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Monday, January 11, 2010

माँ की ममता को पहचानो, ऐसा न हो कि कल उसे ढूँढ़ते फिरें

कहीं पढ़ा था कि ‘‘जब तुम बोल भी नहीं पाते थे तो मैं तुम्हारी हर बात को समझ लेती थी और अब जब तुम बोल लेते हो तो कहते हो कि माँ तुम कुछ समझती ही नहीं।’’

किसी भी माँ के द्वारा कहे ये शब्द वाकई कितने सार्थकता सिद्ध करते दिखते हैं। यह बात सत्य है कि एक माँ जो अपने बच्चे के बचपने को भली-भाँति पढ़-समझ लेती है, उसी माँ की वृद्धावस्था को उसके बच्चे बिलकुल भी नहीं समझते। इसे कुछ इस तरह भी कहा जा सकता है कि समझने का प्रयास नहीं करते हैं।

माँ के रूप उसके स्वरूप को देवत्व प्राप्त है, कहा भी गया है कि भगवान सभी जगह नहीं पहुँच सकता उसीलिए उसने माँ को बनाया।

आज उसी माँ को हमने स्वयं अपनी जगह तलाशते देखा है। कुछ दिनों पूर्व कुछ ऐसा देखा कि लगा कि यह दुआ करना मातृत्व का अपमान होगा किन्तु माँ की होती दुर्दशा से अच्छा है कि औलाद ही न हों।

तब याद आने लगे वे परिवार जहाँ आज भी माँ को माँ का प्यार, स्नेह, सम्मान दिया जाता है। ऐसे परिवारों में आज भी सौगातें बिछी दिखाई देतीं हैं।

कहना होगा कि माँ के स्वरूप को आज समझने की आवश्यकता है। उसे मात्र एक औरत के रूप में न देखा जाये। हम स्वयं कई बार स्वयं को इस सोच के साथ व्यथित पाते हैं कि कल क्या होगा जबकि हमारी माँ हमें छोड़ कर चली जायेगी?

यह कल्पना अपने में भयावह है किन्तु जीवन की सत्यता यही है। जो जीवन है उसे समाप्ति की ओर भी जाना है। तब माँ-विहीन जीवन की कल्पना करके ही सिहर जाते हैं।

यह पोस्ट उस घटना के परिणामस्वरूप लिखी जा रही है जो हमने देखी है। (किसी भी माँ का तिरस्कार करना हमारा मन्तव्य नहीं, इस कारण उस घटना का जिक्र करना हम आवश्यक नहीं समझते)

कृपया जिसके पास भी माँ है वे माँ की महिमा, उसके ममत्व को समझें। ऐसा न हो कि कल माँ के न होने पर उसके प्यार, दुलार, स्नेह और अपनत्व को हम किसी और में खोजते फिरें।