Tuesday, January 20, 2009

माँ के आँसू

बचपन से ही देखता आ रहा हूँ माँ के आँसू
सुख में भी, दुख में भी
जिनकी कोई कीमत नहीं
मैं अपना जीवन अर्पित करके भी
इनका कर्ज नहीं चुका सकता।

हमेशा माँ की आँखों में आँसू आये
ऐसा नहीं कि मैं नहीं रोया
लेकिन मैंने दिल पर पत्थर रख लिया
सोचा, कल को सफल आदमी बनूँगा
माँ को सभी सुख-सुविधायें दूँगा
शायद तब उनकी आँखों में आँसू नहीं हो
पर यह मेरी भूल थी।

आज मैं सफल व्यक्ति हूँ
सारी सुख-सुविधायें जुटा सकता हूँ
पर एक माँ के लिए उसके क्या मायने?
माँ को सिर्फ चाहिए अपना बेटा
जिसे वह छाती से लगा जी भर कर प्यार कर सके
पर जैसे-जैसे मैं ऊँचाईयों पर जाता हूँ
माँ का साथ दूर होता जाता है
शायद यही नियम है प्रकृति का।
कृष्ण कुमार यादव
kkyadav.y@rediffmail.com

38 comments:

Dr. Brajesh Swaroop said...

...बड़ी मार्मिक बात लिख दी के.के. जी आपने. पढ़कर ऑंखें नम हो गयीं.

निर्मला कपिला said...

bahut sunder sach ke kreeb is maarmik abhivyakti ke liye bdhaai

mehek said...

bahut bhavpurn rachana badhai

रंजू भाटिया said...

पर जैसे-जैसे मैं ऊँचाईयों पर जाता हूँ
माँ का साथ दूर होता जाता है
शायद यही नियम है प्रकृति का।

बहुत सच कहा आपने .सुंदर रचना

Anonymous said...

आज मैं सफल व्यक्ति हूँ
सारी सुख-सुविधायें जुटा सकता हूँ
पर एक माँ के लिए उसके क्या मायने?
माँ को सिर्फ चाहिए अपना बेटा
जिसे वह छाती से लगा जी भर कर प्यार कर सके
.....भावनाओं की अनुपम अभिव्यक्ति के बीच जीवन का एक कड़वा सच.

www.dakbabu.blogspot.com said...

मां पर के.के. जी की कई कवितायेँ पढने का मौका मिला है, पर यह कविता अलग प्रभाव छोड़ती है.

दिनेशराय द्विवेदी said...

जो कुछ चाहिए माँ को हम दे नहीं सकते
उस के ऋण से कभी उऋण नहीं हो सकते।

संगीता पुरी said...

सुंदर रचना....सही लिखा है ..... पर बेटे की सफलता से संतोष करती हुई मां उससे दूरी भी बर्दाश्‍त कर लेती है ।

अनामिका said...

मां के त्याग ऒर वात्सल्य का कोई मूल्य नहीं हॆ,परन्तु उसके आंसुओं को भी अगर हम समझ सकें तो अच्छी बात हॆ।

purnima said...

पर जैसे-जैसे मैं ऊँचाईयों पर जाता हूँ
माँ का साथ दूर होता जाता है
शायद यही नियम है प्रकृति का।
ye lines kafi bhavpurn he.
maa hamesha hamare liye prathna karti he. aur hame khush dekhna chati he.

अनिल कान्त said...

sarvottam ...ati uttam

maa ke uppar mere dwara likhi kavita bhi padhe

http://anilkant.blogspot.com/2009/01/blog-post_51.html

राज भाटिय़ा said...

पर जैसे-जैसे मैं ऊँचाईयों पर जाता हूँ
माँ का साथ दूर होता जाता है.....
यह सिर्फ़ तुम सोचते हो , मां नही, मां तो खुश होती है की उस का बेटा उस के सपनो को साकार कर रहा है, ओर यह आप का बड्डपन है कि मां का सोचते हो, मां के बारे सोचते हॊ.
बहुत सुंदर कविता हम चाह कर भी मां का कर्ज नही चुका सकते, क्योकि मां तो सिर्फ़ मां ही होती है

* મારી રચના * said...

आज मैं सफल व्यक्ति हूँ
सारी सुख-सुविधायें जुटा सकता हूँ
पर एक माँ के लिए उसके क्या मायने?
माँ को सिर्फ चाहिए अपना बेटा
जिसे वह छाती से लगा जी भर कर प्यार कर सके
पर जैसे-जैसे मैं ऊँचाईयों पर जाता हूँ
माँ का साथ दूर होता जाता है


yehi sacchahi hai... unchaai pe jaate jaate hamara saath MAA se dur hota hai..
bahut hi bhaavnatmak rachna...

Unknown said...
This comment has been removed by the author.
Unknown said...

bahut hi sahi baat kehi hai aapne..

BrijmohanShrivastava said...

वो होते हैं किस्मत वाले जिनके माँ होती है

Ashutosh said...

गणतंत्र दिवस पर आपको ढेर सारी शुभकामनाएं

Bhanwar Singh said...

इस भावपूर्ण कविता के लिए बधाई.

Ram Shiv Murti Yadav said...

दुनिया में माँ से बढ़कर कोई रिश्ता नहीं. इस भाव को ही दर्शाती है कृष्ण कुमार की यह कविता...सुन्दर.

Unknown said...

सुन्दर शब्दों में यह कविता उस सच को बयां करती है, जिससे हम रोज दो-चार होते हैं. कृष्ण कुमार जी की लेखनी की धार नित तेज होती जा रही है...साधुवाद स्वीकारें !!

Amit Kumar Yadav said...

इस कविता को पढ़कर मैं इतना भाव-विव्हल हो गया हूँ कि शब्दों में बयां नहीं कर सकता.

हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World said...

कृष्ण कुमार जी! आपकी रचनाधर्मिता पर देहरादून से प्रकाशित ''नवोदित स्वर'' के 19 january अंक में प्रकाशित लेख "चरित्र की ध्वनि शब्द से ऊँची होती है " पढ़कर अभिभूत हूँ....अल्पायु में ही पत्र-पत्रिकाएं आप पर लेख प्रकाशित कर रहें हैं, गौरव का विषय है !!

हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World said...

आपकी हर रचना सोचने को विवश कर देती है.

Asha Joglekar said...

बहुत सुंदर ममता की भावनाओं को सहेजने वाली कविता । लेकिन बच्चा कामयाब हो यही माँ का स्वप्न होता है चाहे उसे दूर क्यूं न जाना पडे ।अक्सर ये खुशी के आंसू होते हैं ।

bharati said...

aapne achha likha hai.

Akanksha Yadav said...

सुन्दर ब्लॉग...सुन्दर रचना...बधाई !!
-----------------------------------
60 वें गणतंत्र दिवस के पावन-पर्व पर आपको ढेरों शुभकामनायें !! ''शब्द-शिखर'' पर ''लोक चेतना में स्वाधीनता की लय" के माध्यम से इसे महसूस करें और अपनी राय दें !!!

कडुवासच said...

... अत्यंत प्रसंशनीय अभिव्यक्ति है।

Bhawna Kukreti said...

bahut sundar rachna

Shamikh Faraz said...

maa ke bare me likhi aik bahut badhiya kavita

hem pandey said...

दोनों होठों के चुम्बन से उच्चारण होता है ' माँ.'

अमित माथुर said...

सच है माँ के कदमो के नीचे जन्नत है ये बात बच्चा-बच्चा जानता है. क्या आप जानते हैं अगर माँ के कदमो तले जन्नत है तो 'पिता' उस जन्नत का दरवाज़ा है. सारी दुनिया माँ को सलाम करती है मगर पिता को पता नहीं क्यूँ साइडलाइन कर देती है. माँ को माँ बनाने वाला पिता होता है, जिन आदर्शो और सहारे को लेकर माँ अपने बच्चे का पालन-पोषण करती है वो पिता होता है, अब तो विज्ञान साक्षी है की माँ से पहले बच्चा पिता के पास होता है. मेरा आपसे विनम्र निवेदन है पिता को भी माँ के समान ही सम्मान दीजिये. जय हिंद -अमित माथुर (http://vicharokatrafficjam.blogspot.com)

aarya said...

Yadav ji
sadar vande !
aap ki kavita padhkar mai abhibhut ho gaya. satya bhi yahi hai Maa ke liye usaka beta hi sabkuchh hai na ki usaki unchai.
Ratnesh Tripathi

Shikha .. ( शिखा... ) said...

Bahut Sacchi aur Maarmik baat likhi hai..

Aaisi rachnaaye sirf ek baar padhne ke liye nahin hoti.. inhe baar baar padha jaata hai.. baar baar sochne par majboor kar deti hai.. aur baar baar kuch kadwi sachhaaiyaa aankhein nam kar deti hai.. Aaisi pyaari abhivyakti ke liye badhaai aur isey hum tak pahunchaane ke liye aapka shukriyaa bhi..

KK Yadav said...

पतंगा बार-बार जलता है
दिये के पास जाकर
फिर भी वो जाता है
क्योंकि प्यार
मर-मिटना भी सिखाता है !
.....मदनोत्सव की इस सुखद बेला पर शुभकामनायें !!
'शब्द सृजन की ओर' पर मेरी कविता "प्रेम" पर गौर फरमाइयेगा !!

K.P.Chauhan said...

maa ke aansu naamak kavitaa bahut hi maarmik hai is kavitaa ko padhkar mere nainon se ashru dhaara prvaahit ho gayi ,ishwar kare aap isi prkar likhte rahen

Unknown said...

aap mere blog par aae, shukria. kavi sammelan ki report padh raha tha, imran ne geet se pahle jo chhar misre padhe, bata doon, os kavi dr. kunwar bechain ke hain. chetan anand

Puneet said...

wah koi do rai nahi ......

sach me jo hum sochte hai ya plan karte hai sab ka sab yahi reh jata hai.......

asli yojna to prakriti hi banati hai humare liye......

Satish Saxena said...

वाकई व्यस्तता के साथ साथ माँ हमसे दूर होती चली जाती है !