Wednesday, September 24, 2008
माँ जैसा कोई नही होता ...
नारी हमेशा से ही हर रूप में पूजनीय रही है और उसका हर रूप अदभुत और सुंदर है| एक छोटी सी कहानी कहीं पढ़ी थी वो कहानी दिल को छू गयी !एक बेटे ने अपनी आत्मकथा में अपनी माँ के बारे में लिखा कि उसकी माँ की केवल एक आँख थी...इस कारण वह उस से नफ़रत करता था |एक दिन उसके एक दोस्त ने उस से आ कर कहा कि ;''अरे !तुम्हारी माँ कैसी दिखती है ना एक ही आँख में ?"" यह सुन कर वो शर्म से जैसे ज़मीन में धंस गया| उसका दिल किया यहाँ से कही भाग जाए , छिप जाए और उस दिन उसने अपनी माँ से कहा कि यदि वो चाहती है कि दुनिया में मेरी कोई हँसी ना उड़ाए तो वो यहाँ से चली जाए|
माँ ने कोई उतर नही दिया ,वह इतना गुस्से में था कि एक पल को भी नही सोचा कि उसने माँ से क्या कह दिया है और यह सुन कर उस पर क्या गुजरेगी | कुछ समय बाद उसकी पढ़ाई खत्म हो गयी ,अच्छी नौकरी लग गई और उसने शादी कर ली | एक घर भी खरीद लिया फिर उस के बच्चे भी हुए | एक दिन माँ का दिल नही माना | वो सब खबर तो रखती थी अपने बेटे के बारे में | जब एक दिन ख़ुद को रोक नही पायी तो उन से मिलने को चली गयी | उस के पोता -पोती उसको देख के पहले डर गए फिर ज़ोर ज़ोर से हँसने लगे बेटा यह देख कर चिल्लाया कि तुमने कैसे हिम्मत की यहाँ आने की ,मेरे बच्चो को डराने की और वहाँ से जाने को कहा |माँ ने कहा कि शायद मैं ग़लत पते पर आ गई हूँ मुझे अफ़सोस है ,और वो यह कह के वहाँ से चली गयी|
एक दिन पुराने स्कूल से पुनर्मिलन समरोह का एक पत्र आया | बेटे ने सोचा कि चलो सब से मिल के आते हैं !वो गया सबसे मिला ,यूँ ही जिज्ञासा हुई कि देखूं माँ है की नही अब भी पुराने घर में|
जब वह वहां गया तो .वहाँ जाने पर पता चला कि अभी कुछ दिन पहले ही उसकी माँ का देहांत हो गया है | यह सुन कर भी बेटे की आँख से एक भी आँसू नही टपका |तभी एक पड़ोसी ने कहा कि वो एक पत्र दे गयी है तुम्हारे लिए .....पत्र में माँ ने लिखा था कि ""मेरे प्यारे बेटे मैं हमेशा तुम्हारे बारे में ही सोचा करती थी और सदा तुम कैसे हो? कहाँ हो ?यह पता लगाती रहती थी | उस दिन मैं तुम्हारे घर में तुम्हारे बच्चो को डराने नही आई थी ,बस रोक नही पाई उन्हे देखने से इस लिए आ गयी थी, मुझे बहुत दुख है की मेरे कारण तुम्हे हमेशा ही एक हीन भावना रही ,पर इस के बारे में मैं तुम्हे एक बात बताना चाहती हूँ कि जब तुम बहुत छोटे थे तो तुम्हारी एक आँख एक दुर्घटना में चली गयी |अब मै माँ होने के नाते कैसे सहन करती कि मेरा बेटा अंधेरे में रहे ,इस लिए मैने अपनी एक आँख तुम्हे दे दी और हमेशा यह सोच के गर्व महसूस करती रही कि अब मैं अपने बेटे की आँख से दुनिया देखूँगी और मेरा बेटा अब पूरी दुनिया देख पाएगा उसके जीवन में अंधेरा नही रहेगा ..
सस्नेह तुम्हारी माँ
यह एक कहानी यही बताती है कि माँ अपनी संतान से कितना प्यार कर सकती है बदले में कुछ नही चाहती नारी का सबसे प्यारा रूप माँ का होता है बस वो सब कुछ उन पर अपना लुटा देती है और कभी यह नही सोचती की बदले में उसका यह उपकार बच्चे उसको कैसे देंगे ! नारी का रूप माँ के रूप में सबसे महान है इसी रूप में वो स्नेह , वात्सलय , ममता मॆं सब उँचाइयों को छू लेती है | उसके सभी दुख अपने बच्चे की एक मुस्कान देख के दूर हो जाते हैं!
तभी हमारे हिंदू संस्कार में माँ को देवता की तरह पूजा जाता है माँ को ही शिशु का पहला गुरु माना जाता है सभी आदर्श रूप एक नारी के रूप में ही पाए जाते हैं जैसे विद्या के रूप में सरस्वती ,धन के रूप में लक्ष्मी, पराक्रम में दुर्गा ,सुन्दरता में रति और पवित्रता में गंगा ..वो उषा की बेला है, सुबह की धूप है ,किरण सी उजली है इस की आत्मा में प्रेम बसता है|
किसी कवि ने सच ही कहा है कि ..
प्रकति की तुम सजल घटा हो
मौसम की अनुपम काया
हर जगह बस तुम ही तुम
और तुम्हारा सजल रूप है समाया !!
रंजना
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14 comments:
कुछ दिन पहले मैंने यह कहानी अंग्रेजी में अन्तरजाल पर पढ़ी थी। मां ऐसी ही होती हैं औ बच्चे अक्सर उसी तरह जैसे इस कहानी का।
इतने बड़े त्याग के बाद माँ ने जीवन में क्या पाया. बेटे की निश्ठुरता ?
लानत है.
वह मनुष्य अधम है जिसने अपनी माँ की भावनाओं की कद्र नहीं की। अच्छी, मार्मिक पोस्ट।
"सभी आदर्श रूप एक नारी के रूप में ही पाए जाते हैं"
इस विषय पर विस्तार से लिखने की जरूरत है एवं मैं यह जिम्मेदारी आप पर डालता हूँ!!
-- शास्त्री जे सी फिलिप
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
http://www.Sarathi.info
u did nt visit sir on my new post
regards
आज सारथी पर इसका उद्धरण दिया गया है, जरा देख लें!!
-- शास्त्री
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
http://www.Sarathi.info
बहुत सुंदर /कहानी दे रूप में वर्तमान औलाद की हकीकत /वैसे मैं समझता हूँ ऐसी घटनाएं पुराने ज़माने में भी होती रही होंगी तभी तो आदि शंकराचार्य जी को कहना पड़ा होगा "कुपुत्रो जयते क्वचिदपि कुमाता न भवति "
बहुत सुंदर /कहानी दे रूप में वर्तमान औलाद की हकीकत /वैसे मैं समझता हूँ ऐसी घटनाएं पुराने ज़माने में भी होती रही होंगी तभी तो आदि शंकराचार्य जी को कहना पड़ा होगा "कुपुत्रो जयते क्वचिदपि कुमाता न भवति "
मां की महिमा बखान करना बहुत मुश्किल है
रंजना जी !
माँ के प्यार पर उंगली उठाने वाले नराधमों की कमी नही है, आजकल ! मेरा विचार है की पुरानो में वर्णित राक्षस और कोई नही इस प्रकार के दुष्ट प्रवृत्ति के लोग ही थे ! वे आज भी आसपास हैं और हम उन्हें दैनिक जीवन में उनकी आदतों से महसूस कर सकते हैं !
मर्मस्पर्शी लेख ! बधाई
यह कहा जाता है कि मां के क़दमों में जन्नत होती है. यह जन्नत छोड़ कर कुछ अभागे लोग इधर-उधर नरकों में मारे-मारे फिरते रहते हैं.
बहुत दिनों से लिखा नहीं गया कुछ
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