Sunday, January 4, 2009

परी

बचपन में
माँ रख देती थी चाॅकलेट
तकिये के नीचे
कितना खुश होता
सुबह-सुबह चाॅकलेट देखकर
माँ बताया करती
जो बच्चे अच्छे काम
करते हैं
उनके सपनों में परी आती
और देकर चली जाती चाॅकलेट
मुझे क्या पता था
वो परी कोई और नहीं
माँ ही थी !!!

कृष्ण कुमार यादव

16 comments:

हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World said...

मुझे क्या पता था
वो परी कोई और नहीं
माँ ही थी !!!
बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति और भाव..बधाई.

Dr. Brajesh Swaroop said...

वाकई माँ परी का ही तो रूप होती है.

Bhanwar Singh said...

दिल को अन्दर तक छूती है यह उत्तम कविता.

Akanksha Yadav said...

इस दुनिया में माँ से बढ़कर कुछ नहीं.

दिनेशराय द्विवेदी said...

मां परी से कम नहीं होती।

Amit Kumar Yadav said...

माँ के प्रति भावनात्मक लगाव से प्रेरित यह कविता पढ़कर बड़ा अच्छा लगा. दिल को कहीं गहरे तक तसल्ली मिली. ...एक सार्थक और प्रेरणास्पद कविता हेतु साधुवाद.

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

हां माँ परी भी होती है . माँ सबकुछ होती है .

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

सच्चे शब्दों की सच्ची कविता जो सीधे दिल में उतरती है। साधुवाद।

Anonymous said...

कृष्ण कुमार जी ! माँ के विभिन्न रूपों पर आप बड़ी खूबसूरत कवितायेँ पोस्ट कर रहे हैं...इसी लालच में बार-बार आता हूँ.

अमिताभ श्रीवास्तव said...

mujhe yaad he, kisi ne sach kaha he ki
bhagvan hamare paas nahi aa sakta isliye usne
maa banai he,

maa...bas ,,ek esi anubhuti he jo jivan ko kisi bagiya ki tarah khila deti he..

bahut achcha likha he aapne..

Harshvardhan said...

bahut sundar kavita hai bhav gahare hai aapke
maa se badkar sansar me kuch bhee nahi hai

Ram Shiv Murti Yadav said...

अतिसुन्दर प्रस्तुति !!

Unknown said...

अदभुत ! भावों की सरस अभिव्यंजना.

www.dakbabu.blogspot.com said...

Is kavita ke liye apki kin shabdon men dhanyvad doon.....!!

* મારી રચના * said...

वो परी कोई और नहीं
माँ ही थी !!!

^ ekdam sahi likha hai apane.. maa ek pari banke hamare khwaabo ko pura karti hai... bahut hi sunadar rachana..

रंजू भाटिया said...

सही कहा माँ परी ही होती है .बहुत सुंदर