“ माँ का दिल “
माँ का दिल
क्या कहूं मैं इसे ?
कोमल-सी ममता
या प्यार का एक दरिया ,
ममता की छाँव
या प्यारी-सी एक दुनिया ,
स्नेह का भण्डार
या एक मृदुल संसार ,
भोली-सी सूरत
या प्यार की एक मूरत ,
क्षमा का दर्पण
या फिर भगवान का एक वरदान !
माँ का दिल
क्या कहूं मैं इसे ?
– सोनल पंवार
( spsenoritasp@gmail.com )
( http://princhhi.blogspot.com )
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10 comments:
बहुत सुंदर
धन्यवाद
शब्दों में वो शक्ति कहाँ कि माँ के दिल को अभिव्यक्त कर पायें.
मुनव्वर राणा कहते हैं कि-
मेरे गुनाहों को इस कदर धो देती है।
माँ जब गुस्सा में हो तो रो देती है।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
maa ho kar bhi main ab tak apni maa ki mamta ki thaah nahin paa paai .......maa ishwar ka sakhshaat roop hai .........bas sahbd itani hi vyakhya kar sakte hain .
bahut hi sundar ..........maa ko sirf yaad kar lo our urja se bhar jao
Maan ki to bat hi nirali hai.bahut sundar abhivyakti.
Beautiful Lines. You Defined Mother in very efficient way. I have no words to appreciate your post.
http://opalchaudhary.blogspot.com/2009/07/blog-post_14.html
माँ ! एक ऐसा शब्द जिसके अंत को खोजते रहो परंतु इसकी अंत डोर नही मिल सकती.
किसी भी परेशानी मैं हो तो माँ को याद कर लो मन का बोझ हल्का हो जाता है और हर परेशानी दूर हो जाती है......
आपने बहुत अछा लिखा है.....पर माँ को तो शब्दो मैं अभिव्यक्त ही नही कर सकते.....ऐसी ही दिल को छू लेने वाली कविता को लिखना ज़ारी रखिएगा.
धन्यवाद
राजेंदर चौहान
http://rajenderblog.blogspot.com
धन्यवाद !
सुन्दर।
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