*एक उलझ़न *
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क्या कहू??
कहने को कोई शब्द नही मिलते,
शब्द मिलते है तो,
सुनने को कोई अपने नही मिलते...
मन की बात किसे कहू???
जब कोई मुझे नही समझते...
उल़झन मै फंस जाती हँ,
तब याद आती है उस मॉं की
जिसके बिना ज़िंदगी मै,
सही मंज़िल नहीं मिलती....
क्या कहू??
कहने को कोई शब्द नही मिलते,
शब्द मिलते है तो,
सुनने को कोई अपने नही मिलते...
मन की बात किसे कहू???
जब कोई मुझे नही समझते...
उल़झन मै फंस जाती हँ,
तब याद आती है उस मॉं की
जिसके बिना ज़िंदगी मै,
सही मंज़िल नहीं मिलती....
5 comments:
प्रस्तुति के लिये आभार. कविता सरल है, एवं गलतियां सिर्फ अक्षरों की हैं जो सही कर दी गई हैं.
लिखती रहें!!!
सस्नेह
-- शास्त्री
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
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bahut sundar abhivyakiti di hai aapne maa ke pyar ko,jisko hum mandiro maszido me dundte phirte hai na sonal ji vahi bhagvaan hamare samne maa ke rup me vidhmaan rahta hai
सुंदर
bahut badhiyaan
आपने गागर मे सागर भर दिया है- एक अच्छी कोशिश
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