Saturday, April 17, 2010

कुछ नया लिखूँ

बचपन से आज तक की यात्रा
आहिस्ता-आहिस्ता की है पूरी,
पर आज भी है मन में
एक आस अधूरी
नहीं ढाल पाई अपने को
उस आकार में
जैसा माँ चाहती थी !
माँ की मीठी यादें,
उनके संग बिताए
क्षणों की स्मृतियाँ
आज हो गईं हैं धुँधली,
छा गया है धुआँ
विस्मृति का !
मन-मस्तिष्क पर छाए
धुएँ को हटाकर
जब झाँकती हूँ अंदर,
और उतरती हूँ
धीरे-धीरे अंतर में,
तो माँ की हँसती,
मुस्कुराती सलोनी सूरत
तैर-तैर जाती है
मेरी आँखों में !
देती है प्रेरणा,
करती है प्रेरित
कि कुछ नया करूँ,
समय की स्लेट पर
भावों के स्वर्णिम अक्षरों से
कुछ नया लिखूँ,
पर माँ ! मन के भाव
न जाने क्यों सोए हैं?
क्यों नहीं होती झंकृति
रोम-रोम में,
क्यों नहीं बजती बाँसुरी
तन-मन में,
क्यों नहीं सितार के तार
बजने को होते हैं व्याकुल,
क्यों नहीं हाथ
बजाने को होते हैं आकुल,
लगता है, माँ!
तुझसे मिले संस्कार
तन्द्रा में हैं अलसाए,
रिसती जा रही हैं स्मृतियाँ
घिसती जा रही है ज़िंदगी
सोते जा रहे हैं भाव,
लेकिन डरना नहीं माँ!
मैं थपथपाऊँगी भावों को
जगाऊँगी उन्हें
और ले जाऊँगी
कल्पना के सागर के उस पार
जहाँ लगाकर डुबकी
लाएँगे ढूँढकर
अनगिन काव्य-मोती,
उन्हीं मोतियों की माला से
सजाऊँगी अपना वैरागी मन
और तब, हाँ तब ही,
होगा नवसृजन,
और बजेगी चैन की बाँसुरी !
पहनकर दर्द के घुँघुरू
नाचेगी जब पीड़ा
ता थेई तत् तत् ,
शब्दों की ढोलक
देगी थाप जब
ता किट धा ,
व्याकुलता की बजेगी
उर में झाँझ
और साथ देगी
कल्पना की सारंगी
तो होगी अनोखी झंकार
तो मिलेगा आकार
मन के भावों को,
माँ ! दो आशीर्वाद मुझे--
कर सकूँ नवसृजन
और जब आऊँ
तुम्हारे पास
तो तुम्हें पा मुस्कुराऊँ,
एक ही संकल्प
बार-बार और क्षण-क्षण
न दोहराऊँ !

डॉ. मीना अग्रवाल

9 comments:

संजय भास्‍कर said...

माँ के प्रति बहुत प्यार है आपकी कविता में

संजय भास्‍कर said...

यादें ताजा हो गयी माँ की जेहन में, माँ से दूर जो ठहरा।

संजय भास्‍कर said...

एहसास की यह अभिव्यक्ति बहुत खूब

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

बहुत सुन्दर मीनाजी ! आपने मां के प्रति अपने प्यार को शब्दों में बड़ी सुन्दरता से प्रकाश किया है !

Shekhar Kumawat said...

माँ ! दो आशीर्वाद मुझे--
कर सकूँ नवसृजन
और जब आऊँ
तुम्हारे पास
तो तुम्हें पा मुस्कुराऊँ,
एक ही संकल्प
बार-बार और क्षण-क्षण
न दोहराऊँ !



BAHTARIN BATE AAP KI


BAHUT KHUB

SHEKHAR KUMAWAT

http://kavyawani.blogspot.com/

Udan Tashtari said...

बहुत बढ़िया भावपूर्ण अभिव्यक्ति!

''अपनी माटी'' वेबपत्रिका सम्पादन मंडल said...

तो माँ की हँसती,
मुस्कुराती सलोनी सूरत
तैर-तैर जाती है


emotional....

APNI MAATI
MANIKNAAMAA

S R Bharti said...

रिसती जा रही हैं स्मृतियाँ
घिसती जा रही है ज़िंदगी
सोते जा रहे हैं भाव,
लेकिन डरना नहीं माँ

बहुत अच्छी तथा सार्थक पहल
हार्दिक बधाई

mridula pradhan said...

bahot achche.