आज माँ के बारे में, कैसा अजीब दिन १९९१ ,१९ सित' आखरी दिन जब माँ से मिल रहा था।
लखनऊ का एस जी पी जी आई का वह कमरा आज भी मेरी आँखों के सामने । एक छोटे सा ओपरेशन जो २० तारीख को होना था, बी आई पी मरीज़ स्वास्त मंत्री तीमारदार, मुख्य मंत्री हाल चाल ले रहा हो तो बड़ा डोक्टर आया ओपरेशन करने जो प्रोफेसर था और अनास्तासिया के समय सब कुछ ख़त्म।
विशिस्ट होने कि सजा मिली हमको । इससे आगे फिर कभी आज नहीं क्योंकि आज मेरी माँ बहुत दूर चली गई । और सब कुछ रह गया उनके पीछे । आज जो हम है वह उन्ही कि दें थी । पापा का संसद सदस्य होने में उनकी भूमिका सिर्फ यादें और यादे ...................
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7 comments:
sir sabke life me ek sanjog hota hai joki kae bar khusi to kae bar jindagi bhar ka gam de jati hai, sayad mai un me se hu, dhnyabad yad dilane ke liye
प्रिय धीरू, इस मर्मस्पर्शी आलेख के लिये आभार.
आलेख के लेआऊट में जो परिवर्तन किया गया उसे जरा देख लेना कि अब कितना आकर्षक हो गया है. आगे से छोटे से छोटे लेख को भी पेराग्राफ में बांट देना.
सस्नेह !!
-- शास्त्री
-- ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है जिसने अपने विकास के लिये अन्य लोगों की मदद न पाई हो, अत: कृपया रोज कम से कम 10 हिन्दी चिट्ठों पर टिप्पणी कर अन्य चिट्ठाकारों को जरूर प्रोत्साहित करें!! (सारथी: http://www.Sarathi.info)
बहुत बढिया और सटीक लेखन ब्लोग जगत में आपका स्वागत है निरंतरता की चाहत है
फुर्सत हो तो मेरे ब्लॉग पर भी दस्तक दें
आप ने संक्षेप में बहुत कुछ कह दिया है।
बहुत कुछ कह दिया आपके इन चाँद लफ्जों ने
बहुत सटीक लेखन फुर्सत निकाल कर मेरे ब्लॉग पर पुन: दस्तक दें
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