कितनी कितनी कितनों की ही बिगडी बात बनाती अम्मा
हँसते हँसते होंठों में ही अपनी बात छुपाती अम्मा ।
मेरे तेरे इसके उसके दर्द से होती रुआँसी अम्मा,
हम खा जाते चोट तो फिर, हमको कैसे बहलाती अम्मा ।
रात काटती आँखों में जब होते हम बीमार कभी,
सुबह सवेरे पर उनमें ही सूरज नया उगाती अम्मा ।
भोर अंधेरे उठ जाती और सारे काम सम्हालती अम्मा,
रात अंधेरी जब छा जाती, लोरी खूब सुनाती अम्मा ।
अब अम्मा के हाथ थके और आँखों के सूरज बदराये,
फिर भी तो होटों पे हरदम एक मुस्कान खिलाती अम्मा ।
हम अम्मा के पास रहें या उससे दूर ही क्यूं न रहें,
वह रहती है मन में हरदम, हम सबकी महतारी अम्मा ।
Friday, August 14, 2009
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20 comments:
रात काटती आँखों में जब होते हम बीमार कभी
खूबसूरती से भावनाओ मे पिरोया है आपने अम्मा को.
सुंदर कविता!
तू जहाँ जहां चलेगा मेरा साया साथ होगा..,जी माँ तो हमेश साए की तरह साथ ही रहती है..
माँ तो आखिर माँ होती है। अच्छे भाव की रचना।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
अब अम्मा के हाथ थके और आँखों के सूरज बदराये,
फिर भी तो होटों पे हरदम एक मुस्कान खिलातीअम्मा
माँ का बहुत खूबसूरत शब्द चित्रण के लिए आपको बधाई !
सादर !
यह भी समर्पित है :
फिर बादल घनेरे घिर आये
मां की मेरी याद लाये
फिर तड़पा उसके आंचल को
उसके बोलों सी ठंडक ले आये
मां, तुम बादल सी मुझको लगती हो
तपते दिल पर ठंडक सी लगती हो,
बादल के बनते कई रूपों में
मेरे बचपन की कहानीयां लगती हो।
तुम्हारी कहानीयां याद आती हैं मां,
वो बंदर, शेर, खरगोश और मछ्लीयां,
आज फिर सो जाऊं तेरी गोद में,
मां फिर से मुझे वो कहानीयां सुना
जीवन मे जब न होगी तू कल
कैसे बीतेंगे मेरे वो पल,
चल मां, मेरी ऊंगली को पकड़
कुछ दूर साथ तू चल।
हँसते हँसते होंठों में ही अपनी बात छुपाती अम्मा ।
मां तो बस मां ही होती है
मां की प्रशंसा में क्या कहना
अत्यंत सुन्दर कविता
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C.M. को प्रतीक्षा है - चैम्पियन की
प्रत्येक बुधवार
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क्रियेटिव मंच
mere , tere, iske, uske dard se hoti ruansi amma........ aisee ho hoti hai amma !
bahut Sundar kavita.....
अम्मा की याद दिलाती कविता
बहूत अच्छी रचना. कृपया मेरे ब्लॉग पैर पधारे
amma maa ki mahima kya likhu aankh bhar ayyee aaj phir mujhe meri maa kias yaad ayye hey sunder kavita ASHOK KHATRI
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साहित्यिक उत्कृष्ट रचनाएं
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क्रियेटिव मंच
A good poem. The greatest thing the God provides to a child a mother.
वाह! शब्द शब्द "माँ" हो गया है. बहुत सुन्दर रचना. वधाई. जारी रहें.
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क्या आप हैं उल्टा तीर के लेखक/लेखिका? होने वाली एक क्रान्ति- विजिट करें- http://ultateer.blogspot.com
Vijay joshee jee mai to aapko janati tak nahee na hee kabhee aapke blog par aaee hoon. maine to aapki kawita ko toda nahee jo muze sooza wahee likha fir bhee anjane men aapke dil dukha hai to kshama chati hoon par aisee ulti seedhi bat kehana kawi ko shabha nahee deta.
आशा जी ..आपकी कविता का शब्द-विन्यास,शैली,भाव और यहाँ तक कि कुछ शब्द भी विजय जोशीजी की कविता से मिलते जुलते हैं .इसलिए प्रथम दृष्टया यही प्रतीत होता है कि रचना कहीं न कहीं उससे प्रभावित है. और यदि नहीं है तो मैं आपसे क्षमा चाहूँगा ,हालाँकि ऐसी समानता विरले ही देखने को मिलती है .कृपया मेरे उल्टे-पुलते कथनों पर विचार न कर मुझे क्षमा कर दें ..
और हाँ विजय जोशी जी ब्लोगिंग नहीं करते .मैं उनकी रचनाएँ एक अरसे से देश की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में पढता आया हूँ .मेरा उनसे केवल इतना ही नाता है.
अब अम्मा के हाथ थके और आँखों के सूरज बदराये,
फिर भी तो होटों पे हरदम एक मुस्कान खिलाती अम्मा
wah asha ji ..maa ka naam aate hi dil mein gudgudi ho jati hai ...man prem aur viswas se bhr jata hai ..maa meri dost meri sakha meri margdarshak ...aur wo jisse mein hazar baar rootha wom mujse kabhi nahi roothi ...wah ....ashaji ...dhanyawad..
Bahut hi suder...dil ko chuti...pyar si piroee..kavita mai pyar si bekhartiii Amma,,,,
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