Monday, September 29, 2008

तेरी ममता जीवनदायी …माई ओ माई …

जाने अनजाने माफ़ किया था मेरी हर ग़लती को,
हर शरारत को हँस के भुलाया था,
दुनिया हो जाए चाहे कितनी पराई,
पर तुमने मुझे कभी नही किया पराया था,
दिल जब भी भटका जीवन के सेहरा में,
तेरे प्यार ने ही नयी राह को दिखाया था

 

माँ वह व्यक्ति है जिसे मानवजगत में सबसे अधिक आदर, सम्मान एवं सहारा मिलना चाहिये. दुर्भाग्य यह है कि कई बार जिसे मिलना चाहिये उसे तो नहीं मिल पाता, लेकिन जो सम्मान के कतई योग्य नहीं होता वह हम से हर तरह का आदर, सम्मान एवं सहारा पा लेता है.

उम्मीद है कि कम से कम  माँ चिट्ठा इस संसार के एक कोने में कुछ हजार (जल्दी ही कुछ लाख) हिन्दीभाषियों को इस स्थिति से उबारने में मदद करेगा जिससे कम से कम वे अपने अपने मित्रों को इस विषय में शिक्षित एवं सचेत कर सकें.

माँ पर पहला आलेख हम किसी माँ से छपवाना चाहते थे, लेकिन माँ तू महान है आलेख को छाप कर अंकित बाजी मार ले गये. अच्छा ही हुआ क्योंकि पढाई के लिये माँ से बिछुड कर रहने वाले एक युवा से अधिक कौन माँ के बारें में लिख सकता है. अंकित का दिल निम्न पंक्तियों में देख सकते हैं:

मैं, अंकित, यहाँ इंदौर में अपने घर से काफी दूर पढने के लिए आया हूँ। कोई भी दिन ऐसा नही जिस दिन मैंने माँ को याद नही किया हों। जैसा की मैंने पहले ही कहा है माँ को शब्दों में नही बाँध सकतें।

लेकिन कई लोग छुट्टियों में वापस मां के पास जाने की बाट नहीं जोह सकते एवं ऐसे एक व्यक्ति की अनुभूति छापी है उज्ज्वल ने मेरे पास माँ नहीं है!!! में. उनका कहना है,

अब माँ तो चली गई और रह गये आप- बिल्कुल अकेले क्योकि वो प्यार-दुलार, ममता और कोई दूसरा आपको चाहकर भी न तो दे सकता है और ना ही आप उससे ले सकते है। एक शून्य जैसा एहसास होने लगता है आसपास- जैसे कि आप अभी तक एक खोल मे सिमटे पड़े थे और अचानक आपको किसी ने छिलके से बाहर निकाल दिया हो।

इस बीच डबडबाई आँखों से ताहिर फ़राज के गीत के कुछ बोल उनको सलाम करते हुए सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने तेरी ममता जीवनदायी …माई ओ माई … मे दिया. हर पाठक रो पडा.

अजब संजोग  में धीरु सिंह ने बताया कि कैसे उनकी माताश्री उनको छोड चली गईं. विशिष्ठ होना कई बार ठीक नहीं रहता. हमारे भारी मनों को कुछ राहत दी रंजना [रंजू भाटिया] ने मर्मस्पर्शी कविता माँ कभी ख़त्म नही होती .... में.  इसके फौरन बाद पंकज शुक्ल मेंरे मन से एक गाना “उठा” लिया एवं मातृदिवस के लिये लिखे लेख मां के साथ प्रस्तुत कर दिया.

केरेक्टर फोटोग्राफी में दक्ष मुझे सतीश सक्सेना ने अम्मा ! में कैसा छुआ यह कहना मुश्किल है. चित्र के साथ उनकी कविता और जुड गई तो इस मोती का मूल्य बहुत हो गया.

यह तो सिर्फ सफर का आरंभ मात्र है. रास्ते में और भी हैं बेशकीमती हीरे, जिनको देखेंगे अगली चर्चा में!!

शास्त्री । सारथी
माँ चिट्ठे के आलेखों की चर्चा 001

8 comments:

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

साधुवाद इस चर्चा के लिए।

Vivek Kumar "विवेक" said...

माई ओ माई tu mahan hai.....
aapne bahut sahi bat lihi hai......

Udan Tashtari said...

शुभकामनाऐं!

Satish Saxena said...

आपने एक नया प्रयोग शुरू किया है, बहुत सफल रहेगा ! बधाई !

प्रदीप मानोरिया said...

सुंदर अति सुंदर पंक्तियाँ .. मेरा आमंत्रण स्वीकारें समय निकल कर मेरे ब्लॉग पर पधारें

prakharhindutva said...

मातृभूमि व हिंदू जागृति हेतु मैंने एक ब्लॉग का शुभारंभ किया है
ब्लॉग का पता है http://prakharhindu.blogspot.com/
यह एक ऐसा मंच है जिसके द्वारा मेरे विचारों का प्रचार एवम् प्रसार होगा। हिन्दुओं में अपने धर्म के प्रति उत्साह और प्रेम का संचार होगा। इस ब्लॉग का एक उद्देश्य इस्लाम के चेहरे से शराफ़त का नक़ाब उतारना भी है। साथ ही साथ अपने भाइयों को ये चेताना भी है कि हमें अपनी मातृभूमि का उद्धार करने हेतु स्वयम् ही आगे आना पड़ेगा। कोई हमारी रक्षा के तब तक आगे लिए नहीं आएगा जब तक कि हम आत्मनिर्भर नहीं हो जाते।

हिन्दुस्तानी एकेडेमी said...

आप हिन्दी की सेवा कर रहे हैं, इसके लिए साधुवाद। हिन्दुस्तानी एकेडेमी से जुड़कर हिन्दी के उन्नयन में अपना सक्रिय सहयोग करें।

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सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्रयम्बके गौरि नारायणी नमोस्तुते॥


शारदीय नवरात्र में माँ दुर्गा की कृपा से आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हों। हार्दिक शुभकामना!
(हिन्दुस्तानी एकेडेमी)
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रंजू भाटिया said...

बहुत सार्थक लेख लिखा है अच्छा लगा माँ चर्चा को एक ही पोस्ट में लिखना