Sunday, October 5, 2008
माँ की कामना !
काफी दिनों से माँ पर लिखने की सोच रहा था, अपनी माँ के बारे में कुछ याद ही नही मगर भावः विह्वल होकर जब भी माँ याद आती है तो एक काल्पनिक आकृति अवश्य उभरती है कि मेरी अम्मा ! भी शायद ऐसी ही होगी ! जब पहली बार डॉ मंजुलता सिंह से मिला तो यकीन नही कर पाया कि क्या कोई महिला ७० वर्ष की उम्र में, इतनी व्यस्त और कार्यशील हो सकती हैं ! डॉ मंजुलता सिंह Ph.D., जन्म १९३८ , लखनऊ यूनिवर्सिटी से गोल्ड मेडलिस्ट, ४० वर्ष शिक्षक सेवा के बाद दौलत राम कॉलेज, दिल्ली यूनिवेर्सिटी हिन्दी विभाग से, रीडर पोस्ट से रिटायर, रेकी ग्रैंड मास्टर (My Sparsh Tarang) के रूप में लोगों की सेवा में कार्यरत ! सात किताबें एवं २०० से अधिक लेख प्रकाशित हो चुके हैं, इस उम्र में भी वृद्धजनों की सेवा में कार्यरत ! ममतामयी ऐसी कि उनको छोड़कर उठने का दिल ही नही कर रहा था ! ऐसे सशक्त हस्ताक्षर की एक कविता "माँ " में प्रकाशन हेतु भेज रहा हूँ !
माँ की कामना
धरती हैं माँ ,
पृथ्वी हैं माँ
सबके पेरो के नीचे हैं माँ ।
देखती हैं , सुनती हैं , सहती हैं
कोई धीरे धीरे चलता हैं
कोई धम - धम चलता हैं
कोई थूकता है ,
कोई गाली देता हैं
कोई कूड़ा गिराता है
कोई पानी डालता हैं
सभी बच्चे हैं उसके
माँ पृथ्वी कुछ नहीं कहती
कहे भी किससे ?
और क्या कहे ?
जन्म दिया हैं जिनको
उनसे कैसे बदला ले ?
कैसे दंड दे ?
उसे तो क्षमा करना हैं ,
क्षमा - बस क्षमा वहीं उसका सुख हैं ,
वही उसकी सफलता
उसके बच्चे कही भी ,
कैसे भी जाये उसकी छाती पर चढ़ कर
बस आगे बढ़ कर यही उसकी कामना हैं ।
- डॉ मंजुलता सिंह
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14 comments:
सभी बच्चे हैं उसके
माँ पृथ्वी कुछ नहीं कहती
कहे भी किससे ?
और क्या कहे ?
जन्म दिया हैं जिनको
उनसे कैसे बदला ले ?
कैसे दंड दे ?
" very real imagination and picturization about "MAA", or maa ke barey mey jitna likha jaye kum hai.."
regards
प्रिय सतीश,
इस हीरे को ढूँढ कर माँ के पाठको के समक्ष रखने के लिये आभार !!
-- शास्त्री जे सी फिलिप
-- बूंद बूंद से घट भरे. आज आपकी एक छोटी सी टिप्पणी, एक छोटा सा प्रोत्साहन, कल हिन्दीजगत को एक बडा सागर बना सकता है. आईये, आज कम से कम दस चिट्ठों पर टिप्पणी देकर उनको प्रोत्साहित करें!!
बढिया रचना प्रेषित की है।आभार।
बहुत ही सुंदर रचना पढ़वाने का शुक्रिया ।
बहुत ही सुंदर रचना
डॉ मंजुलता सिंह, उनके लेखन एवं उनके जज्बे को मेरा सादर प्रणाम!! आपका बहुत आभार परिचय कराने के लिए एवं इस उम्दा रचना को यहाँ लाने के लिए.
प्रिय सतीश जी
आशीर्वाद
आप ने मेरे साथ जो आदर और सम्मान व्यक्त किया हैं उसके लिये मै आप से यही कह सकती हूँ की यह सम्बन्ध आप के लिये कुछ ऐसा कर सके जिससे आप और नये आयामों को छूने मे सफलता प्राप्त करे
प्यार सहित
मंजुलता सिंह
माँ के आशीर्वाद से बड़ा और कोई भौतिक सुख हो ही नही सकता, बस प्यार से वही दीजिये !
माँ को कभी
वेदना नहीं होती
यदि बच्चे खुश रहें।
to see my mothers poem here is very good feeling , i tried many times that she learns computer but i failed !!!! so decided to put some works from her on blog myself
thanks satish bhai { now since you call her माँ ! i can call u bhai } for being kind enough to put it here
thanks all the readers who have been kind ennough to comment and appreciate
i would request you to see her blog to read more of her . blog links have been given in the post
कहे भी किससे ?
और क्या कहे ?
जन्म दिया हैं जिनको
उनसे कैसे बदला ले ?
कैसे दंड दे ?
उसे तो क्षमा करना हैं
yehi to maa ka roop hai.. maafi dena.... bahut hi sacchi rachna hai apaki....
Its my pleasure Rachna ji! you are enough lucky to find such mother.
बेहद सुंदर।
बहुत सुंदर .इतनी सुंदर कविता से परिचित करवाने के लिए शुक्रिया सतीश जी
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