Monday, October 20, 2008

मेरी माँ

अब आगे

हम आर्य है और आर्य श्रेष्ठ मनु ने कहा है "कन्याप्येंव पालनीया शिक्षा ......... । पुत्रियों का पुत्रो की समान सावधानी और ध्यान से पालन और शिक्षण होना चाहिए । लेकिन ऐसा होता कहा हैं ।

मेरी माँ का नाम रखा गया 'विजय लक्ष्मी ' । बड़े घरों की बेटियाँ स्कूल पढने नहीं जाती थी । मुश्किल से ५ वी जमात तक ही पढाई हो पाई। पर उस समय की पढाई अज की किताबी पढाई से लाख गुना बेहतर थी। और जो काम लड़किओं को जिन्दगी भर करने होते उसकी शिक्षा बखूबी सिखाई गई । और सीखी भी कढाई, बुनाई ,सिलाई और सबसे ज्यादा दुनिआदारी ।

जमींदारो के यहाँ महिलाओं को ,बेटिओं को खेत पर जाने की मनाही थी । अज भी परम्परागत परिवारों की महिलाएं यह नहीं जानती उनके खेत कहाँ पर है । सिर्फ चारदीवारी दुनिया थी उस समय ।

मेरे नाना गज़ब के शिकारी थे । ४-४ महीने जंगलो में शिकार खेलते थे । बैल गाड़ियों से रसद व कारतूस पहुचते रहते थे ,उधर से हिरन ,शेर ,चीते की खाले घर भिजवाई जाती थी । जमींदारो के शौक ने जंगली जानवर तो खत्म किये ही साथ ही अपने शौको को पूरा करने के लिए अपनी जमींदारियां भी खत्म कर दी ।

उधर माँ अपने मामा के पास से वापिस आ गई , लाड -प्यार हावी हो रहा था लेकिन नानी के कुशल निर्देशन में मेरी माँ घरेलू कामो में पारंगत हो चुकी थी । मेरे मामा जो माँ से बड़े थे उन्हें एक मास्टर घर पर पढाने आते थे । बहुत मारते थे ,लाढ़-प्यार में पले मामा की तरफदारी नाना करते थे । और मास्टर को मनाही हो गई की मार न हो । मास्टरजी ने फिर मारा उसका परिणाम यह हुआ उनकी नाक कटवा ली गई । इसके बाद पढाई से मेरी ननिहाल का नाता टूट गया । कोई मामा ज्यादा न पढ़ सका ।

नाना नानी ने अपनी बेटी के लिए दहेज सहेजना शुरू किया उस समय हाथी दहेज में देना शान की बात थी । इसलिए एक हाथी खरीदा गया ,बेटी को देने के लिए ....................

शेष आगे ...


6 comments:

Udan Tashtari said...

बढ़िया लग रहा है यह सब जानना. दहेज में हाथी??..गजब था वो जमाना भी..आगे इन्तजार है.

दिनेशराय द्विवेदी said...

दहेज में हाथी? शानदार इंतजाम था लड़की के ससुराल को बरबाद करने का। घर का खाए तो घर बरबाद गांव का खाए तो गांव बरबाद।

रंजू भाटिया said...

वाह यह दहेज़ बहुत पसंद आया :) कुछ बात तो बनी देने में :) ...जारी रखे रोचक है यह

Shastri JC Philip said...

धीरू, भईया, तुम तो एक कहानीकार के समान लिखते हो!

आगे कोई भी पोस्ट प्रकाशित करना हो तो मुझे सूचना दे देना, जिससे को फोल्डर में पडा लेख छपने पर पीछे न चला जाये.

आज मैं ने इसे सबसे आगे कर दिया है, क्योंकि यह सबसे नया लेख है एवं इसे आगे होना चाहिये.

-- शास्त्री

-- हिन्दीजगत में एक वैचारिक क्राति की जरूरत है. महज 10 साल में हिन्दी चिट्ठे यह कार्य कर सकते हैं. अत: नियमित रूप से लिखते रहें, एवं टिपिया कर साथियों को प्रोत्साहित करते रहें. (सारथी: http://www.Sarathi.info)

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

अब आगे??
इसके पीछे वाला कहाँ है जी? मुझे मिल नहीं रहा। इतना रोचक है कि आगे-पीछे कुछ भी छोड़ना नहीं चाहता।

आदरणीय शास्त्री जी, कृपया मदद करें।

आत्महंता आस्था said...

Maa/sara dard piti hai/shishu ki muskan ko dekh jiti hai//maine dekha tadapte use/jivan ki antim bela me/ye tadpana, kya kalyug ki riti hai?