Monday, September 22, 2008

* एक उलझन *

मेरे गुजराती ब्लॉग मै लिखा हुआ यहा हिन्दी मै पेश करती हू.... कुछ गलती हो तो माफ कीजिएगा.


*एक उलझ़न *
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क्या कहू??
कहने को कोई शब्द नही मिलते,
शब्द मिलते है तो,
सुनने को कोई अपने नही मिलते...
मन की बात किसे कहू???
जब कोई मुझे ही समझते...
उल़झन मै फंस जाती हँ,
तब याद आती है उस मॉं की
जिसके बिना ज़िंदगी मै,
सही मंज़िल नहीं मिलती....

5 comments:

Shastri JC Philip said...

प्रस्तुति के लिये आभार. कविता सरल है, एवं गलतियां सिर्फ अक्षरों की हैं जो सही कर दी गई हैं.

लिखती रहें!!!

सस्नेह

-- शास्त्री

हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
http://www.Sarathi.info

अभिन्न said...

bahut sundar abhivyakiti di hai aapne maa ke pyar ko,jisko hum mandiro maszido me dundte phirte hai na sonal ji vahi bhagvaan hamare samne maa ke rup me vidhmaan rahta hai

अजित वडनेरकर said...

सुंदर

Anonymous said...

bahut badhiyaan

UjjawalTrivedi said...

आपने गागर मे सागर भर दिया है- एक अच्छी कोशिश