Saturday, October 25, 2008

जीवन दायिनी, शक्तिदायिनी माँ


मै और मेरी माँ


आज धन-तेरस है, मेरी माँ का जन्म-दिवस, कहते है धन-तेरस के दिन सोना, चाँदी, रत्न आदि की खरीदारी को श्रेष्ठ माना जाता है, मेरी माँ भी एक रत्न के रूप में मेरे नाना को धन-तेरस के दिन प्राप्त हुई थी। माता-पिता की लाडली सन्तान होने के साथ-साथ मेरी माँ चार भाईयों की इकलौती बहन भी थी, नाना बड़े प्यार से उन्हे संतोष कहकर पुकारा करते थे, जैसा नाम वैसा ही गुण, खूबसूरत होने के साथ-साथ कोयली सी मीठी बोली सबको लुभाती थी।

नाना-नानी और चार भाईयों के प्यार में माँ पल कर बड़ी हुई। नटखट हिरनी सी यहाँ-वहाँ कुलाँचे भरती माँ सभी के मन को मोह लेती थी, तभी तो दादा जी उन्हे देख पोते की बहू बनाने को लालायित हो उठे थे। छोटी सी उम्र में माँ नाना का घर छोड़ एक अन्जान शहर में आ गई। लाड़ प्यार से पली माँ एक घर की बहू बन बैठी और वो भी घर की बड़ी बहू। घर में सब माँ को पाकर बहुत खुश थे। एक-एक कर मेरी दो बहन और भाई का जन्म हुआ, फ़िर मै पैदा हुई, समय जैसे पंख लगा उड़ता रहा। घर में खुशियाँ ही खुशियाँ लहरा रही थी, मेरे पिता की मै ही छोटी और लाडली बेटी थी, तभी मुझे पता चला मुझसे छोटा भी कोई आने वाला है, मेरे दादा-दादी एक बेटे की आस लगाये माँ का चेहरा निहारते रहते, हम सब की खुशी का पारावार न रहा जब मेरे छोटे भाई ने जन्म लिया।

रोमांच और खुशी से सारा घर नाच उठा मगर तभी सब पर बिजली सी गिरी एक दुर्घटना में मेरे पिता की दोनो आँखे चली गई। हम पर तो जैसे दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। स्वाभिमान से जीने वाले मेरे पिता को हर काम के लिये किसी न किसी का सहारा लेना पड़ता था। कमाई का कोई साधन न था। किसी तरह चाचा के भेजे हुऎ पैसे ही घर की गुजर-बसर के काम आते थे। मैने अपनी माँ को पल्लू से मुँह छिपा कर कई बार रोते देखा था। नाना, मामा आ-आकर माँ को वापिस चलने के लिये कहते थे। नाना कहते थे संतोष इनके बच्चों को छोड़ और चल हमारे साथ, क्या सारी जिंदगी एक अंधे के साथ बितायेगी? अभी तेरी उम्र ही क्या है, हम तेरी दूसरी शादी कर देंगें, दर असल माँ उस समय सिर्फ़ सत्ताईस साल की थी। और उनके आगे पूरी जिंदगी पहाड़ सी खड़ी थी।

लेकिन माँ ने हिम्मत न हारी और अपने पिता को यह कह कर लौटा दिया कि यह हादसा अगर मेरे साथ या आपके अपने बेटे के साथ हो जाता तब भी क्या आप यही सलाह देते? नाना जी बेटी के सवाल का जवाब न दे पायें और उन्हे इश्वर के हवाले कर चले गये। ऎसा नही की माँ उस समय डरी नही, माँ बहुत डरी-सहमी सी रहती थी, परन्तु उन्हे मजबूत बनाने में मेरी दादी ने पूरी मदद की थी । दादी की हर डाँट-फ़टकार को माँ एक सबक की तरह लिया करती थी। पिता का नेत्रहीन होना अब उन्हे खलता नही क्योंकि पिता ने भी अपना हर काम खुद करना सीख लिया था, अब घर की कमान सम्भाली माँ के मजबूत हाथों नें। घर में ही रह कर उन्होने कपड़े सीलने, स्वेटर बनाने का काम शुरू कर दिया था। हम सब भाई-बहनों ने पढ़ाई के साथ-साथ घर का काम आपस में बाँट लिया था। मेरे पिता ने भी विपरीत परिस्थितियों में धैर्य नही खोया। माँ का हाथ बटाने की उन्होने भरसक कोशिश की।

मुझे आज भी याद है ठण्डी रोटी को गुड़ के साथ चूर कर वो हमारे लिये लड्डू बनाया करते थे। जिसे खाकर हम भाई बहन स्कूल जाया करते थे। दुनियां भर की तकलीफ़ों, रूकावटों के बावजूद माँ और बाबा ने हिम्मत नही हारी और हमें खूब पढ़ाया। इस काबिल बनाया की हम अपनी जिंदगी खुशी से बिता सकें। खुद अभावों में रहकर भी हमारे लिये सुख की कामना करने वाली वो माँ आज बहुत खुश है क्योंकि उसके दोनो बेटे आज ऊँची-ऊँची पोस्ट पर है और वो बेटियाँ जो हर पल उनकी आँखों में उम्मीद बन कर रहती थी। उनकी आँखों की रोशनी बन गई हैं।

आज भी जब कोई मुझे कहता है कि मुझमें बहुत आत्मविश्वास है, मै अपने पीछे माँ को खड़ा महसूस करती हूँ। पहले पढ़ा करते थे, अकबर और शिवाजी की तरह धरती माँ के न जाने कितने वीर-विरांगनाएं हैं जिन्हे माँ से संबल मिला है। मुझे भी मेरी माँ से ही विषम परिस्थितियों का डट कर सामना करने की प्रेरणा मिली है। माँ ने ही बताया कि कठीन परिश्रम, रिश्तों में इमानदारी बड़े से बड़े खतरों से भी हमें उबार लेती हैं। किसी रिश्ते को तोड़ना जितना आसान है निभाना उतना ही मुश्किल। माँ का होना जीवन में हर दिन धन तेरस सा लगता है। माँ वो नायाब रत्न है जिसे संजो कर वर्षों से मैने अपने दिल में सजा रखा है।

सुनीता शानू

24 comments:

MANVINDER BHIMBER said...

माँ का होना जीवन में हर दिन धन तेरस सा लगता है। माँ वो नायाब रत्न है जिसे संजो कर वर्षों से मैने अपने दिल में सजा रखा है।

kya baat hai...sunder

दिनेशराय द्विवेदी said...

आप की माँ को प्रणाम उन्हों ने अपने श्रम और बलिदान से अपने पति की अंधता के अभिशाप को धो दिया।
दीपावली पर सभी को हार्दिक अभिनन्दन!

रंजू भाटिया said...

माँ लफ्ज़ ही सुंदर एहसास है ... ..दीवाली की बधाई आपको

उन्मुक्त said...

सुनीता जी आपकी मां से मिल कर अच्छा लगा। कुछ देर के लिये लगा कि आपने स्वयं अपनी और अपनी पुत्री का चित्र श्वेत-श्याम में खिंचवाया है।

Sumit Pratap Singh said...

सादर ब्लॉगस्ते,


दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं। आपने मेरे ब्लॉग पर पधारने का कष्ट किया व मेरी रचना 'एक पत्र आतंकियों के नाम' पर अपनी अमूल्य टिप्पणी दी। अब आपको फिर से निमंत्रित कर रहा हूँ। कृपया पधारें व 'एक पत्र राज ठाकरे के नाम' पर अपनी टिप्पणी के रूप में अपने विचार प्रस्तुत करें। आपकी प्रतीक्षा में पलकें बिछाए...

आपका ब्लॉगर मित्र

Sanjeet Tripathi said...

प्रणाम उन्हें!

Sajeev said...

mera bhi naman unhe

Kavita Vachaknavee said...

बलदायिनी माँ इसे ही कहते हैं।
प्रसन्न रहो।

36solutions said...

माँ को प्रणाम ।


बहुत सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

ghughutibasuti said...

आपको व आपके परिवार को भी दीपावली पर हार्दिक शुभ कामनाएं ।
आपकी माँ का साहस व स्वाभिमान अनुकरणीय व वन्दनीय है। जन्मदिन की उन्हें बहुत बहुत शुभकामनाएं । वे सुखी जीवन के साथ बहुत सारे जन्मदिन मनाती रहें ।
घुघूती बासूती

Truth Eternal said...

apki maa ke prerNadaayi Vyaktiyva ko PraNam.....
Ya Devi sarvabhooteshu shraddha roopeN sansthita namastasyaih namastasyaih namastasyaih namo namah.....

Bhawna Kukreti said...

aapki aadarniya maa ka vritant sach me prernadayak hai . aapki maa evam aap sabhi sudhi pathakjano ko dhanteras aur deepawali ke saath saath bhaiyadooj ki bhi subhkamnaayein
http://induslady.blogspot.com

Asha Joglekar said...

माँ में ही वह शक्ती होती है जो उसे कठिन से कठिन समय से जूझने का बल देती है । आपकी माँ इस बात की मिसाल हैं ।

पंकज सुबीर said...

आदरणीया मां को प्रणाम । ईश्‍वर हर स्‍थान पर नहीं जा सकता था इसलिये उसने मां को बनाया । मा के रूप में हम सब के घरों में ईश्‍वर ही तो होता है ।
पुन: ऐसा लगता है कि आपका ब्‍लाग जगत से मोहभंग जैसा कुछ हो गया है तभी तो कोई पोस्‍ट नहीं कुछ नहीं ।

Suneel R. Karmele said...

मेरी दुनि‍यॉं है मॉं तेरे ऑंचल में .....
मॉं तो मॉं होती है.....


दीपावली की अनन्‍त शुभकामनाऍं।

आकाश: said...

मां एक ऐसा ज्योतिपुंज है जो स्वयं जल कर अपने बच्चों का मार्गदर्शन करता है. आपकी माता जी के आदर्श आपके आदर्श बन गये है. आपकी माता जी की हिम्मत और संबल आपके जीवन के भी अभिन्न अगं बन गये. आदरणीय माता जी को उनके जन्म दिन के अवसर पर हार्दिक बधाई और शुभकामनायें तथा मेरा प्रणाम.

Kapil said...

हमारे मन का दीप खूब रौशन हो और उजियारा सारे जगत में फ़ैल जाए इसी कामना के साथ दीपावली की आपको और आपके परिवार को बहुत बहुत बधाई।

prakharhindutva said...

मैं न तो दिवाली की शुभकामनाएँ दूँगा न ही इन मुसलमानों के रहते दिवाली मनागा.. क्योंकि जानता हूँ यही हमारी मातृभूमि के साँप हैं... अतएव इनकी विचारधारा इसलाम को देश से खदेड़ के ही हमें चैन मिलेगा.... जय भारत.. जय हिन्दुत्व

www.prakharhindu.blogspot.com

भूतनाथ said...

आपकी सुख समृद्धि और उन्नति में निरंतर वृद्धि होती रहे !
दीप पर्व की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !

भूतनाथ said...

आपकी सुख समृद्धि और उन्नति में निरंतर वृद्धि होती रहे !
दीप पर्व की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !

kavi kulwant said...

naman!
kulwant singh

kavitaprayas said...

कहीं सुना था .....
अच्छे कर्मों के बीज यही
अपने बच्चों में बोती है,
उनके आने वाले कल की
बुनियाद यही तो होती है,
माँ से ये सृष्टि चलती है ,
सृष्टि का माँ से नाता है,
क्या अर्थ है नारी होने का ,
माँ बनके समझ में आता है .....

बहुत सुंदर सुनीता ! लिखती रहो !
-अर्चना

सुनीता शानू said...

आप सभी सुधीजनों को मेरा सादर नमन...आपने मेरे साथ मेरी माँ का जन्म दिवस पर उन्हे शुभ-कामनाएं अर्पित की इससे अधिक खुशी की बात मेरे लिये क्या हो सकती थी, आप सभी का तहेदिल से शुक्रिया। और पंकज भाई नेट की दुनियां से मोह कभी था ही नही हाँ अपने ब्लॉगर मित्रों से जरूर मोह था और है,बस आजकल कुछ अभद्र टिप्पणी करने वालो से ऊब कर टिप्पणी करना छोड़ दिया है...परन्तु मै अपनी पसंद के ब्लॉग पढ़ती अवश्य हूँ...

सुनीता शानू

हरिराम said...

आदरणीय माँजी को सादर प्रणाम।