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Friday, November 14, 2008

आवाज़ के आने में भी देर लगती है ....

                                            आलेख: पा.ना.सुब्रमणियन




फ़ोन की घंटी बजती है ... ट्रिंग ट्रिंग

अम्मा ने उठाया: हाँ मैं बोल रही हूँ.

कुछ देर कोई आवाज़ नहीं आती

फिर उधर से : हाँ कौन?

अम्मा: अरे अम्मा बोल रही हूँ

वेंकोवर (कनाडा) से बिस्सु बेटे का फ़ोन था बोला

अरे बिस्सु बोल रहा हूँ

अम्मा: हाँ बोल बेटा सब ख़ैरियत तो है. लेकिन ये मेरी आवाज़ में कौन बोल रहा है.

(अम्मा की आवाज़ प्रतिध्वनि के रूप में सुनाई पड़ती है)

बिस्सु बोला: अम्मा मैं हीं तो बोल रहा हूँ, लगता है तुम सठिया गयी हो. आज दीवाली है ना इसलिए मेरा स्पेशल पाय लागी (प्रणाम)

अम्मा: अरे बेटा आशीर्वाद आशीर्वाद लेकिन सुन .. आज थोड़े ही है, वो तो कल थी.

बिस्सु: हाँ माँ हमारे लिए आज ही है.

अम्मा: नहीं बेटा हमारी तो हो गयी, हम लोग मद्रासी हैं ना, हम लोग नरक चतुर्दशी को ही मानते हैं. आज तो अमावस्या है.

बिस्सु: ठीक तो है ना माँ आज नरक चतुर्दशी ही तो है. आज हम लोगों ने सुबह ही फटाके भी छुड़ाए. घर के सामने नहीं. कुछ दूर एक मैदान में.

अम्मा: बेटा आज मंगलवार है, नरक चतुर्दशी सोमवार को थी

बिस्सु: आज सोमवार ही तो है ना माँ.

अच्छा तो तू कल बोल रहा है ना और मैं आज सुन रही हूँ!

नहीं अम्मा मै यहाँ से आज ही बोल रहा हूँ और तुम भी आज ही सुन रहे हो.

अम्मा: रख दे फ़ोन, दिमाग़ खराब कर रहा है.