Saturday, August 7, 2010

गुदगुदाती स्मृतियाँ

स्मृतियाँ,
कभी रुलाती हैं
तो कभी गुदगुदाती हैं
कभी मासूम बच्चा बन,
छोटा-सा बालक बन
अपनी तोतली बोली में
मन की बातें कह जाती हैं !

स्मृतियाँ,
दिलाती हैं याद
कभी माँ का दुलार,
तो कभी पिता का प्यार,
कभी दादी माँ की
और कभी नानी माँ की
कहानी बनकर
ले जाती हैं
परियों के लोक,
जहाँ दिखाई देते हैं
चाँद और सितारे,
जो लगते हैं मन को
मोहक और प्यारे,
दिखाई देते हैं वहाँ
रंग-बिरंगे फूल
जहाँ नहीं होती,
उदासी की धूल
फूल अपनी सुगंध
बिखेरते हैं चारों ओर,
औरों को भी सिखाते हैं
सुगंध फैलाना,
मनभर खुशबू लुटाना
सबको हँसाना
और गुदगुदाना
तन के साथ-साथ
मन को भी सुंदर बनाना !

स्मृतियाँ,
कभी ले जाती हैं
उस नन्हे संसार में
जहाँ प्यारी-सी
दुलारी-सी गुड़िया है
उसका छोटा-सा घर है !
और है
भरा-पूरा परिवार
नहीं है दुख की कहीं छाया,
पीड़ा की कोई भी लहर
यहाँ-वहाँ कहीं पर भी
कभी दिखाई नहीं देती !

स्मृतियाँ,
जब ले जाती हैं
भाई-बहिनों के बीच
जहाँ खेल है,तालमेल है
तो कभी-कभी
बड़ा ही घालमेल है !

स्मृतियाँ,
ले जाती हैं
दोस्तों के बीच
जहाँ पहुँचकर
देती हैं अनायास
ऊँची उड़ान मन-पतंग को,
देती हैं अछोर ऊँचाइयाँ,
तो कभी कटी पतंग-सी
देती हैं निराशा मन को,
कभी उड़नखटोले में
सैर करातीं हैं,
कभी ले जाती हैं
अलौकिक दुनिया में
जगाती हैं मन में आशा
रखती हैं सदैव दूर दुराशा !

स्मृतियाँ ,
खो जाती हैं
भीड़ में बच्चे की तरह
जब मिलती हैं
तो माँ की तरह
सहलाती हैं,दुलारती हैं
और रात को
नींद के झूले में
मीठे स्वर में
लोरी सुनाती हैं
ले जाती हैं
कल्पना के लोक
जहाँ मन रहता है
कटुता से दूर,बहुत दूर,
मन बजाता है
खुशी का संतूर !
दुःख की अनुभूतियाँ
मन में नहीं समाती हैं;
सुख की कोयल
कभी गीत गाती है
तो कभी
मधुर-मधुर स्वर में
गुनगुनाती हैं,
और कभी
पंचम स्वर में
जीवन का
मधुर राग सुनाती हैं

डॉ. मीना अग्रवाल

15 comments:

संगीता पुरी said...

भावों की सुंदर अभिव्‍यक्ति !!

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर कविता, धन्यवाद

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ....स्मृतियाँ बहुत कुछ कहती हैं

Udan Tashtari said...

सुन्दर भावाव्यक्ति!

डॉ. मोनिका शर्मा said...

स्मृतियाँ,
जब ले जाती हैं
भाई-बहिनों के बीच
जहाँ खेल है,तालमेल है
आपकी कविता से मुझे भी कुछ याद आया और आँखें नम हुईं......

प्रवीण पाण्डेय said...

स्मृतियों की सुन्दर तरंग।

राजकुमार सोनी said...

आपने बहुत मार्मिक तरीके से लिखा है
बहुत अच्छा लगा
आपको बधाई

सु-मन (Suman Kapoor) said...

आज पहली बार आपके ब्लोग पर आई हूँ ......देखते ही रूह खुश हो गई............
बहुत सुन्दर..................स्मृतियां बहुत प्यारी होती हैं ..............

डा.मीना अग्रवाल said...

आप सबने मेरी रचना को इतना प्यार दिया है. इसके लिए मैं हृदय से आप सबकी आभारी हूँ.बहुत-बहुत आभार.

मीना अग्रवाल

nilesh mathur said...

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !

Asha Joglekar said...

स्मृतियाँ ,
खो जाती हैं
भीड़ में बच्चे की तरह
जब मिलती हैं
तो माँ की तरह
सहलाती हैं,दुलारती हैं
और रात को
नींद के झूले में
मीठे स्वर में
लोरी सुनाती हैं
ले जाती हैं
बहुत सुन्दर कविता । स्मृतियाँ ऐसी ही होती हैं ।

KK Yadav said...

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ....

पूनम श्रीवास्तव said...

sach hai sir, kewal smritiyan hi sheshh ra jaati hai
waqt to apni gati se aage badhta hi rahta hai.bahut hi sundar bhavabhvabhivykti .
poonam

mridula pradhan said...

achchi lagi apki kavita.

mridula pradhan said...

bahut achchi.