Tuesday, October 7, 2008

माँ दुर्गा की पूजा का तिहवार भला है...!!


माँ दुर्गा की पूजा का तिहवार भला है।
घर-घर में पूजा-अर्चन का दीप जला है॥
बच्चों के स्कूल बन्द, सब खिले हुए हैं।
छुट्टी औ मेला, माँ का उपहार मिला है॥

माँ की उंगली पकड़ चले माँ के मन्दिर को।
कुछ ने राह पकड़ ली नानीजी के घर को॥
गाँवों में मेला - दंगल पर दाँव चला है।
रावण का पुतला भी इसमें खूब जला है॥

मुझको भी वह दुर्लभ छाँव दिलाती माता।
शहर छोड़कर माँ के चरणों से मिल पाता॥
ममता के आँचल से लेकर मन की ऊर्जा।
नयी राह पर बढ़ने को सिद्धार्थ चला है॥

माँ दुर्गा की पूजा का तिहवार भला है।
घर-घर में पूजा-अर्चन का दीप जला है॥

(सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी)

7 comments:

कुश said...

नमन माँ के नौ रूपो को... बहुत ही सुंदर अर्चना है

seema gupta said...

माँ दुर्गा की पूजा का तिहवार भला है।
घर-घर में पूजा-अर्चन का दीप जला है॥
" wah, bhut hee sunder'

regards

दिनेशराय द्विवेदी said...

त्योहार का अच्छा वर्णन है।

महेन्द्र मिश्र said...

bahut badhiya.
jay maan bhavani .

Satish Saxena said...

"माँ की उंगली पकड़ चले माँ के मन्दिर को।
कुछ ने राह पकड़ ली नानीजी के घर को॥"

वाह क्या खुबसूरत गीत लिखा है त्रिपाठी जी आपने ! माँ के साथ माँ महामाया का गुणगान ! इतने सुंदर पूजा अर्चन के लिए धन्यवाद !

mamta said...

आपने कविता मे पूजा और त्यौहार सभी को समेट कर बहुत अच्छा चित्रण किया है ।

रंजू भाटिया said...

माँ के यह रूप और साथ में त्योहारों का लिखना बहुत अच्छा लगा