बचपन में
माँ रख देती थी चाॅकलेट
तकिये के नीचे
कितना खुश होता
सुबह-सुबह चाॅकलेट देखकर
माँ बताया करती
जो बच्चे अच्छे काम
करते हैं
उनके सपनों में परी आती
और देकर चली जाती चाॅकलेट
मुझे क्या पता था
वो परी कोई और नहीं
माँ ही थी !!!
कृष्ण कुमार यादव
Sunday, January 4, 2009
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16 comments:
मुझे क्या पता था
वो परी कोई और नहीं
माँ ही थी !!!
बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति और भाव..बधाई.
वाकई माँ परी का ही तो रूप होती है.
दिल को अन्दर तक छूती है यह उत्तम कविता.
इस दुनिया में माँ से बढ़कर कुछ नहीं.
मां परी से कम नहीं होती।
माँ के प्रति भावनात्मक लगाव से प्रेरित यह कविता पढ़कर बड़ा अच्छा लगा. दिल को कहीं गहरे तक तसल्ली मिली. ...एक सार्थक और प्रेरणास्पद कविता हेतु साधुवाद.
हां माँ परी भी होती है . माँ सबकुछ होती है .
सच्चे शब्दों की सच्ची कविता जो सीधे दिल में उतरती है। साधुवाद।
कृष्ण कुमार जी ! माँ के विभिन्न रूपों पर आप बड़ी खूबसूरत कवितायेँ पोस्ट कर रहे हैं...इसी लालच में बार-बार आता हूँ.
mujhe yaad he, kisi ne sach kaha he ki
bhagvan hamare paas nahi aa sakta isliye usne
maa banai he,
maa...bas ,,ek esi anubhuti he jo jivan ko kisi bagiya ki tarah khila deti he..
bahut achcha likha he aapne..
bahut sundar kavita hai bhav gahare hai aapke
maa se badkar sansar me kuch bhee nahi hai
अतिसुन्दर प्रस्तुति !!
अदभुत ! भावों की सरस अभिव्यंजना.
Is kavita ke liye apki kin shabdon men dhanyvad doon.....!!
वो परी कोई और नहीं
माँ ही थी !!!
^ ekdam sahi likha hai apane.. maa ek pari banke hamare khwaabo ko pura karti hai... bahut hi sunadar rachana..
सही कहा माँ परी ही होती है .बहुत सुंदर
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