"बधाई हो! घर में लक्ष्मी आई है", कहते हुए नन्हीं सी बिटिया को दादी की गोद में देते हुए नर्स बोली। "हुँह..... क्या खाक बधाई। पहली ही बहू के पहली संतान वो भी लड़की हुई और वो भी सिजेरियन......" कहते हुए उन्होंने मुँह फेर लिया और उस नन्हीं सी जान पर स्नेह की एक बूँद भी बरसाने की जरूरत नहीं समझी प्रीती की सासू माँ ने। जल्द ही अपनी गोद हल्की करते हुए बच्ची को बढ़ा दिया अपने बेटे की गोद में। रवि को तो जैसे सारा जहाँ मिल गया अपने अंश को अपने सामने पाकर। पिछले नौ महीने कितनी कल्पनाओं के साथ एक-एक पल रोमांच के साथ बिताया था प्रीती और रवि ने। खुशी के आँसू की दो बूँदें टपक पड़ी उस नन्ही सी बिटिया पर।
कुछ दिनों के अंतराल पर अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद जब घर जाने की तैयारी हुई तो प्रीती फूली न समा रही थी। पिछले नौ महीनों से जिस घड़ी की इंतजार वह कर रही थी, आज आ ही गई। अपनी गोद भरी हुई पाकर जब प्रीति ने घर में प्रवेश किया तो मारे खुशी के उसके आँसू बहने लगे। वह इस खुशी के पल को संभालने की कोशिश करने लगी। हँसते-खेलते ग्यारह दिन कैसे बीत गये, पता ही नहीं चला। लेकिन सासू माँ का मुँह टेढ़ा ही बना रहा। प्रीति चाहती थी कि दादी का प्यार उस नन्हीं सी जान को मिले, लेकिन उसकी ऐसी किस्मत कहाँ ?
खैर, जब बारहवें दिन बरही-रस्म की बात आयी तो सासू माँ को जैसे सब कुछ सुनाने का अवसर मिल गया और इतने दिन का गुबार उन्होंने एक पल में ही निकाल लिया...... "कैसी बरही, किसकी बरही, बिटिया ही तो जन्मी है। हमारे यहाँ बिटिया के जन्म पर कोई रस्म-रिवाज नहीं होता.... कौन सी खुशी है जो मैं ढोल बजाऊँ, सबको मिठाई खिलाऊँ.... कितनी बार कहा था जाँच करा लो, लेकिन नहीं माने तुम सब। लो अब भुगतो, मुझे नहीं मनाना कोई रस्म-रिवाज......।
सासू माँ की ऐसी बात सुनकर प्रीति का दिल भर आया। रूँधे हुए गले से बोली, "सासू माँ! आज अगर यह बेटी मेरी गोद में नहीं होती तो कुछ दिन बाद आप ही मुझे बाँझ कहती और हो सकता तो अपने बेटे को दूसरी शादी के लिए भी कहती जो शायद आपको दादी बना सके, लेकिन आज इसी लड़की की वजह से मैं माँ बन सकी हूँ। यह शब्द एक लड़की के जीवन में क्या मायने रखता हैं, यह आप भी अच्छी तरह जानती हैं। आप उस बाँझ के या उस औरत के दर्द को नहीं समझ सकेंगी, जिसका बच्चा या बच्ची पैदा होते ही मर जाते हैं। ये तो ईश्वर की दया है सासू माँ, कि मुझे वह दिन नहीं देखना पड़ा। आपको तो खुश होना चाहिए कि आप दादी बन चुकी हैं, फिर चाहे वह एक लड़की की ही। आप तो खुद ही एक नारी हैं और लड़की के जन्म होने पर ऐसे बोल रही हैं। कम से कम आपके मुँह से ऐसे शब्द नहीं शोभा देते, सासू माँ!" इतना कहते ही इतनी देर से रोके हुए आँसुओं को और नहीं रोक सकी प्रीती।
प्रीती की बातों ने सासू माँ को नयी दृष्टि दी और उन्हें उसनी बातों का मर्म समझ में आ गया था। उन्होंने तुरन्त ही बहू प्रीती की गोद से उस नन्हीं सी बच्ची को गोद में ले लिया और अपनी सम्पूर्ण ममता उस पर न्यौछावर कर उसको आलिंगन में भर लिया।शायद उन्होंने इस सत्य को स्वीकार लिया कि लड़की भी तो ईश्वर की ही सृष्टि है। जहाँ पर नवरात्र के पर्व पर कुँवारी कन्याओं को खिलाने की लोग तमन्ना पालते हैं, जहाँ दुर्गा, लक्ष्मी, काली इत्यादि देवियों की पूजा होती है, वहाँ हम मनुष्य ये निर्धारण करने वाले कौन होते हैं कि हमें सिर्फ लड़का चाहिए, लड़की नहीं।
आकांक्षा यादव
w/o कृष्ण कुमार यादव kkyadav.y@rediffmail.com
Thursday, April 9, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
33 comments:
एक प्रभावशाली लघुकथा जो पहली ही नजर में ध्यान खींचती है. जहाँ आज लघुकथा के नाम पर कुछ भी लिख देने की प्रवृत्ति बढ़ रही है, वहाँ आकांक्षा जी की यह लघु कथा नए राह खोलती है.
इस लघुकथा को पढ़कर लगता है की हम भले ही प्रगतिशीलता का कितना भी ढोल पीट लें पर अभी भी हमारी सोच १६-१७ वीं सदी की ही है. आज भी बहुत से परिवारों में बेटी के जन्म पर बरही नहीं मनाई जाती, यह सौभाग्य सिर्फ लड़कों को मिलता है...आखिर क्यों ??....बेहतर होगा हम इस पर सोचें.किसी रचना को मात्र टिपण्णी के बाद भूल जाना सार्थक नहीं लगता, उसमें निहित भावनाओं को समाज की संवेदनाओं से जोड़ने की भी जरुरत है. वाकई आकांक्षा जी इस लघु-कथा के लिए बधाई की पात्र हैं.
महिला मुक्ति आन्दोलन का समाज पर बहुत प्रभाव है।
जन्म से पहले ही महिलाओं की मुक्ति का प्रस्ताव है।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
समाज के वास्तविक हालत को बहुत अच्छे ढंग से चित्रित किया गया है इस कहानी के माध्यम से ... बहुत अच्छा लिखा है।
shayad iss laghu kathaa ke jariye wapas betian kel iye samaaj mai nayi roshni aaye...
अब नयी पीढ़ी की महिलाओं को इस मुद्दे पर सजग होकर अपनी दकियानूसी सासू माँ लोगों का दिमाग खोलना चाहिए। पुरुष वर्ग शायद इतनी ओछी सोच को जल्दी त्याग दे। जरूरत बेटियों को जागरूक बनाने की ही है।
समाज की विसंगतियों पर आकांक्षा यादव जी की लेखनी सक्रिय है. इतनी सहज भाषा में आप अपनी रचनाओं को प्रस्तुत कर रही हैं कि बरबस ही उनका प्रिंट-आउट निकलकर फाइल में सुरक्षित रख लेता हूँ. इस बेहतरीन लघुकथा के लिए साधुवाद !!
कम शब्दों में आकांक्षा यादव ने बेहद सारगर्भित बात कही है, यही तो लघुकथा की जान है.आशा है की इससे समाज को भी सीख मिलेगी.
कम शब्दों में आकांक्षा यादव ने बेहद सारगर्भित बात कही है, यही तो लघुकथा की जान है.आशा है की इससे समाज को भी सीख मिलेगी.
जहाँ पर नवरात्र के पर्व पर कुँवारी कन्याओं को खिलाने की लोग तमन्ना पालते हैं, जहाँ दुर्गा, लक्ष्मी, काली इत्यादि देवियों की पूजा होती है, वहाँ हम मनुष्य ये निर्धारण करने वाले कौन होते हैं कि हमें सिर्फ लड़का चाहिए, लड़की नहीं।
__________________________________
बहुत सही बात कही है आपने...बधाई.
वाह! अद्भुत लघुकथा. दिल को छूती है.
इस लघु कहानी के लिए आकांक्षा जी की जितनी भी तारीफ की जय कम होगी. नारी के दर्द को भला नारी से ज्यादा कौन समझ सकता है. पर इसके लिए कभी-कभी नारी में ही दंद पैदा हो जाता है. कसे हुए शब्दों में बात को संजीदगी से रखती एवं समाज को राह दिखाती एक बेहतरीन कहानी...अनुपम!!
आकांक्षा यादव की यह लघुकथा नकारात्मक सोच पर चोट करते हुए एक सकारात्मक सोच को बल देती है। इस मर्मस्पर्शी लघुकथा हेतु आकांक्षा जी को बधाई.
हर एक माँ को ऐसी पहल करनी चाहिए लेकिन हमारी मांए तो खुद ही उस रूडिवादी सोच के आगे घुटने टेकती नजर आती है। फिर इस प्रगतिवादी सोच का क्या। बहुत ही संवेदनशील अभिव्यक्ति। वाह क्या बात है.......................
पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ...अच्छा लगा. आकांक्षा जी की लघुकथा बेहद प्रभावी हैं.
सच्चाईभरी कहानी है.... मां सिर्फ एक शब्द से नहीं बनता.... शुभकामनाएं
वाह, सच मे दिल कि बात कही आपने...
पहले तो मै आपका तहे दिल से शुक्रियादा करना चाहती हू कि आपको मेरी शायरी पसन्द आयी और मेरी पैन्टिग भी!
बहुत बढिया!! इसी तरह से लिखते रहिए !
मां। सिर्फ मां नहीं होती। सृष्टि रचयिता, जग जननी। उसका नाता एक परिवार से नहीं। पूरा विश्व की पालनहार है मां। मां का मर्म हम जान ही नहीं सकते । ममता का अथाह सागर। लेकिन इस कथा में सासू मां का कैरेक्टर काफी दिलचस्प है। जल्दी अहसास हो गया। अपनी गलतफहमी का। बहरहाल अच्छी कहानी थी।
एक कम्युनिटी ब्लॉग पर इतने दिनों से किसी नई पोस्ट का न आना चिन्ता का विषय है।
----------
अभिनय के उस्ताद जानवर
लो भई, अब ऊँट का क्लोन
एक कम्युनिटी ब्लॉग पर इतने दिनों तक कोईनई पोस्ट न आना चिन्ता का कारण है।
----------
TSALIIM.
-SBAI-
No words....bahut shaandaar likha aapne
बहुत अच्चा लेख है!
-प्रतिक घोष
http://kikorinakori.blogspot.com/
very good
Ek man ke dil kee bat doosari man ke liye.
nari man ke taklifo ko umda tarike se darsaya gaya hai .
Kaash har saas itnee aasaaneese baat samajh jaaye..!
Warnaa zindagee beet jaatee hai aur potekehee aas rehtee hai...usepe sneh nichhawar hota hai...
Thanks for ur inspiring comments.
बहुत सुन्दर लघु कथा...बधाई.
Post a Comment