great !
Now apne Maa par likhe gaye par kya bolun, It is very sad to read those lines :(
Life ko Lite Lena Uncle :)
Love you
Bini
Only tears...., I have no word to write.
सतीश जी,
आपकी मर्मस्पर्शी कविता पढ़्कर मुझे भी अपनी माँ याद आ गई.मुझे लगा जैसे मेरी माँ की ही बात है. मात्र सात साल की उम्र में माँ छोड़कर गंगोत्री-यमुनोत्री की तीर्थयात्रा को गई थी,फिर कभी लौटकर नहीं आई. बस एक महीने बाद माँ की मृत्यु की सूचना ही आई आजतक भी माँ की वो धुँधली-धुँधली यादें मन में बसी हुई हैं.जाते समय माँ जो मेवा का छोटा-सा डिब्बा दे गई थी, वह आज भी मेरे पास है,जो माँ की छुअन का एहसास दिलाता है.आज मेरी दोनों बेटियाँ भी माँ हैं, फिरभी मैं नहीं भूल पाती हूँ माँ को. अब भी आँखें सजल हो जाती हैं. छोटी ओर इतनी मार्मिक कविता के लिए शब्द ही नहीं हैं कुछ कहने के लिए
मीना अग्रवाल
भाई सतीश सक्सेनाजी ,
जीवन में माँ-पिता की स्मृति ऐसी होती है कि हमारे मनो-मस्तिष्क में सारी जिंदगी ताजी बनी रहती है. आपके सात्विक विचार आपकी हार्दिक अन्तेर्वेदना को पढने के बाद अनायास सब पाठक आपसे जुड़ गए. जाने क्यों हम कितने बड़े हो जाये पर बचपन की याद करके अनायास ही वहीँ पंहुच जाते हैं.पढ़कर यूँ महसूस हुआ कि सामने एक छोटा सा बालक ही अपनी वेदना प्रगट कर रहा है. जिसने अपने मार्मिक शब्दों से निःशब्द. कर दिया है.
अलका मधुसूदन पटेल
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