Friday, October 10, 2008

ममता की उधेड़बुन

हाथ सिलाई की मशीन देख,
आज फिर बचपन की याद आ गई...
टुक टिक टुक टिक की धुन...
फिर आ कानों में छा गई...

कितने रंगों में सजाया करती थी....
कितने सपनों को सिला करती थी...
कभी रात भर जग कर तुरपाई...
फिर कुर्सी पर लगी आँख...सोई चारपाई

तेरे सपनों में अच्छी दिखती थी...
काला ठीका लगा कर चलती थी....
तू कल के माप के सपने बुनती थी...
मैं उन्हे पहन कर हँसती थी ...

फिर एक दिन ना जाने क्या हुआ था
...समय ने कुछ इस तरह छुआ था....
तूने चलना सिखाया मैं उड़ने लगी थी...
तेरे रंगों से कतराने लगी थी....

उस दिन तू अपना सपना लेकर...
रोई थी कोने में सिसक कर...
उस दिन एक लम्बी चिट्ठी लिखी थी.......
तूने सोचा मैं सोई.......
मैं सोई नहीं थी...

रंग मेरा बहुत सुंदर नहीं था...
पल्लू पकड़ तुझसे कहा था...
मुझे भी सिखाओ सपनों को बुनना....
तेरे सपने अब नहीं है पहनना....

रात भर जग कर जो सपना बुना था...
मशीन बंद कर उसपर रखा था....
"बड़ी तू हो गई...
जा खुद ही सिलना...... "
तूने सोचा मैं गई....
मैं वहीं पर खड़ी थी .....

किताबों को पढ़कर चली कुछ बनाने....
सखी ने कहा बड़ा सुन्दर बना है...
तुझको दिया था बड़े प्यार से...
तू पहनेगी इसको इस अरमान से..
तूने उसको एक कोने में टाँगा........
तूने सोचा मैने देखा नहीं...
भरी आँख ले वहीं पर खड़ी थी....

कितने ख्वाबों को मैने बुना है....
सबने कहा खूबसूरत बना है...
तूने उसे कभी देखा ही नहीं......
शायद इसलिए कभी मुझे भाया नहीं है

अकेले एक दिन मेरे कमरे में आकर...
तह किए ख्वाबों को तू देख रही थी...
तेरे सपनों के रंगों जैसे ही थे यह...
हल्की मुस्कान थी...आंसू की चमक भी......
तूने सोचा मैं वहाँ पर नहीं थी..
तेरे आशीष के लिए तरसी रुकी थी....

आज फिर यह धुन यादों में आई....
साथ में पुराने सपने भी लाई....

बिटिया मेरे सपनों में सजी थी....
काला ठीका लगा हँस कर खड़ी थी...

कोने में कुछ भी ना टंगा था...
क्या माँ ने उसको ओढ़े रखा था ...???

7 comments:

Shastri JC Philip said...

आज सुबह एकदम मर्मस्पर्शी कविता पढने को मिली. कृपया इस चिट्ठे पर लिखती रहे!!



-- शास्त्री जे सी फिलिप

-- बूंद बूंद से घट भरे. आज आपकी एक छोटी सी टिप्पणी, एक छोटा सा प्रोत्साहन, कल हिन्दीजगत को एक बडा सागर बना सकता है. आईये, आज कम से कम दस चिट्ठों पर टिप्पणी देकर उनको प्रोत्साहित करें!!

दिनेशराय द्विवेदी said...

सुन्दर भावप्रवण कविता।

Sadhak Ummedsingh Baid "Saadhak " said...

माँ में सब संसार है, माँ जीवन का सार.
माँ से ही सांस्रं मिली,माँ की कर संभार.
माँ की कर संभाल,ये भारत पु्नः पुकारे.
आतंकी को मार, जो भारत माँ को मारे.
कह साधक कवि,पुण्य प्रकट हैं सारे माँ में
ममता की पुकार, अर्पित कर सांसें माँ में .

Unknown said...

बहुत ही भावनात्मक कविता । आपके बचपन के दिन दिखाये । बहुत ही सुन्दर लिखा हे आपने ।

डा.संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी said...

उत्तम बहुत उत्तम!
www.rashtrapremi.com

Satish Saxena said...

बहुत सुंदर यादें !

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

देर से आकर पछता रहा हूँ...। इतनी सुन्दर भावप्रवण कविता का सुख देर से जो मिला।

आपको बधाई, सपने देखना अच्छी बात है।