Tuesday, November 10, 2009

मेरी माँ

नये ज़माने के रंग में,
पुरानी सी लगती है जो|

aage बढने वालों के बीच,
पिछङी सी लगती है जो|

गिर जाने पर मेरे,
दर्द से सिहर जाती है जो|

चश्मे के पीछे ,आँखें गढाए,
हर चेहरे में मुझे निहारती है जो|

खिङकी के पीछे ,टकटकी लगाए,
मेरा इन्तजार करती है जो|

सुई में धागा डालने के लिये,
हर बार मेरी मनुहार करती है जो|

तवे से उतरे हुए ,गरम फुल्कों में,
जाने कितना स्वाद भर देती है जो|

मुझे परदेस भेज ,अब याद करके,
कभी-कभी पलकें भिगा लेती है जो|

मेरी खुशियों का लवण,
mere जीवन का सार,
मेरी मुस्कुराहटों की मिठास,
merii आशाओं का आधार,
मेरी माँ, हाँ मेरी माँ ही तो है वो
|


(मेरा नाम शिल्पा अग्रवाल है | शिक्षा -एम.फिल (अंग्रेजी साहित्य), कभी-कभी कागज़ के पुर्जों पर या इक्कीसवीं सदी के अपने प्रिय मित्र कम्प्यूटरराम को टप-टपा कर अपने चिट्ठे "फुलकारी" (http://shipsag.blogspot.com) पर कविता कह लेती हूँ | फिलहाल प्रवासी भारतीय हूँ, इसलिए अपनेपन की कमी बहुत खलती है यहाँ और हर बात पर अपने देस की याद आ जाती है| )

Thursday, October 29, 2009

क्या आपके घर में, एक बुढिया ......?

कुछ समय पहले माँ की मर्ज़ी के बिना इस घर का पत्ता भी नहीं हिलता था, अक्सर उनकी एक हाँ से कितनी बार हमारे जीवन में खुशियों का अम्बार लगा मगर धीरे धीरे उनकी शक्तिया और उन शक्तियों का महत्व कम होते होते आज नगण्य हो गया !
 अब अम्मा से उनकी जरूरतों के बारे में कोई नहीं पूछता, सब अपने अपने में व्यस्त है, खुशियों के मौकों और पार्टी आयोजनों से भी अम्मा को खांसी खखार के कारण दूर ही रखा जाता है ! 
बाहर डिनर पर न ले जाने का कारण भी हम सबको पता हैं..... कुछ खा तो पायेगी नहीं अतः होटल में एक और प्लेट का भारी भरकम बिल क्यों दिया जाये, और फिर घर पर भी तो कोई चाहिए ... 
और परिवार के मॉल जाते समय, धीमे धीमे दरवाजा बंद करने आती माँ की आँखों में छलछलाये आंसू कोई नहीं देख पाता !

Friday, August 14, 2009

अम्मा

कितनी कितनी कितनों की ही बिगडी बात बनाती अम्मा
हँसते हँसते होंठों में ही अपनी बात छुपाती अम्मा ।
मेरे तेरे इसके उसके दर्द से होती रुआँसी अम्मा,
हम खा जाते चोट तो फिर, हमको कैसे बहलाती अम्मा ।
रात काटती आँखों में जब होते हम बीमार कभी,
सुबह सवेरे पर उनमें ही सूरज नया उगाती अम्मा ।
भोर अंधेरे उठ जाती और सारे काम सम्हालती अम्मा,
रात अंधेरी जब छा जाती, लोरी खूब सुनाती अम्मा ।
अब अम्मा के हाथ थके और आँखों के सूरज बदराये,
फिर भी तो होटों पे हरदम एक मुस्कान खिलाती अम्मा ।
हम अम्मा के पास रहें या उससे दूर ही क्यूं न रहें,
वह रहती है मन में हरदम, हम सबकी महतारी अम्मा ।

Thursday, July 23, 2009

' माता-पिता '

[ “माता-पिता” कविता मेरी वो पहली कविता है , जिसे मैंने अपने पापा-मम्मी को उनकी marriage anniversary पर तोहफे के रूप में दी थी !आशा करती हूँ कि आप सभी को मेरी यह कविता अच्छी लगेगी ! ]

” माता-पिता ”

माता-पिता ,
ईश्वर की वो सौगात है ,
जो हमारे जीवन की अमृतधार है !
आपसे ही हमारी एक पहचान है ,
वरना हम तो इस दुनिया से अनजान थे !
आपके आदर्शों पर चलकर ही ,
हर मुश्किल का डटकर सामना करना सीखा है हमने !
आपने ही तो इस जीवन की दहलीज़ पर हमें ,
अंगुली थामे चलना और आगे बढ़ना सिखाया है ,
वरना एक कदम भी न चल पाने से हम हैरान थे !
आपके प्यार और विश्वास ने काबिल बनाया है हमें ,
जीवन के हर मोड पर आज़माया है हमें ,
वरना हम तो जीवन की कसौटियों से परेशान थे !
आपने हमेशा हर कदम पर सही राह दिखायी है हमें ,
अच्छे और बुरे की पहचान करायी है हमें !
आपने दिया है जीवन का ये नायाब तोहफा हमें ,
जिसे भुला पाना भी हमारे लिए मुश्किल है !
आपकी परवरिश ने ही दी है नेक राह हमें ,
वरना हम तो इस नेक राह के काबिल न थे !
आपसे ही हमारे जीवन की शुरुआत है ,
आपसे ही हमारी खुशियाँ और आबाद है ,
आप ही हमारे जीवन का आधार है ,
आप से हैं हम ,
और आप से ही ये सारा जहांन है !

-सोनल पंवार
(spsenoritasp@gmail.com)
(http://princhhi.blogspot.com)

' माँ ' और ' पिताजी ' ब्लॉग के अलावा ' माता-पिता ' नाम से भी एक ब्लॉग होना चाहिए ताकि हम माता-पिता से सम्बंधित रचनाओं को पोस्ट कर अपने माता-पिता के प्रति सम्मान को व्यक्त कर सके !
धन्यवाद् !

Saturday, July 18, 2009

माँ -एक याद

माँ
नहीं है
बस मां की पेंटिंग है,

पर
उसकी चश्मे से झाँकती
आँखें
देख रही हैं बेटे के दुख
बेटा
अपने ही घर में
अजनबी हो गया है।

वह
अल सुबह उठता है
पत्नी के खर्राटों के बीच
अपने दुखों
की कविताएं लिखता है
रसोई में
जाकर चाय बनाता है
तो मुन्डू आवाज सुनता है
कुनमुनाता है
फिर करवट बदल कर सो जाता है
जब तक
घर जागता है
बेटा शेव कर नहा चुका होता है
नौकर
ब्रेड और चाय का नाश्ता
टेबुल पर पटक जाता है क्योंकि
उसे जागे हुए घर को
बेड टी देनी है
बेड टी पीकर
बेटे की पत्नी नहीं?
घर की मालकिन उठती है।

हाय सुरू !
सुरेश भी नहीं
कह बाथरूम में घुस जाती है
मां सोचती है
वह तो हर सुबह उठकर
पति के पैर छूती थी
वे उन्नीदें से
उसे भींचते थे
चूमते थे फिर सो जाते थे
पर
उसके घर में, उसके बेटे के साथ
यह सब क्या हो रहा है
बेटा ब्रेड चबाता
काली चाय के लंबे घूंट भरता
तथा सफेद नीली-पीली तीन चार गोली
निगलता
अपना ब्रीफकेस उठाता है
कमरे से निकलते-निकलते
उसकी तस्वीर के पास खड़ा होता है
उसे प्रणाम करता है
और लपक कर कार में चला जाता है।

माँ की आंखें
कार में भी उसके साथ हैं
बेटे का सेल फोन मिमियाता है
माँ डर जाती है
क्योंकि रोज ही
ऐसा होता है

अब बेटे का एक हाथ स्टीयरिंग पर है
एक में सेल फोन है
एक कान सेलफोन
सुन रहा है
दूसरा ट्रेफिक की चिल्लियाँ,
एक आँख फोन
पर बोलते व्यक्ति को देख रही है
दूसरी ट्रेफिक पर लगी है

माँ डरती है
सड़क भीड़ भरी है।
कहीं कुछ अघटित न घट जाए?
पर शुक्र है
बेटा दफ्तर पहुँच जाता है
कोट उतार कर टाँगता है
टाई ढीली करता है
फाइलों के ढेर में डूब जाता है
उसकी सेक्रेटरी
बहुत सुन्दर लड़की है
वह कितनी ही बार बेटे के
केबिन में आती है
पर बेटा उसे नहीं देखता
फाइलों में डूबा हुआ बस सुनता है
कहता है, आंख ऊपर नहीं उठाता
मां की आंखें सब देख रही हैं
बेटे को क्या हो गया है?

बेटा दफ्तर की मीटिंग में जाता है,
तो उसका मुखौटा बदल जाता है
वह थकान औ ऊब उतार कर
नकली मुस्कान औढ़ लेता है;
बातें करते हुए
जान बूझ कर मुस्कराता है
फिर दफ्तर खत्म करके
घर लौट आता है।
पहले वह नियम से
क्लब जाता था
बेडमिंटन खेलता था
दारू पीता था
खिलखिलाता था
उसके घर जो पार्टियां होती थीं
उनमें जिन्दगी का शोर होता था
पार्टियां अब भी
होती हैं
पर जैसे कम्प्यूटर पर प्लान की गई हों।
चुप चाप
स्कॉच पीते मर्द, सोफ्ट ड्रिक्स लेती औरतें
बतियाते हैं मगर
जैसे नाटक में रटे रटाए संवाद बोल रहे हों
सब बेजान
सब नाटक, जिन्दगी नहीं

बेटा लौटकर टीवी खोलता है
खबर सुनता है
फिर
अकेला पैग लेकर बैठ जाता है
पत्नी
बाहर क्लब से लौटती है
हाय सुरू!
कहकर अपना मुखौटा तथा साज
सिंगार उतार कर
चोगे सा गाऊन पहन लेती है
पहले पत्नियाँ पति के लिए सजती
संवरती थी अब वे पति के सामने
लामाओं जैसी आती हैं
किस के लिए सज संवर कर
क्लब जाती हैं?
मां समझ नहीं पाती है

बेटा पैग और लेपटाप में डूबा है
खाना लग गया है
नौकर कहता है;
घर-डाइनिंग टेबुल पर आ जमा है
हाय डैडी! हाय पापा!
उसके बेटे के बेटी-बेटे मिनमिनाते हैं
और अपनी अपनी प्लेटों में डूब जाते हैं
बेटा बेमन से
कुछ निगलता है फिर
बिस्तर में आ घुसता है
कभी अखबार
कभी पत्रिका उलटता है
फिर दराज़ से
निकाल कर गोली खाता है
मुँह ढक कर सोने की कोशिश में जागता है
बेड के दूसरे कोने पर बहू-बेटे की पत्नी
के खर्राटे गूंजने लगते हैं
बेटा साइड लैंप जला कर
डायरी में
अपने दुख समेटने बैठ जाता है

मां नहीं है
उसकी पेंटिंग है
उस पेंटिंग के चश्मे के
पीछे से झांकती
मां की आंखे देख रही हैं
घर-घर नहीं
रहा है
होटल हो गया है
और उसका
अपना बेटा महज
एक अजनबी।

श्याम सखा‘श्याम’

Friday, July 17, 2009

माँ ( Staircase)

माँ
है क्या ?
एक ऐसी मूरत
छाँव तले है जिसकी
सारे गम हम भूल जाते !
माँ
है क्या ?
एक ऐसी सूरत
छवि में है जिसकी
ईश्वर का सानिध्य पाते !
माँ
है क्या ?
एक ऐसी सीरत
करुणा के आगे जिसकी
ख़ुद ईश्वर भी नत हो जाते !

– सोनल पंवार
(spsenoritasp@gmail.com)
(http://princhhi.blogspot.com)

Thursday, July 16, 2009

माँ के भी बदले हैं स्वरुप

भगवान हर जगह नहीं हो सकता इस कारण उसने माँ को बनाया। यह वाक्य माँ के सम्मान में लगभग हर जगह लिखा मिल जाता है। हमारा मानना इससे कुछ अलग है और वह ये कि धरती पर माँ ही है जिससे भगवान का अस्तित्व कायम है।

माँ के सम्मान, आदर में हमें बहुत कुछ बताया गया, बहुत कुछ पढ़ाया गया। यह एक ऐसा शब्द है जिसके लिए शायद ही किसी के मन में निरादर की भावना रही होगी। माँ के दयास्वरूप, ममतामयी, परोपकारी स्वरूप की कल्पना हम सबने की है और उसको वास्तविकता में भी देखा है। इन कोमलकांत स्वरूपों के साथ-साथ हमने माँ का शक्तिशाली, शत्रुमर्दन स्वरूप भी माँ दुर्गा के रूप में सँवारा है।
इधर देखने में आ रहा है कि माँ के ममतामयी और शक्तिशाली स्वरूप के अतिरिक्त उसका एक और रूप सामने आया है। इस रूप को हम यदि देखें तो घृणा होती है। माँ के इस घृणास्पद स्वरूप के क्या कारण हो सकते हैं, इस पर तो बहुत गहन सामाजिक शोध की आवश्यकता है।
माँ के इस रूप को कई सालों, माहों, दिनों से देखा जा रहा था किन्तु हमारा ध्यान इस पर हाल ही में इसलिए और गया क्योंकि पिछले एक सप्ताह में तीन घटनाओं ने माँ का यही रूप दिखाया। एक माँ द्वारा अपने दो बच्चों की हत्या इस कारण कर दी गई क्योंकि वे बच्चे उसके प्रेम-सम्बन्ध में बाधक बन रहे थे। एक माँ अपने तीन बच्चों, जिनमें एक तीन माह का दुधमुँहा बच्चा भी शामिल है, को छोड़ कर अपने प्रेमी के साथ भाग गई। एक और घटना में एक माँ अपने नवजात बच्चे को सड़क पर फेंक कर भाग गई, बाद में इस बच्चे की मृत्यु हो गई।
इस तरह की घटनायें अब समाज में आये दिन घटतीं हैं। इन घटनाओं को देखकर किसी गीत या आरती की एक पंक्ति याद आती है कि ‘पूत कपूत सुने हैं जग में, माता सुनी न कुमाता।’ क्या अब माता भी कुमाता कहलायेगी? आधुनिकता के वशीभूत क्या माँ के स्वरूप भी बदले-बदले नजर आयेंगे? क्या आज की महिला स्वयं को माँ नहीं एक स्त्री ही समझेगी?

Tuesday, July 14, 2009

माँ का दिल

“ माँ का दिल “

माँ का दिल
क्या कहूं मैं इसे ?
कोमल-सी ममता
या प्यार का एक दरिया ,
ममता की छाँव
या प्यारी-सी एक दुनिया ,
स्नेह का भण्डार
या एक मृदुल संसार ,
भोली-सी सूरत
या प्यार की एक मूरत ,
क्षमा का दर्पण
या फिर भगवान का एक वरदान !
माँ का दिल
क्या कहूं मैं इसे ?

– सोनल पंवार
( spsenoritasp@gmail.com )
( http://princhhi.blogspot.com )

Thursday, July 9, 2009

' माँ '

माँ ,
एक शब्द ,
छिपा है जिसमे ,
एक अनोखा संसार !

माँ ,
एक शब्द ,
आँचल में जिसकी ,
सुकून है सारे जहाँ का !

माँ ,
एक शब्द ,
गहराई है जिसकी ,
अथाह सागर के समान !

माँ ,
एक शब्द ,
सबसे है न्यारा ,
सबसे प्यारा ये शब्द !

- सोनल पंवार
( spsenoritasp@gmail.com )
( http://princhhi.blogspot.com )

Wednesday, July 8, 2009

'एक माँ' कविता गजरौला टाइम्स में

27 जून 2009 को साप्ताहिक ''गजरौला टाइम्स'' के स्तंभ 'ब्लॉग टाइम्स' में 'माँ' ब्लॉग पर प्रकाशित कृष्ण कुमार यादव की कविता एक माँ का प्रकाशन !!

Monday, July 6, 2009

' माँ एक अनमोल सौगात '

" माँ एक अनमोल सौगात "

मेरे जीवन के बिखरे मोती की माला है माँ ,
मेरी आंखों के दर्पण की निर्मल ज्योति है माँ ,
तपती धूप में ममता की शीतल छाँव है माँ ,
दुःख के कटु क्षणों में एक मधुर मुस्कान है माँ ,
मेरे जीवन के इस गागर में प्यार का सागर है माँ ,
पिता है अगर नींव तो प्यार का संबल है माँ ,
त्याग और प्यार की सच्ची मूरत है माँ ,
इस दुनिया में भगवान की सबसे अनमोल सौगात है माँ !

- सोनल पंवार
(princhhi.blogspot.com)
(spsenoritasp@gmail.com)

Tuesday, June 23, 2009

माँ

कहते हैं, क्यूं कि ईश्वर हर जगह नही हो सकता इसी लिये उसने माँ बनाई है ।
इस संदर्भ में मुझे बचपन में सुनी हुई एक कहानी याद आ रही है ।
एक माँ थी और उसका एक छोटा सा बेटा । माँ मेहनत करके बच्चे को बड़ा कर रही थी । कालांतर में बच्चा बडा़ हो गया । जवान हुआ । लायक भी हो गया । और जैसे कि होना चाहिये और होता है उसे प्रेम हो गया ।
प्रेमिका औऱ प्रेमी बहुत खुश । चाह हुई कि घर संसार बसायें । पर प्रेमिका नही चाहती थी कि उन दोनों के बीच कोई तीसरा भी हो । तो उसने अपने प्रेमी से पूछा, ”तुम मुझसे कितना प्यार करते हो “ उसने कहा , “मैं दुनिया में सबसे ज्यादा तुम्हें चाहता हूँ “। उसने कहा,” साबित कर सकोगे” उसने कहा , “हाँ “ । “तो तुम अपनी माँ का दिल लेकर आओ” प्रेमिका बोली ।
लडका तो प्रेम में पागल हो रहा था, घर आया और माँ को मार कर उसका दिल निकाल लिया । लडका दिल लेकर प्रेमिका को अर्पण कर ने जा रहा था कि उसे ठोकर लगी और हाथ से माँ का दिल फिसल कर गिर गया । लडका उसे झुक कर उठाने लगा तो दिल में से हलके से आवाज़ आई , “बेटा तुझे कहीं चोट तो नही आई” ।

Sunday, June 21, 2009

एक पोस्ट पिता के लिए भी (फादर्स-डे पर)

आज फादर्स डे है। माँ और पिता ये दोनों ही रिश्ते समाज में सर्वोपरि हैं. इन रिश्तों का कोई मोल नहीं है. माता-पिता द्वारा अपने बच्चों के प्रति प्रेम का इज़हार कई तरीकों से किया जाता है, पर बेटों-बेटियों द्वारा पिता के प्रति इज़हार का यह दिवस अनूठा है. भारतीय परिप्रेक्ष्य में कहा जा सकता है कि स्त्री-शक्ति का एहसास करने हेतु तमाम त्यौहार और दिन आरंभ हुए पर पित्र-सत्तात्मक समाज में फादर्स डे की कल्पना अजीब जरुर लगती है.पाश्चात्य देशों में जहाँ माता-पिता को ओल्ड एज हाउस में शिफ्ट कर देने की परंपरा है, वहाँ पर फादर्स-डे का औचित्य समझ में आता है. पर भारत में कही इसकी आड़ में लोग अपने दायित्वों से छुटकारा तो नहीं चाहते हैं. इस पर भी विचार करने की जरुरत है. जरुरत फादर्स-डे की अच्छी बातों को अपनाने की है, न कि पाश्चात्य परिप्रेक्ष्य में उसे अपनाने की जरुरत है.

माना जाता है कि फादर्स डे सर्वप्रथम 19 जून 1910 को वाशिंगटन में मनाया गया। इसके पीछे भी एक रोचक कहानी है- सोनेरा डोड की। सोनेरा डोड जब नन्हीं सी थी, तभी उनकी माँ का देहांत हो गया। पिता विलियम स्मार्ट ने सोनेरो के जीवन में माँ की कमी नहीं महसूस होने दी और उसे माँ का भी प्यार दिया। एक दिन यूँ ही सोनेरा के दिल में ख्याल आया कि आखिर एक दिन पिता के नाम क्यों नहीं हो सकता? ....इस तरह 19 जून 1910 को पहली बार फादर्स डे मनाया गया। 1924 में अमेरिकी राष्ट्रपति कैल्विन कोली ने फादर्स डे पर अपनी सहमति दी। फिर 1966 में राष्ट्रपति लिंडन जानसन ने जून के तीसरे रविवार को फादर्स डे मनाने की आधिकारिक घोषणा की।1972 में अमेरिका में फादर्स डे पर स्थायी अवकाश घोषित हुआ। फ़िलहाल पूरे विश्व में जून के तीसरे रविवार को फादर्स डे मनाया जाता है।भारत में भी धीरे-धीरे इसका प्रचार-प्रसार बढ़ता जा रहा है.इसे बहुराष्ट्रीय कंपनियों की बढती भूमंडलीकरण की अवधारणा के परिप्रेक्ष्य में भी देखा जा सकता है और पिता के प्रति प्रेम के इज़हार के परिप्रेक्ष्य में भी.
आकांक्षा यादव
C/o कृष्ण कुमार यादव

Sunday, May 10, 2009

मां (अविनाश वाचस्‍पति)

मां
सदा हां
कभी न ना

देती है जां
मां
सदा हां

मां
सुख का गांव
ममता की छांव

मदर्स डे पर शुभकामनायें !!

मातृत्व नहीं है सिंहासन,
मातृत्व नहीं है राजतन्त्र !
वह है जीवन की उर्जा के,
अक्षय बीजों का बीजमंत्र !!
_______________________________________
मदर्स डे पर आप सभी को शुभकामनायें। यदि आप माँ के साथ हैं तो उनका दिल ना दुखाएं और यदि माँ से भौतिक रूप से दूर हैं तो आज का दिन माँ को समर्पित कर दें। एक बार फिर से बच्चे बन कर देखिये.....माँ के नाजुक हाथों का स्पर्श स्वमेव अपने ऊपर आशीर्वाद के रूप में पाएंगे !!!

कृष्ण कुमार यादव
www.kkyadav.blogspot.com

Thursday, April 9, 2009

माँ का मर्म (लघु कथा)

"बधाई हो! घर में लक्ष्मी आई है", कहते हुए नन्हीं सी बिटिया को दादी की गोद में देते हुए नर्स बोली। "हुँह..... क्या खाक बधाई। पहली ही बहू के पहली संतान वो भी लड़की हुई और वो भी सिजेरियन......" कहते हुए उन्होंने मुँह फेर लिया और उस नन्हीं सी जान पर स्नेह की एक बूँद भी बरसाने की जरूरत नहीं समझी प्रीती की सासू माँ ने। जल्द ही अपनी गोद हल्की करते हुए बच्ची को बढ़ा दिया अपने बेटे की गोद में। रवि को तो जैसे सारा जहाँ मिल गया अपने अंश को अपने सामने पाकर। पिछले नौ महीने कितनी कल्पनाओं के साथ एक-एक पल रोमांच के साथ बिताया था प्रीती और रवि ने। खुशी के आँसू की दो बूँदें टपक पड़ी उस नन्ही सी बिटिया पर।

कुछ दिनों के अंतराल पर अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद जब घर जाने की तैयारी हुई तो प्रीती फूली न समा रही थी। पिछले नौ महीनों से जिस घड़ी की इंतजार वह कर रही थी, आज आ ही गई। अपनी गोद भरी हुई पाकर जब प्रीति ने घर में प्रवेश किया तो मारे खुशी के उसके आँसू बहने लगे। वह इस खुशी के पल को संभालने की कोशिश करने लगी। हँसते-खेलते ग्यारह दिन कैसे बीत गये, पता ही नहीं चला। लेकिन सासू माँ का मुँह टेढ़ा ही बना रहा। प्रीति चाहती थी कि दादी का प्यार उस नन्हीं सी जान को मिले, लेकिन उसकी ऐसी किस्मत कहाँ ?

खैर, जब बारहवें दिन बरही-रस्म की बात आयी तो सासू माँ को जैसे सब कुछ सुनाने का अवसर मिल गया और इतने दिन का गुबार उन्होंने एक पल में ही निकाल लिया...... "कैसी बरही, किसकी बरही, बिटिया ही तो जन्मी है। हमारे यहाँ बिटिया के जन्म पर कोई रस्म-रिवाज नहीं होता.... कौन सी खुशी है जो मैं ढोल बजाऊँ, सबको मिठाई खिलाऊँ.... कितनी बार कहा था जाँच करा लो, लेकिन नहीं माने तुम सब। लो अब भुगतो, मुझे नहीं मनाना कोई रस्म-रिवाज......।

सासू माँ की ऐसी बात सुनकर प्रीति का दिल भर आया। रूँधे हुए गले से बोली, "सासू माँ! आज अगर यह बेटी मेरी गोद में नहीं होती तो कुछ दिन बाद आप ही मुझे बाँझ कहती और हो सकता तो अपने बेटे को दूसरी शादी के लिए भी कहती जो शायद आपको दादी बना सके, लेकिन आज इसी लड़की की वजह से मैं माँ बन सकी हूँ। यह शब्द एक लड़की के जीवन में क्या मायने रखता हैं, यह आप भी अच्छी तरह जानती हैं। आप उस बाँझ के या उस औरत के दर्द को नहीं समझ सकेंगी, जिसका बच्चा या बच्ची पैदा होते ही मर जाते हैं। ये तो ईश्वर की दया है सासू माँ, कि मुझे वह दिन नहीं देखना पड़ा। आपको तो खुश होना चाहिए कि आप दादी बन चुकी हैं, फिर चाहे वह एक लड़की की ही। आप तो खुद ही एक नारी हैं और लड़की के जन्म होने पर ऐसे बोल रही हैं। कम से कम आपके मुँह से ऐसे शब्द नहीं शोभा देते, सासू माँ!" इतना कहते ही इतनी देर से रोके हुए आँसुओं को और नहीं रोक सकी प्रीती।

प्रीती की बातों ने सासू माँ को नयी दृष्टि दी और उन्हें उसनी बातों का मर्म समझ में आ गया था। उन्होंने तुरन्त ही बहू प्रीती की गोद से उस नन्हीं सी बच्ची को गोद में ले लिया और अपनी सम्पूर्ण ममता उस पर न्यौछावर कर उसको आलिंगन में भर लिया।शायद उन्होंने इस सत्य को स्वीकार लिया कि लड़की भी तो ईश्वर की ही सृष्टि है। जहाँ पर नवरात्र के पर्व पर कुँवारी कन्याओं को खिलाने की लोग तमन्ना पालते हैं, जहाँ दुर्गा, लक्ष्मी, काली इत्यादि देवियों की पूजा होती है, वहाँ हम मनुष्य ये निर्धारण करने वाले कौन होते हैं कि हमें सिर्फ लड़का चाहिए, लड़की नहीं।

आकांक्षा यादव
w/o कृष्ण कुमार यादव kkyadav.y@rediffmail.com

Saturday, March 28, 2009

एक वोट माँ के लिए भी !


आज के चुनावी माहौल में एक वोट माँ के लिए भी -उस माँ के लिए जिसके लिए कहा गया है -जननी जन्म भूमिस्च स्वर्गादपि गरीयसी ! और यह भी कि माता भूमिः पुत्रो अहम् पृथिव्या : ।

भारत सहित ७४ दूसरे देशों का यह संकल्प है कि आज "धरती प्रहर " ( रत्रि साढे आठ बजे और साढे नौ के बीच ) में अपना वोट दीजिये ताकि धरती तरह तरह के पर्यावरणीय आघातों ,प्रदूषणों से बची रहे और प्रकारांतर से ख़ुद हमारा अस्तित्व भी सही सलामत रहे !यह वैश्विक मतदान प्रहर -रात्रि ८.३० और ९.३० के बीच में है ! आप किसे चुनेंगें -पर्यावरणीय संघातों से विदीर्ण धरती को बचाने की मुहिम को या फिर उन कारकों को जिनसे यह धरती तबाह होने को उन्मुख है ? फैसला आपके हाथ में है !

यह सिलसिला सिडनी से वर्ष २००७ से शुरू हुआ जब २२ लाख लोगों ने अपने बिजली की स्विच को एक घंटे के लिए आफ कर दिया ! वर्ष २००८ में पाँच करोड़ लोगों ने यही काम दुहराया और अपने बिजली स्विचों को आफ किया भले ही सैन फ्रैंसिस्को का मशहूर का गोल्डन गेट ब्रिज ,रोम का कोलेजियम ,सिडनी का ऑपेरा हाउस ,टाईम्स स्क्वायर के कोकोकोला बिल्ल्बोर्ड जैसे मशहूर स्मारक भी अंधेरे से नहा गए !

यह अभियान दुनिया के एक अरब लोगों तक मतदान की अपील ले जाने को कृत संकल्प है .यह आह्वान किसी देश ,जाति ,धर्म के बंधन को तोड़कर अपने ग्रह -धरती के लिए है -धरती माँ के लिए है ! और इसकी आयोजक संस्था कुछ कम मानी जानी हस्ती नही है बल्कि वर्ल्ड वाईड फंड (WWF) है जिसकी वन्यजीवों की रक्षा के उपायों को लागू करने के अभियान में बड़ी साख रही है -अब यह पूरे धरती को ही संरक्षित करने के लिए लोगों के ध्यान को आकर्षित करने की मुहिम में जुट गयी है ! वोट फॉर अर्थ के नारे के साथ यह आज एक अरब लोगों तक अपनी अपील लेकर जा पहुँची है !
तो आज आप अपने मतदान के लिए अपने घर के बिजली के स्विचों को मतदान -स्विच बनाएं -ठीक रात्रि साढे आठ बजे स्वेच्छा से घर की बिजली गोल कर दें और एक घंटे बिना बिजली के बिताएं -यह आपका प्रतीकात्मक विरोध होगा उन स्थितियों से जिनसे धरती की आबो हवा ही नही ख़ुद धरती माँ पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं !

Thursday, March 19, 2009

माँ तेरी जय का नमन गीत पूरा हुआ !

माता तेरी जय हो संगीत बद्ध हुआ । शुरू से ही माँ , तेरा ही आशीर्वाद रहा होगा ,सराहा भी जा रहा है । वैसे यह फ़िल्म का भी हिस्सा होगा पर अब इसका स्वतंत्र विडियो भी होगा। कुछ मित्रों ने कहा है की इसमे सच्चे भारत की हर एक झलक हो । होगा , हो रहा है ।


थोड़ा सा गीत का इतिहास भी। लिखने की प्रेरणा रहमान और अन्य भारतीयों को ऑस्कर मिलने से हुयी । उसी दिन लिखा गया और इस ब्लॉग पे पोस्ट हुआ। लेकिन लिखने में एक दर्द भी शामिल था । जब तक विदेशी मान्यता न मिले हमारा कुछ सम्माननीय होता ही नहीं । वैसे रहमान और गुलज़ार जी के न जाने कितनी रचनाओं के सामने यह इनामी रचना पानी भरती हुयी ही थी ।


लेकिन जिस चीज ने दुखी किया वह 'जय हो ' था। जहाँ तक मैं समझता हूँ ' जय हो 'का 'जै कारा ' सिर्फ़ माँ के दरबार में लगता है। शिव, राम, कृष्ण , कोई पुरूष देवता भी इस जय कारे का अधिकारी नहीं होता । सिर्फ़ काली, दुर्गा ,भवानी, वैष्णोदेवी आदि मात्रि शक्तियों के लिए ही 'जै हो ' होता है । स्लम डॉग........में किसका और कैसा जिक्र है देखा ही होगा । अतः भारत माता के लिए जै कारा ही मेरा उद्देश था और ' माता जै हो' लिखा ।लिखते वक़्त भी संगीत धुन भी मन में चल रही थी । लेकिन जब मैं और मेरे संगीतकार सहयोगी विवेक अस्थाना ने संगीत पर काम शुरू किया तो हमने तै किया की इसमे सभी भारतीय वाद्य ही होंगे .

सबसे बड़ा खतरा था की ये कहीं अंग्रजी 'जय हो ' की परोडी न समझ ली जाए । अतः माता और जय हो प्रतिबिंबित करते राग दुर्गा और जैजैवंती रागों को संगीत में पिरोया हमने और भारतीय सितार, बंशी ,सारंगी आदि के साथ तबला,मृदंग, पखावज, ढोल, घटम आदि का प्रयोग किया । जो भी बन पड़ा आपके सामने है। गायक मुख्या स्वर राजेश बिसेन और सुमेधा के रहे । पुरुषों , स्त्रीयों , के साथ ही छोटे बच्चों ने भी कोरस में खुल कर हिस्सा लिया और मुग्ध आनंद से गाया । एक चार वर्षीया बच्चीकी आवाज आप अलग ही देखेंगे ।

शुरू का निवेदन मैंने जो कहा है वही इस गीत का आशय भी है उद्देश भी।
मेरे मित्र सहयोगी शैलेश भारतवासी ने इसे हिन्दयुग्म पर भी लोड किया है । उसकी भी लिंक दी जा रही है।

तो आप सब भी सुने और सुनाएँ ,आनंद लें ।
एक विशेष निवेदन की आप इसे आपस में कॉपी कर सकते हैं, बाँट सकते हैं,डाउनलोड कर सकते हैं पर किसी तरह का कोई उपयोग ,हमारी आपकी भावना को आह़त करते या किसी तरह का कामर्सियल उपयोग , कॉपीराइट का उल्लंघन होगा ।

यहाँ सुने और डाउनलोड करें ।
http://podcast.hindyugm.com/2009/03/maa-teri-jai-ho-rajkumar-singh.html


Saturday, March 7, 2009

एक माँ

ट्रेन के कोने में दुबकी सी वह
उसकी गोद में दुधमुँही बच्ची पड़ी है
न जाने कितनी निगाहें उसे घूर रही हैं,
गोद में पड़ी बच्ची बिलबिला रही है
शायद भूखी है
पर डरती है वह उन निगाहों के बीच
अपने स्तनों को बच्ची के मुँह में लगाने से
वह आँखों के किनारों से झाँकती है
अभी भी लोग उसको सवालिया निगाहों से देख रहे हैं
बच्ची अभी भी रो रही है
आखिर माँ की ममता जाग ही जाती है
वह अपने स्तनों को उसके मुँह से लगा देती है
पलटकर लोगों की आँखों में झाँकती है
इन आँखों में है एक विश्वास, ममत्व
उसे घूर रहे लोग अपनी नजरें हटा लेते हैं
अब उनमें एक माँ की नजरों का सामना
करने की हिम्मत नहीं।

कृष्ण कुमार यादव

Wednesday, February 25, 2009

माँ तुझे सलाम... (राज सिंह जी की पोस्ट)

[दोस्तों,
कुछ तकनीकी कारणों से राज जी की यह पोस्ट प्रकाशित नहीं हो पा रही थी। मैंने इसे दुबारा प्रकाशित करने का प्रयास किया है। लीजिए माँ के लिए राज जी की सलामी: ]

माँ !
जय हो !
तेरी संतानों ........तेरे बच्चों ने ,कला की दुनियाँ में तेरा नाम आसमानों पे लिख दिया ! दुनियाँ भर में सिर्फ़ तेरी ही जय हो रही है ! जय हो माता तेरी जय हो !
लेकिन तेरी ' आन ,बान ,शान, मान ' से से बढ़ कर क्या हो सकता है कोई भी सन्मान ? हो सकता है ?? तेरे बेटे ' रहमान 'ने तो कह भी दिया ..........कहा " मेरे पास माँ है ...........!
सच्चा बेटा तेरा ! सच्चा हिन्दोस्तानी ! और उसने तो न जाने कितने पहले गाकर गुंजाभी दिया था ..................
माँ तुझे सलाम .................! अम्मा तुझे सलाम ................! वंदे मातरम ........!
पूरे देश ने झूम के गाया था उसे उसके साथ । मैंने भी बड़े आनंद मन से गया था माते !
और आज, उसकी उस शानदार ऊँचाई को मेरा छोटा सा सलाम ...........तेरे नाम !
_____________________________________________________________________
जय हो.........जय हो..............जय हो !
जननी मेरी .................. तेरी जय हो !
माता मेरी ....................तेरी जय हो !

तेरी गोद रहे ................आँगन मेरा !
आँचल हो तेरा ............चाहत मेरी !
ममता से भरी ............आँखें तेरी,
माँ सब कुछ है ..............वरदान तेरा !
सौभाग्य मेरा .........अरमान मेरा !
सम्मान मेरा ।
काबा मेरी ......काशी मेरी ..........
ईमान मेरा ............भगवान् मेरा !
जय हो ..........जय हो .......जय ,जय ,जय , जय , जय , जय , हो !
बस माँ मेरी तेरी जय हो .......तेरी जय हो .........तेरी जय हो !


तेरी सेवा ................अनहद नाद रहे
बस तू ही तूही .........याद रहे !
आनंद रहे ..........उन्माद रहे !
हम मिट जायें .........की रहे न रहें ।
बस तेरे सर पे .............ताज रहे ।
तेरे दामन में .........आबाद हैं हम ,
तो फ़िर कैसी......... फरियाद रहे ?
दुनियाँ देखे ............देखे दुनियाँ ...............ऐसी जय हो ...ऐसी जय हो
जय हो.....जय हो ! ................जय ही जय हो !

आई मेरी ..............माई मेरी !
जननी मेरी .........माता मेरी !
भारतमाता ..........माय मदर इंडिया
माय मदर इंडिया ...........भारतमाता !

जय हो .......तेरी.तेरी जय हो .........तेरी जय हो .....................जय हो !

_______________________________________________________
इस गीत का sangeet संयोजन भी मैंने किया है और mumbai में इसी की recording में vyast हूँ । आशा है कुछ दिनों में chitra sangeet mudran के बाद हम सब को देखने sunane का भी आनंद भी प्राप्त होगा .आशा है सब को आनंद मिलेगा .यह कृति rahman को समर्पित की jayegee । चल chitra जगत के सहयोग तथा saujanya को भी dhanyavaad !

posted by RAJ SINH at 9:17 PM on Feb 24, 2009

[प्रकाशन न हो पाने के बावजूद निम्न टिप्पणियाँ ब्लॉगर ने सहेज रखी थीं। उन्हें अविकल प्रस्तुत करता हूँ- सिद्धार्थ]

Blogger RAJ SINH said...

priya shastree jee,

kai bar koshish kar chuka . sheersak ke alawa sab gayab najar aa raha hai . sujhav den ya aap hee prayas karen prakashan ka .

chama karen ,arse baad yaad kiya maa ko.

thoda path vichlit aur uddeshya vichlit ho gaya tha .

February 25, 2009 1:41 PM
Blogger P.N. Subramanian said...

माँ की महत्ता है. क्षमा याचना करें. माँ है. सब ठीक हो जायेगा.

February 25, 2009 2:28 PM
Blogger नीरज गोस्वामी said...

राज साहेब ...विलक्षण रचना है ये आपकी...रहमान जी को एक सही भावांजलि है आपकी और हम सब की और से...हम सब आभारी हैं उनके जिन्होंने देश का नाम पूरे विश्व में रोशन कर दिया...
इसे संगीत बद्ध किये हुए सुनने के लिए बेताब हैं हम
नीरज

February 25, 2009 7:13 PM
Blogger Harkirat Haqeer said...

Raj ji. vilchan rachna mujhe bhi choti badi lino k siva kuch nazar nahi aaya ...chsma lga kr bhi dekha... ab aap hi sngka ka samidhan karen...!!

February 25, 2009 8:07 PM

Tuesday, February 24, 2009

माँ तुझे सलाम !

माँ !


जय हो !


तेरी संतानों ........तेरे बच्चों ने ,कला की दुनियाँ में तेरा नाम आसमानों पे लिख दिया ! दुनियाँ भर में सिर्फ़ तेरी ही जय हो रही है ! जय हो माता तेरी जय हो !


लेकिन तेरी ' आन ,बान ,शान, मान ' से से बढ़ कर क्या हो सकता है कोई भी सन्मान ? हो सकता है ?? तेरे बेटे ' रहमान 'ने तो कह भी दिया ..........कहा " मेरे पास माँ है ...........!


सच्चा बेटा तेरा ! सच्चा हिन्दोस्तानी ! और उसने तो न जाने कितने पहले गाकर गुंजाभी दिया था ..................


माँ तुझे सलाम .................! अम्मा तुझे सलाम ................! वंदे मातरम ........!


पूरे देश ने झूम के गाया था उसे उसके साथ । मैंने भी बड़े आनंद मन से गया था माते !


और आज, उसकी उस शानदार ऊँचाई को मेरा छोटा सा सलाम ...........तेरे नाम !


_____________________________________________________________________


जय हो.........जय हो..............जय हो !


जननी मेरी .................. तेरी जय हो !


माता मेरी ....................तेरी जय हो !



तेरी गोद रहे ................आँगन मेरा !


आँचल हो तेरा ............चाहत मेरी !


ममता से भरी ............आँखें तेरी,


माँ सब कुछ है ..............वरदान तेरा !


सौभाग्य मेरा .........अरमान मेरा !


सम्मान मेरा ।


काबा मेरी ......काशी मेरी ..........


ईमान मेरा ............भगवान् मेरा !


जय हो ..........जय हो .......जय ,जय ,जय , जय , जय , जय , हो !


बस माँ मेरी तेरी जय हो .......तेरी जय हो .........तेरी जय हो !




तेरी सेवा ................अनहद नाद रहे


बस तू ही तूही .........याद रहे !


आनंद रहे ..........उन्माद रहे !


हम मिट जायें .........की रहे न रहें ।


बस तेरे सर पे .............ताज रहे ।


तेरे दामन में .........आबाद हैं हम ,


तो फ़िर कैसी......... फरियाद रहे ?


दुनियाँ देखे ............देखे दुनियाँ ...............ऐसी जय हो ...ऐसी जय हो


जय हो.....जय हो ! ................जय ही जय हो !



आई मेरी ..............माई मेरी !


जननी मेरी .........माता मेरी !


भारतमाता ..........माय मदर इंडिया


माय मदर इंडिया ...........भारतमाता !



जय हो .......तेरी.तेरी जय हो .........तेरी जय हो .....................जय हो !



_______________________________________________________


इस गीत का sangeet संयोजन भी मैंने किया है और mumbai में इसी की recording में vyast हूँ । आशा है कुछ दिनों में chitra sangeet mudran के बाद हम सब को देखने sunane का भी आनंद भी प्राप्त होगा .आशा है सब को आनंद मिलेगा .यह कृति rahman को समर्पित की jayegee । चल chitra जगत के सहयोग तथा saujanya को भी dhanyavaad !

Saturday, February 7, 2009

माँ के लिए प्रार्थना... एक दर्द भरा गीत!

आज मुझे एक बिशिष्ट कवि सम्मेलन में जाने का मौका मिला। विशिष्ट इसलिए कि यह नामी-गिरामी, स्थापित, प्रसिद्ध और पूर्णकालिक कवियों का मंच नहीं था। बल्कि यह सरकारी सेवा कर रहे अधिकारियों की काव्य-प्रतिभा को सामने लाने का एक प्रयास था।

इलाहाबाद स्थित उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र के सभागार में आयोजित इस ‘प्रशासनिक कवि सम्मेलन’ में जाने से पहले मुझे केवल उन अधिकारियों का नाम पता था। एक-दो को छो्ड़कर उनकी कवित्व क्षमता के बारे में मैं बिलकुल अन्जान था। उत्सुकता वश वहाँ जाना एक दुर्लभ सुख दे गया। लगभग तीन घण्टे तक हम अनेक काव्य रसों से सराबोर होते रहे।

लेकिन जिस एक गीत ने हमारी आँखें भिगो दीं उसे सुनाया इस कार्यक्रम के संयोजक और युवा गीतकार व शायर इमरान ‘प्रतापगढ़ी’ ने। इस नवयुवक की प्रतिभा विलक्षण है। यूँ तो इमरान ने अपने लिए संचालक की भूमिका चुनी थी और मंच को अपने वाक‌चातुर्य से जीवन्त रखा लेकिन श्रोताओं की जिद पर उसने जब एक बच्चे द्वारा अपनी बीमार माँ को बचा लेने के लिए की जा रही प्रार्थना को शब्द और स्वर दिया तो खचाखच भरा हाल नम आँखो के साथ तालियाँ बजाता रहा।

मैने उस दृश्य को अपने मोबाइल फोन के वीडियो कैमरे में उतारने की कोशिश की है। शोर शराबे के बीच ऑडियो क्वालिटी बहुत अच्छी तो नहीं है, लेकिन थोड़ा धैर्य से सुनने पर निश्चित ही मेरी तरह आपभी सिहर उठेंगे

इमरान ने गीत से पहले एक शेर पढ़ा:

तेरी हर बात चलकर यूँ भी मेरे जी से आती है,

कि जैसे याद की खुशबू किसी हिचकी से आती है।

मुझे आती है तेरे बदन से ऐ माँ वही खुशबू,

जो एक पूजा के दीपक में पिगलते घी से आती है॥

ये रहा गीत का वीडियो मोबाइल कैमरे से:


आपकी सुविधा के लिए इस मार्मिक गीत के शब्द यहाँ प्रस्तुत हैं:

खुदा मुझसे माँ की मोहब्बत न छीने
अगर छीनना है जहाँ छीन ले वो
जमी छीन ले आसमाँ छीन ले वो
मेरे सर की बस एक ये छत न छीने
खुदा मुझसे माँ की मोहब्बत न छीने

अगर माँ न होती जमीं पर न आता
जो आँचल न होता कहाँ सर छुपाता
मेरा लाल कहकर बुलाती है मुझको
कि खुद भूखी रहकर खिलाती है मुझको
कि होंठों कि मेरी हँसी छीन ले वो
कि गम देदे हर एक खुशी छीन ले वो
यही एक बस मुझसे दौलत न छीने
खुदा मुझसे माँ की मोहब्बत न छीने

मुझे पाला पोसा बड़ा कर दिया है
कि पैरों पे अपने खड़ा कर दिया है
कभी जब अँधेरों ने मुझको सताया
तो माँ की दुआ ने ही रस्ता दिखाया
ये दामन मेरा चाहे नम कर दे जितना
वो बस आज मुझ पर करम कर दे जितना
जो मुझ पर किया है इनायत न छीने
खुदा मुझसे माँ की मोहब्बत न छीने

अगर माँ का सर पर नहीं हाँथ होगा
तो फ़िर कौन है जो मेरे साथ होगा
कहाँ मुँह छुपाकर के रोया करूंगा
तो फ़िर किसकी गोदी में सोया करूंगा
मेरे सामने माँ की जाँ छीनकर के
मेरी खुशनुमा दासताँ छीन कर के
मेरा जोश और मेरी हिम्मत न छीने
खुदा मुझसे माँ की मोहब्बत न छीने

इमरान ‘प्रतापगढ़ी’

प्रस्तुति: सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी

Tuesday, January 20, 2009

माँ के आँसू

बचपन से ही देखता आ रहा हूँ माँ के आँसू
सुख में भी, दुख में भी
जिनकी कोई कीमत नहीं
मैं अपना जीवन अर्पित करके भी
इनका कर्ज नहीं चुका सकता।

हमेशा माँ की आँखों में आँसू आये
ऐसा नहीं कि मैं नहीं रोया
लेकिन मैंने दिल पर पत्थर रख लिया
सोचा, कल को सफल आदमी बनूँगा
माँ को सभी सुख-सुविधायें दूँगा
शायद तब उनकी आँखों में आँसू नहीं हो
पर यह मेरी भूल थी।

आज मैं सफल व्यक्ति हूँ
सारी सुख-सुविधायें जुटा सकता हूँ
पर एक माँ के लिए उसके क्या मायने?
माँ को सिर्फ चाहिए अपना बेटा
जिसे वह छाती से लगा जी भर कर प्यार कर सके
पर जैसे-जैसे मैं ऊँचाईयों पर जाता हूँ
माँ का साथ दूर होता जाता है
शायद यही नियम है प्रकृति का।
कृष्ण कुमार यादव
kkyadav.y@rediffmail.com

Monday, January 12, 2009

* फोन की घंटी *

बजी फोन की घंटी
मै एकदम से चौकी
सामने से आवाज़ मैने सुनी
कैसी हो तुम सोनी ???

रोम रोम मेरा जाग उठा
मधुर स्वर से कान गूंज उठा
माँ नज़रो के सामने थी

आंखो मै मेरे नमी सी छा गई
हलक से जैसे आवाज़ छीन गई
मै बहुत ही बढ़िया हू
आसानी से जूठ बोल दिया

भूल गई की सामने माँ थी
मेरे अणु अणु को पहेचानती थी
मेरी जन्मदात्री जो थी

याद कर रही थी ना मुजे??
पता चल गया
तभी तो आज इतनी देर से
मैने तुजे फोन लगाया

जाने कैसे पता चल जाती है
माँ को मेरी हर बात
अब तक ना मिला कोई जवाब

Thursday, January 8, 2009

कुछ नया लिखूँ


बचपन से आज तक की यात्रा
आहिस्ता-आहिस्ता की है पूरी
पर आज भी है मन में
एक आस है अधूरी

नहीं ढाल पाई अपने को
उस आकार में
जैसा माँ चाहती थी

माँ की मीठी यादें
उनके संग बिताए
क्षणों की स्मृतियाँ
आज हो गईं हैं धुँधली
छा गया है धुआँ
विस्मृति का

मन-मस्तिष्क पर छाए
धुएँ को हटाकर
जब झाँकती हूँ अंदर
जब उतरती हूँ
धीरे-धीरे अंतर में
तो माँ की हँसती
मुस्कुराती सलोनी सूरत
देती है प्रेरणा
करती है प्रेरित
कि कुछ नया करूँ
 समय की स्लेट पर
भावों के स्वर्णिम अक्षरों से
कुछ नया लिखूँ

पर माँ ! मन के भाव
न जाने क्यों सोए हैं
क्यों नहीं होती झंकृति
रोम-रोम में
क्यों नहीं बजती बाँसुरी
तन-मन में
क्यों नहीं सितार के तार
बजने को होते हैं व्याकुल
क्यों नहीं हाथ
बजाने को होते हैं आकुल

लगता है
तुझसे मिले संस्कार
तन्द्रा में हैं अलसाए
रिसती जा रही हैं स्मृतियाँ
घिसती जा रही है ज़िंदगी
सोते जा रहे हैं भाव

थपथपाऊँगी भावों को
जगाऊँगी उन्हें
और ले जाऊँगी
कल्पना के सागर के उस पार
जहाँ लगाकर डुबकी
लाएँगे ढूँढकर
अनगिनत काव्य-मोती

मोतियों की माला से
सजाऊँगी वैरागी मन
तब होगा नवसृजन
बजेगी चैन की बाँसुरी

पहनकर दर्द के घुँघुरू
नाचेगी जब पीड़ा
ता थेई तत् तत्
शब्दों की ढोलक
देगी थाप
ता किट धा
व्याकुलता की बजेगी
उर में झाँझ
साथ देगी
कल्पना की सारंगी
होगी अनोखी झंकार
मिलेगा आकार
मन के भावों को

माँ ! दो आशीर्वाद
कर सकूँ नवसृजन
और जब आऊँ
तुम्हारे पास
तो तुम्हें पा मुस्कुराऊँ
एक ही संकल्प

बार-बार और क्षण-क्षण
न दोहराऊँ
सभी का प्यार-दुलार
और विश्वास पाऊँ !

  • डॉ. मीना अग्रवाल

Sunday, January 4, 2009

परी

बचपन में
माँ रख देती थी चाॅकलेट
तकिये के नीचे
कितना खुश होता
सुबह-सुबह चाॅकलेट देखकर
माँ बताया करती
जो बच्चे अच्छे काम
करते हैं
उनके सपनों में परी आती
और देकर चली जाती चाॅकलेट
मुझे क्या पता था
वो परी कोई और नहीं
माँ ही थी !!!

कृष्ण कुमार यादव