बचपन से ही देखता आ रहा हूँ माँ के आँसू
सुख में भी, दुख में भी
जिनकी कोई कीमत नहीं
मैं अपना जीवन अर्पित करके भी
इनका कर्ज नहीं चुका सकता।
हमेशा माँ की आँखों में आँसू आये
ऐसा नहीं कि मैं नहीं रोया
लेकिन मैंने दिल पर पत्थर रख लिया
सोचा, कल को सफल आदमी बनूँगा
माँ को सभी सुख-सुविधायें दूँगा
शायद तब उनकी आँखों में आँसू नहीं हो
पर यह मेरी भूल थी।
आज मैं सफल व्यक्ति हूँ
सारी सुख-सुविधायें जुटा सकता हूँ
पर एक माँ के लिए उसके क्या मायने?
माँ को सिर्फ चाहिए अपना बेटा
जिसे वह छाती से लगा जी भर कर प्यार कर सके
पर जैसे-जैसे मैं ऊँचाईयों पर जाता हूँ
माँ का साथ दूर होता जाता है
शायद यही नियम है प्रकृति का।
कृष्ण कुमार यादव
kkyadav.y@rediffmail.com
Tuesday, January 20, 2009
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38 comments:
...बड़ी मार्मिक बात लिख दी के.के. जी आपने. पढ़कर ऑंखें नम हो गयीं.
bahut sunder sach ke kreeb is maarmik abhivyakti ke liye bdhaai
bahut bhavpurn rachana badhai
पर जैसे-जैसे मैं ऊँचाईयों पर जाता हूँ
माँ का साथ दूर होता जाता है
शायद यही नियम है प्रकृति का।
बहुत सच कहा आपने .सुंदर रचना
आज मैं सफल व्यक्ति हूँ
सारी सुख-सुविधायें जुटा सकता हूँ
पर एक माँ के लिए उसके क्या मायने?
माँ को सिर्फ चाहिए अपना बेटा
जिसे वह छाती से लगा जी भर कर प्यार कर सके
.....भावनाओं की अनुपम अभिव्यक्ति के बीच जीवन का एक कड़वा सच.
मां पर के.के. जी की कई कवितायेँ पढने का मौका मिला है, पर यह कविता अलग प्रभाव छोड़ती है.
जो कुछ चाहिए माँ को हम दे नहीं सकते
उस के ऋण से कभी उऋण नहीं हो सकते।
सुंदर रचना....सही लिखा है ..... पर बेटे की सफलता से संतोष करती हुई मां उससे दूरी भी बर्दाश्त कर लेती है ।
मां के त्याग ऒर वात्सल्य का कोई मूल्य नहीं हॆ,परन्तु उसके आंसुओं को भी अगर हम समझ सकें तो अच्छी बात हॆ।
पर जैसे-जैसे मैं ऊँचाईयों पर जाता हूँ
माँ का साथ दूर होता जाता है
शायद यही नियम है प्रकृति का।
ye lines kafi bhavpurn he.
maa hamesha hamare liye prathna karti he. aur hame khush dekhna chati he.
sarvottam ...ati uttam
maa ke uppar mere dwara likhi kavita bhi padhe
http://anilkant.blogspot.com/2009/01/blog-post_51.html
पर जैसे-जैसे मैं ऊँचाईयों पर जाता हूँ
माँ का साथ दूर होता जाता है.....
यह सिर्फ़ तुम सोचते हो , मां नही, मां तो खुश होती है की उस का बेटा उस के सपनो को साकार कर रहा है, ओर यह आप का बड्डपन है कि मां का सोचते हो, मां के बारे सोचते हॊ.
बहुत सुंदर कविता हम चाह कर भी मां का कर्ज नही चुका सकते, क्योकि मां तो सिर्फ़ मां ही होती है
आज मैं सफल व्यक्ति हूँ
सारी सुख-सुविधायें जुटा सकता हूँ
पर एक माँ के लिए उसके क्या मायने?
माँ को सिर्फ चाहिए अपना बेटा
जिसे वह छाती से लगा जी भर कर प्यार कर सके
पर जैसे-जैसे मैं ऊँचाईयों पर जाता हूँ
माँ का साथ दूर होता जाता है
yehi sacchahi hai... unchaai pe jaate jaate hamara saath MAA se dur hota hai..
bahut hi bhaavnatmak rachna...
bahut hi sahi baat kehi hai aapne..
वो होते हैं किस्मत वाले जिनके माँ होती है
गणतंत्र दिवस पर आपको ढेर सारी शुभकामनाएं
इस भावपूर्ण कविता के लिए बधाई.
दुनिया में माँ से बढ़कर कोई रिश्ता नहीं. इस भाव को ही दर्शाती है कृष्ण कुमार की यह कविता...सुन्दर.
सुन्दर शब्दों में यह कविता उस सच को बयां करती है, जिससे हम रोज दो-चार होते हैं. कृष्ण कुमार जी की लेखनी की धार नित तेज होती जा रही है...साधुवाद स्वीकारें !!
इस कविता को पढ़कर मैं इतना भाव-विव्हल हो गया हूँ कि शब्दों में बयां नहीं कर सकता.
कृष्ण कुमार जी! आपकी रचनाधर्मिता पर देहरादून से प्रकाशित ''नवोदित स्वर'' के 19 january अंक में प्रकाशित लेख "चरित्र की ध्वनि शब्द से ऊँची होती है " पढ़कर अभिभूत हूँ....अल्पायु में ही पत्र-पत्रिकाएं आप पर लेख प्रकाशित कर रहें हैं, गौरव का विषय है !!
आपकी हर रचना सोचने को विवश कर देती है.
बहुत सुंदर ममता की भावनाओं को सहेजने वाली कविता । लेकिन बच्चा कामयाब हो यही माँ का स्वप्न होता है चाहे उसे दूर क्यूं न जाना पडे ।अक्सर ये खुशी के आंसू होते हैं ।
aapne achha likha hai.
सुन्दर ब्लॉग...सुन्दर रचना...बधाई !!
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60 वें गणतंत्र दिवस के पावन-पर्व पर आपको ढेरों शुभकामनायें !! ''शब्द-शिखर'' पर ''लोक चेतना में स्वाधीनता की लय" के माध्यम से इसे महसूस करें और अपनी राय दें !!!
... अत्यंत प्रसंशनीय अभिव्यक्ति है।
bahut sundar rachna
maa ke bare me likhi aik bahut badhiya kavita
दोनों होठों के चुम्बन से उच्चारण होता है ' माँ.'
सच है माँ के कदमो के नीचे जन्नत है ये बात बच्चा-बच्चा जानता है. क्या आप जानते हैं अगर माँ के कदमो तले जन्नत है तो 'पिता' उस जन्नत का दरवाज़ा है. सारी दुनिया माँ को सलाम करती है मगर पिता को पता नहीं क्यूँ साइडलाइन कर देती है. माँ को माँ बनाने वाला पिता होता है, जिन आदर्शो और सहारे को लेकर माँ अपने बच्चे का पालन-पोषण करती है वो पिता होता है, अब तो विज्ञान साक्षी है की माँ से पहले बच्चा पिता के पास होता है. मेरा आपसे विनम्र निवेदन है पिता को भी माँ के समान ही सम्मान दीजिये. जय हिंद -अमित माथुर (http://vicharokatrafficjam.blogspot.com)
Yadav ji
sadar vande !
aap ki kavita padhkar mai abhibhut ho gaya. satya bhi yahi hai Maa ke liye usaka beta hi sabkuchh hai na ki usaki unchai.
Ratnesh Tripathi
Bahut Sacchi aur Maarmik baat likhi hai..
Aaisi rachnaaye sirf ek baar padhne ke liye nahin hoti.. inhe baar baar padha jaata hai.. baar baar sochne par majboor kar deti hai.. aur baar baar kuch kadwi sachhaaiyaa aankhein nam kar deti hai.. Aaisi pyaari abhivyakti ke liye badhaai aur isey hum tak pahunchaane ke liye aapka shukriyaa bhi..
पतंगा बार-बार जलता है
दिये के पास जाकर
फिर भी वो जाता है
क्योंकि प्यार
मर-मिटना भी सिखाता है !
.....मदनोत्सव की इस सुखद बेला पर शुभकामनायें !!
'शब्द सृजन की ओर' पर मेरी कविता "प्रेम" पर गौर फरमाइयेगा !!
maa ke aansu naamak kavitaa bahut hi maarmik hai is kavitaa ko padhkar mere nainon se ashru dhaara prvaahit ho gayi ,ishwar kare aap isi prkar likhte rahen
aap mere blog par aae, shukria. kavi sammelan ki report padh raha tha, imran ne geet se pahle jo chhar misre padhe, bata doon, os kavi dr. kunwar bechain ke hain. chetan anand
wah koi do rai nahi ......
sach me jo hum sochte hai ya plan karte hai sab ka sab yahi reh jata hai.......
asli yojna to prakriti hi banati hai humare liye......
वाकई व्यस्तता के साथ साथ माँ हमसे दूर होती चली जाती है !
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