किस अतीत को याद कर रहीं,
कौन ध्यान में तुम खो बैठी,
चारों धामों का सुख लेकर,
किस चिंता में पड़ी हुई हो!
ममतामय मुख, दुःख में पाकर सारी खुशिया खो जाएँगी,
एक हँसी के बदले अम्मा, फिर से मस्ती छा जायेगी !
सारे जीवन, हमें हंसाया,
सारे घर को स्वर्ग बनाया,
ख़ुद तकलीफ उठाकर अम्मा
हम सबको हंसना सिखलाया
तुमको इन कष्टों में पाकर, हम जीते जी मर जायेंगे ,
एक हँसी के बदले अम्मा, फिर से रौनक आ जायेगी !
कष्ट कोई ना तुमको आए
हम सब तेरे साथ खड़े हैं,
क्यों उदास है चेहरा तेरा,
किन कष्टों को छिपा रही हो
थकी हुई आँखों के आगे , हम सब कैसे हंस पाएंगे !
एक हँसी के बदले अम्मा , रंग गुलाल बिखर जायेंगे
सबका, भाग्य बनाने वाली,
सबको राह दिखाने वाली
क्यों सुस्ती चेहरे पर आयी
सबको हँसी सिखाने बाली
तुमको इस दुविधा में पाकर, हम सब कैसे खिल पायेंगे
तेरी एक हँसी के बदले , हम सब जीवन पा जायेंगे!
कौन ध्यान में तुम खो बैठी,
चारों धामों का सुख लेकर,
किस चिंता में पड़ी हुई हो!
ममतामय मुख, दुःख में पाकर सारी खुशिया खो जाएँगी,
एक हँसी के बदले अम्मा, फिर से मस्ती छा जायेगी !
सारे जीवन, हमें हंसाया,
सारे घर को स्वर्ग बनाया,
ख़ुद तकलीफ उठाकर अम्मा
हम सबको हंसना सिखलाया
तुमको इन कष्टों में पाकर, हम जीते जी मर जायेंगे ,
एक हँसी के बदले अम्मा, फिर से रौनक आ जायेगी !
कष्ट कोई ना तुमको आए
हम सब तेरे साथ खड़े हैं,
क्यों उदास है चेहरा तेरा,
किन कष्टों को छिपा रही हो
थकी हुई आँखों के आगे , हम सब कैसे हंस पाएंगे !
एक हँसी के बदले अम्मा , रंग गुलाल बिखर जायेंगे
सबका, भाग्य बनाने वाली,
सबको राह दिखाने वाली
क्यों सुस्ती चेहरे पर आयी
सबको हँसी सिखाने बाली
तुमको इस दुविधा में पाकर, हम सब कैसे खिल पायेंगे
तेरी एक हँसी के बदले , हम सब जीवन पा जायेंगे!
मेरे गीत ! पर प्रकाशित !
8 comments:
प्रिय सतीश, आज का कामधाम खतम करके (11.50 पीएम) मैं संगणक बंद करने वाला था कि अंतरात्मा की आवाज हुई कि माँ पर एक नजर डाल लूँ.
चित्र देखते ही दिल धक रह गया -- ऐसा मर्मस्पर्शी चित्र से आप ने अपनी रचना प्रारंभ की है.
फिर कविता पढी, कई बार मन में छिपे भाव चेहेरे पर आये, लेकिन छुपाने की जरूरत न पडी क्योंकि इस अर्धरात्रि में मेरी लाईब्रेरी-कम-आफिस में मेरे अलावा कोई और नहीं है.
आभार! आभार !!
सस्नेह
-- शास्त्री
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
http://www.Sarathi.info
सतीश जी पता नही क्यो यह चित्र तो मुझे अपनी मां का ही लगता हे वह भी आजकल ऎसे ही शकल बना लेती हे, पता नही कया सोचने लगती हे, राम जाने ...
धन्यवाद
सबका, भाग्य बनाने वाली,
सबको राह दिखाने वाली
क्यों सुस्ती चेहरे पर आयी
सबको हँसी सिखाने बाली
तुमको इस दुविधा में पाकर, हम सब कैसे खिल पायेंगे
तेरी एक हँसी के बदले , हम सब जीवन पा जायेंगे!
क्या खूब लिखा है.... साथ ही गीत के अनुरूप चित्र भी.........बहुत अच्छा लगा।
संगीता जी !
यह चित्र देख कर ही इस कविता की रचना हुयी थी ! इस चित्र से ही लग रहा था कि वे ७३ वर्ष की उम्र में आकर कुछ अभाव सा महसूस कर रहीं हैं, और थक गयी हैं ! इस अहसास ने ही मुझे मजबूर किया यह पत्र( कविता) लिखने को !
सुन्दर... साधुवाद।
बहुत ही अधिक भावुक कर देने वाले रचना लिखी है आपने ..माँ के चेहरे के भाव इस चित्र से खूब उभर कर आए हैं|
भावुक कर देने वाले रचना..
Satish Baiya aapne bahut achchhi kavita likhi hai...
Mai jab bhi Maa par koi kavita dekhata hoon to jarur padhata hoo
Aur aaj aap ki kavita padh kar meri aankhe nam ho gayi...
Bahut Bahut badhai...
Regards
Post a Comment