Thursday, July 16, 2009

माँ के भी बदले हैं स्वरुप

भगवान हर जगह नहीं हो सकता इस कारण उसने माँ को बनाया। यह वाक्य माँ के सम्मान में लगभग हर जगह लिखा मिल जाता है। हमारा मानना इससे कुछ अलग है और वह ये कि धरती पर माँ ही है जिससे भगवान का अस्तित्व कायम है।

माँ के सम्मान, आदर में हमें बहुत कुछ बताया गया, बहुत कुछ पढ़ाया गया। यह एक ऐसा शब्द है जिसके लिए शायद ही किसी के मन में निरादर की भावना रही होगी। माँ के दयास्वरूप, ममतामयी, परोपकारी स्वरूप की कल्पना हम सबने की है और उसको वास्तविकता में भी देखा है। इन कोमलकांत स्वरूपों के साथ-साथ हमने माँ का शक्तिशाली, शत्रुमर्दन स्वरूप भी माँ दुर्गा के रूप में सँवारा है।
इधर देखने में आ रहा है कि माँ के ममतामयी और शक्तिशाली स्वरूप के अतिरिक्त उसका एक और रूप सामने आया है। इस रूप को हम यदि देखें तो घृणा होती है। माँ के इस घृणास्पद स्वरूप के क्या कारण हो सकते हैं, इस पर तो बहुत गहन सामाजिक शोध की आवश्यकता है।
माँ के इस रूप को कई सालों, माहों, दिनों से देखा जा रहा था किन्तु हमारा ध्यान इस पर हाल ही में इसलिए और गया क्योंकि पिछले एक सप्ताह में तीन घटनाओं ने माँ का यही रूप दिखाया। एक माँ द्वारा अपने दो बच्चों की हत्या इस कारण कर दी गई क्योंकि वे बच्चे उसके प्रेम-सम्बन्ध में बाधक बन रहे थे। एक माँ अपने तीन बच्चों, जिनमें एक तीन माह का दुधमुँहा बच्चा भी शामिल है, को छोड़ कर अपने प्रेमी के साथ भाग गई। एक और घटना में एक माँ अपने नवजात बच्चे को सड़क पर फेंक कर भाग गई, बाद में इस बच्चे की मृत्यु हो गई।
इस तरह की घटनायें अब समाज में आये दिन घटतीं हैं। इन घटनाओं को देखकर किसी गीत या आरती की एक पंक्ति याद आती है कि ‘पूत कपूत सुने हैं जग में, माता सुनी न कुमाता।’ क्या अब माता भी कुमाता कहलायेगी? आधुनिकता के वशीभूत क्या माँ के स्वरूप भी बदले-बदले नजर आयेंगे? क्या आज की महिला स्वयं को माँ नहीं एक स्त्री ही समझेगी?

9 comments:

ओम आर्य said...

yah bhi ek soch ki wishay hai ki aourat kyo maa kam stri samajhane lagi hai.....

श्यामल सुमन said...

आपकी चिन्ता जायज है। लेकिन मेरा मानना है कि सिर्फ किसी बच्चे को जन्म देकर कोई स्त्री माँ नहीं बन सकती। अजस्त्र ममता के साथ माँ शब्द की अपनी गुरूता है। मुनव्वर राणा साहब कहते हैं कि-

मेरे गुनाहों को इस कदर धो देती है।
माँ जब गुस्सा में हो तो रो देती है।।

लेकिन फिर सवाल उठता है कि ऐसी घटनायें (जो आपने उदाहरण स्वरूप दिया है) क्यों माँ के द्वारा ही की जातीं हैं। यदि तीनों घटनाओं को देखें वो तथाकथित माँएं कामांधता के कारण ऐसा कर सकीं। क्या जो सचमुच माँ है, ऐसा कर सकेंगी। शायद कभी नहीं।

सार्थक बिषय का चुनाव आपके द्वारा।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

Bhawna Kukreti said...

inko kripaya "MAA" na kahiye ........ye "MAA"nahin ho sakti bhale hi kuch aur hon !

Asha Joglekar said...

आपका कहना सही है परंतु सिर्प माँ को दोष देने से ही काम नही बनता इसके लिये शायद हमें उस माँ के बचपन में जाकर उसकी स्थितियों को समझना होगा ।
और अपवाद ही तो नि.मको पुख्ता बनाते हैं । कहीं न कहीं समाज़ भी उत्तर दायी है इन स्थितियों के लिये ।

Asha Joglekar said...

कृपया नियम पढें, नि.म नही ।

राज भाटिय़ा said...

अब क्या कहे, नारी के बहुत से अलग अलग रुप हे, यह चाहे तो घर को स्बर्ग बना दे, मां शब्द को मंदिर सा पबित्र बना दे,ओर यह चाहे तो घर को नरक बना दे... मां शब्द को एक गाली बना दे.
धन्यवाद

sonal said...

आपने बिलकुल सही कहा है कि माँ के इस घृणास्पद स्वरूप के क्या कारण हो सकते हैं, इस पर बहुत गहन सामाजिक शोध की आवश्यकता है।

Shastri JC Philip said...

इस विषय पर विस्तार से शोध की जरूरत है. चिंतन के लिये प्रेरित करने के लिये आभार.

सस्नेह -- शास्त्री

हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
http://www.Sarathi.info

अविनाश वाचस्पति said...

अति से हो रही
दुर्गति है यह।