ऊन के उलझे धागे
सुलझाने का
प्रयास कर रही है रमिया
रंग-बिरंगी ऊन के धागे
गुँथे हुए हैं ऐसे
एक-दूसरे से
कि उन्हें अलग करना
नहीं है आसान !
पर रमिया कर रही है प्रयास
एक-एक धागे को
सुलझाने का,
कभी लाल, कभी नीला
तो कभी पीला,
और मन-ही-मन
हो रही है खुश
गुनगुना रही है
सुंदर सलोना गीत !
खोई है वह अतीत में
पर बुन रही है
भविष्य के नए सपने !
इतने में
उसका छोटा पोता
आया और बोला,
’ दादी माँ !
मैं भी सुलझाऊँगा धागे
बनाऊँगा ऊन के गोले ! ‘
दादी माँ ने उसे
समझाया और बोली---
’ मेरे लाल !
इन धागों को सुलझाने में
जीवन के अनमोल क्षण
गँवाए हैं मैंने
तू मत उलझ इनके साथ ! ‘
रमिया का अतीत
उतर आया
उसकी बूढ़ी आँखों में
उसके सपने
लेने लगे आकार,
याद आया अचानक :
जब छोटी थी वह
तो अपने भैया के लिए
झाड़ू की सींकों में
डालकर फंदे बुनती थी स्वेटर,
बड़ी हुई तो माँ ने
साइकिल की तानों की
बनवाकर दीं सलाइयाँ
और धीरे-धीरे वह
बुनने लगी स्वेटर,
बनाया उसने
अपनी छोटी-सी,
प्यारी-सी गुड़िया का स्वेटर
फिर बुना भैया के लिए
नन्हा-सा टोपा
और अपने लिए स्कार्फ,
उसे पहनकर भर जाती
स्वाभिमान से,
पर आज उसका बुना
स्वेटर या टोपा
नहीं पहनता कोई,
उलझी है वह
अपने ही विचारों में
जीवन की उलझनें
खोलते-खोलते
पक गए हैं सारे बाल
भर गया है चेहरा झुर्रियों से
लेकिन अभी भी है
आस और दृढ़ विश्वास
उसके मन में,
नहीं थकीं हैं
उसकी बूढ़ी आँखें,
अभी भी युवा है मन,
उसी तरह आज भी
सुलझा रही है
ऊन के धागे और
विचारों की उलझन,
इसी विश्वास के साथ
कि धागे खुलकर
बुनेंगे रंग-बिरंगा भविष्य !
डॉ. मीना अग्रवाल
Tuesday, May 18, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
17 comments:
एक सांस में पढता गया , बहुत बढ़िया बन पड़ी है कविता ।
तारीफ़ करने को शब्द नहीं है ... बेहतरीन !
कविता बढिया है हमेशा की तरह
सार्थल लेखन को बढावा दे और ऊल जुलूल पोस्टो पर प्रतिक्रिया से बचे.
सादर
हरि शर्मा
http://hariprasadsharma.blogspot.com/
http://koideewanakahatahai.blogspot.com/
http://sharatkenaareecharitra.blogspot.com
waah oon ke dhaago ke bahane jeevan suljha diya...bahut khoob...
बहुत ही सुन्दर रचना है !
bhot acha hain ji.
www.sometimesinmyheart.blogspot.com
माँ के दिल की बस्ती में तेरा बसेरा आज भी है
महफिल रौशन है, ज़हन मे अंधेरा आज भी है
बेशक तुने निकाल दिया ज़हन-ओ-दिल से माँ - बाप को
पर तेरी यादों ने उनके दिल को घेरा आज भी है
भले तुझे नहीं खबर अपने माँ - बाप की
तुझे चाहने का वो हक उनके पास आज भी है
माँ - बाप को भूलाने नहीं देगी ये दुनिया तुझको
दोस्तों ने पुराने ज़ख्मों को छेड़ा आज भी है
अपनाया नहीं तूने जिसे ज़िन्दगी में अपनी
वो माँ - बाप जी जान से तेरे आज भी है
आईये जानें .... मैं कौन हूं!
आचार्य जी
बहुत सुंदर और प्रभावशाली
सुंदर रचना के लिए बधाई
बहुत खूबसूरत...
nice..i wish life was little less complex
bahot khoobsurat.
Man ko chhoo gaye aapke bhaav.
ऊन के धागे और
विचारों की उलझन,
इसी विश्वास के साथ
कि धागे खुलकर
बुनेंगे रंग-बिरंगा भविष्य !
Very touching !
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति मीना जी .लगी आपकी यह रचना .
वीणा साधिका
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति मीना जी .लगी आपकी यह रचना .
वीणा साधिका
bahut sundar
आप सभी ने मेरी कविता को इतना मान दिया और आपको पसंद आई. इसके लिए आप सब का बहुत-बहुत आभार.
मीना
Post a Comment