Showing posts with label मां तू महान है. Show all posts
Showing posts with label मां तू महान है. Show all posts

Wednesday, February 25, 2009

माँ तुझे सलाम... (राज सिंह जी की पोस्ट)

[दोस्तों,
कुछ तकनीकी कारणों से राज जी की यह पोस्ट प्रकाशित नहीं हो पा रही थी। मैंने इसे दुबारा प्रकाशित करने का प्रयास किया है। लीजिए माँ के लिए राज जी की सलामी: ]

माँ !
जय हो !
तेरी संतानों ........तेरे बच्चों ने ,कला की दुनियाँ में तेरा नाम आसमानों पे लिख दिया ! दुनियाँ भर में सिर्फ़ तेरी ही जय हो रही है ! जय हो माता तेरी जय हो !
लेकिन तेरी ' आन ,बान ,शान, मान ' से से बढ़ कर क्या हो सकता है कोई भी सन्मान ? हो सकता है ?? तेरे बेटे ' रहमान 'ने तो कह भी दिया ..........कहा " मेरे पास माँ है ...........!
सच्चा बेटा तेरा ! सच्चा हिन्दोस्तानी ! और उसने तो न जाने कितने पहले गाकर गुंजाभी दिया था ..................
माँ तुझे सलाम .................! अम्मा तुझे सलाम ................! वंदे मातरम ........!
पूरे देश ने झूम के गाया था उसे उसके साथ । मैंने भी बड़े आनंद मन से गया था माते !
और आज, उसकी उस शानदार ऊँचाई को मेरा छोटा सा सलाम ...........तेरे नाम !
_____________________________________________________________________
जय हो.........जय हो..............जय हो !
जननी मेरी .................. तेरी जय हो !
माता मेरी ....................तेरी जय हो !

तेरी गोद रहे ................आँगन मेरा !
आँचल हो तेरा ............चाहत मेरी !
ममता से भरी ............आँखें तेरी,
माँ सब कुछ है ..............वरदान तेरा !
सौभाग्य मेरा .........अरमान मेरा !
सम्मान मेरा ।
काबा मेरी ......काशी मेरी ..........
ईमान मेरा ............भगवान् मेरा !
जय हो ..........जय हो .......जय ,जय ,जय , जय , जय , जय , हो !
बस माँ मेरी तेरी जय हो .......तेरी जय हो .........तेरी जय हो !


तेरी सेवा ................अनहद नाद रहे
बस तू ही तूही .........याद रहे !
आनंद रहे ..........उन्माद रहे !
हम मिट जायें .........की रहे न रहें ।
बस तेरे सर पे .............ताज रहे ।
तेरे दामन में .........आबाद हैं हम ,
तो फ़िर कैसी......... फरियाद रहे ?
दुनियाँ देखे ............देखे दुनियाँ ...............ऐसी जय हो ...ऐसी जय हो
जय हो.....जय हो ! ................जय ही जय हो !

आई मेरी ..............माई मेरी !
जननी मेरी .........माता मेरी !
भारतमाता ..........माय मदर इंडिया
माय मदर इंडिया ...........भारतमाता !

जय हो .......तेरी.तेरी जय हो .........तेरी जय हो .....................जय हो !

_______________________________________________________
इस गीत का sangeet संयोजन भी मैंने किया है और mumbai में इसी की recording में vyast हूँ । आशा है कुछ दिनों में chitra sangeet mudran के बाद हम सब को देखने sunane का भी आनंद भी प्राप्त होगा .आशा है सब को आनंद मिलेगा .यह कृति rahman को समर्पित की jayegee । चल chitra जगत के सहयोग तथा saujanya को भी dhanyavaad !

posted by RAJ SINH at 9:17 PM on Feb 24, 2009

[प्रकाशन न हो पाने के बावजूद निम्न टिप्पणियाँ ब्लॉगर ने सहेज रखी थीं। उन्हें अविकल प्रस्तुत करता हूँ- सिद्धार्थ]

Blogger RAJ SINH said...

priya shastree jee,

kai bar koshish kar chuka . sheersak ke alawa sab gayab najar aa raha hai . sujhav den ya aap hee prayas karen prakashan ka .

chama karen ,arse baad yaad kiya maa ko.

thoda path vichlit aur uddeshya vichlit ho gaya tha .

February 25, 2009 1:41 PM
Blogger P.N. Subramanian said...

माँ की महत्ता है. क्षमा याचना करें. माँ है. सब ठीक हो जायेगा.

February 25, 2009 2:28 PM
Blogger नीरज गोस्वामी said...

राज साहेब ...विलक्षण रचना है ये आपकी...रहमान जी को एक सही भावांजलि है आपकी और हम सब की और से...हम सब आभारी हैं उनके जिन्होंने देश का नाम पूरे विश्व में रोशन कर दिया...
इसे संगीत बद्ध किये हुए सुनने के लिए बेताब हैं हम
नीरज

February 25, 2009 7:13 PM
Blogger Harkirat Haqeer said...

Raj ji. vilchan rachna mujhe bhi choti badi lino k siva kuch nazar nahi aaya ...chsma lga kr bhi dekha... ab aap hi sngka ka samidhan karen...!!

February 25, 2009 8:07 PM

Friday, October 10, 2008

ममता की उधेड़बुन

हाथ सिलाई की मशीन देख,
आज फिर बचपन की याद आ गई...
टुक टिक टुक टिक की धुन...
फिर आ कानों में छा गई...

कितने रंगों में सजाया करती थी....
कितने सपनों को सिला करती थी...
कभी रात भर जग कर तुरपाई...
फिर कुर्सी पर लगी आँख...सोई चारपाई

तेरे सपनों में अच्छी दिखती थी...
काला ठीका लगा कर चलती थी....
तू कल के माप के सपने बुनती थी...
मैं उन्हे पहन कर हँसती थी ...

फिर एक दिन ना जाने क्या हुआ था
...समय ने कुछ इस तरह छुआ था....
तूने चलना सिखाया मैं उड़ने लगी थी...
तेरे रंगों से कतराने लगी थी....

उस दिन तू अपना सपना लेकर...
रोई थी कोने में सिसक कर...
उस दिन एक लम्बी चिट्ठी लिखी थी.......
तूने सोचा मैं सोई.......
मैं सोई नहीं थी...

रंग मेरा बहुत सुंदर नहीं था...
पल्लू पकड़ तुझसे कहा था...
मुझे भी सिखाओ सपनों को बुनना....
तेरे सपने अब नहीं है पहनना....

रात भर जग कर जो सपना बुना था...
मशीन बंद कर उसपर रखा था....
"बड़ी तू हो गई...
जा खुद ही सिलना...... "
तूने सोचा मैं गई....
मैं वहीं पर खड़ी थी .....

किताबों को पढ़कर चली कुछ बनाने....
सखी ने कहा बड़ा सुन्दर बना है...
तुझको दिया था बड़े प्यार से...
तू पहनेगी इसको इस अरमान से..
तूने उसको एक कोने में टाँगा........
तूने सोचा मैने देखा नहीं...
भरी आँख ले वहीं पर खड़ी थी....

कितने ख्वाबों को मैने बुना है....
सबने कहा खूबसूरत बना है...
तूने उसे कभी देखा ही नहीं......
शायद इसलिए कभी मुझे भाया नहीं है

अकेले एक दिन मेरे कमरे में आकर...
तह किए ख्वाबों को तू देख रही थी...
तेरे सपनों के रंगों जैसे ही थे यह...
हल्की मुस्कान थी...आंसू की चमक भी......
तूने सोचा मैं वहाँ पर नहीं थी..
तेरे आशीष के लिए तरसी रुकी थी....

आज फिर यह धुन यादों में आई....
साथ में पुराने सपने भी लाई....

बिटिया मेरे सपनों में सजी थी....
काला ठीका लगा हँस कर खड़ी थी...

कोने में कुछ भी ना टंगा था...
क्या माँ ने उसको ओढ़े रखा था ...???

Thursday, October 9, 2008

हर रूप में तेरा ही स्वरूप ..

जब ईश्वर ने दुनिया रची तो कुदरत के भेद समझाने के लिए इंसान को और नैतिक मूल्यों को विचार देने के लिए हर विचार को एक आकार दिया .यानी किसी देवी या देवता का स्वरूप चित्रित किया ..यह मूर्तियाँ मिथक थी ..पर हमारे अन्दर कैसे कैसे गुण भरे हुए हैं यह उन मूर्तियों में भर दिया ताकि एक आम इंसान उन गुणों को अपने अन्दर ही पहचान सके ...

भारत में सदियों से माता की शक्ति को दुर्गा का रूप माना जाता रहा है | एक ऐसी शक्ति का जिनकी शरण में देवता भी जाने से नही हिचकचाते हैं | शक्ति प्रतीक है उस सत्ता का जो नव जीवन देती है .जिसका माँ सवरूप सबके लिए पूजनीय है | प्रत्येक महिला वह शक्ति है वह देवी माँ हैं जिसने जन्म दिया है .अनेक पेगम्बरों को ,मसीहों को ,अवतारों को और सूफियों संतों को .....वह अपने शरीर से एक नए जीवन को जन्म देती है ..

पुराने समय में अनेक पति या पत्नी को दर्शाया जाता है .इसका गहरा अर्थ ले तो मुझे इसका मतलब यह समझ आता है कि अधिकाँश पति व पत्नी अनेक गुणों के प्रतीक हैं ...जैसे जैसे समरूपता हमें देवी देवताओं में दिखायी देती है वह हमारे ही मनुष्य जीवन के कई रूपों और कई नामों की समरूपता ही है ..

लक्ष्मी का आदि रूप पृथ्वी है कमल के फूल पर बैठी हुई देवी | यह एक द्रविड़ कल्पना थी | आर्यों ने उस को आसन से उतार कर उसका स्थान ब्रह्मा को दे दिया |पर अनेक सदियों तक आम जनता में पृथ्वी की पूजा बनी रही तो लक्ष्मी को ब्रह्मा के साथ बिठा कर वही आसान उसको फ़िर से दे दिया ...बाद में विष्णु के साथ उसको बिठा दिया .विष्णु के वामन अवतार के समय लक्ष्मी पद्मा कहलाई ,परशुराम बनने के समय वह धरणी बनी .राम के अवतार के समय सीता का रूप लिया और कृष्ण के समय राधा का ..बस यही समरूपता का आचरण है ...

इसी प्रकार ज्ञान और कला की देवी सरस्वती वैदिक काल में नदियों की देवी थी .फ़िर विष्णु की गंगा लक्ष्मी के संग एक पत्नी के रूप में आई और फ़िर ब्रहमा की वाक् शक्ति के रूप में ब्रह्मा की पत्नी बनी ..यह सब पति पत्नी बदलने का अर्थ है कि यह सब प्रतीक हुए अलग अलग शक्ति के ..

समरूपता का उदाहरण महादेवी भी हैं जो अपने पति शिव से गुस्सा हो कर अग्नि में भस्म हो गयीं और सती कहलाई ..परन्तु यह उनका एक रूप नही हैं ..वह अम्बिका है ,हेमवती ,गौरी और दुर्गा पार्वती भी .काली भी है ..काली देवी का रूप मूल रूप में अग्नि देवता की पत्नी के रूप में था फ़िर महादेवी सती के रूप में हुआ |

सरस्वती के चारों हाथों में से दो में वीणा लय और संगीत का प्रतीक है ..एक हाथ में पाण्डुलिपि का अर्थ उनकी विदुषी होने का प्रमाण है और चौथे हाथ में कमल का फूल निर्लिप्तता का प्रतीक है ..उनका वहां है हंस दूध ,पानी यानी सच और झूठ को अलग कर सकने का प्रतीक ..एक वर्णन आता है कि ब्रह्मा ने सरस्वती के एक यज के अवसर पर देर से पहुँचने के कारण गायत्री से विवाह कर लिया था ..अब इसकी गहराई में जाए तो पायेंगे की वास्तव में गायत्री से विवाह करना मतलब गायत्री मन्त्र से ,चिंतन से ,जीवन के शून्य को भरने का संकेत है ..गायत्री की मूर्ति में उसके पाँच सिर दिखाए जाते हैं यह एक से अधिक सिर मानसिक शक्ति के प्रतीक हैं ...........इसी तरह गणेश जी की पत्नियां रिद्धि सिद्धि उनकी शक्ति और बुद्धि की प्रतीक हैं

और स्त्री इन्ही सब शक्तियों से भरपूर है ..इस में भी सबसे अधिक सुंदर प्रभावशाली रूप माँ का है ...असल में जब आंतरिक शक्तियां समय पा कर बाहरी प्रतीकों के अनुसार नहीं रहती हैं तो सचमुच शक्तियों का अपमान होता है ..बात सिर्फ़ समझने की है और मानने की है ..कि कैसे हम अपने ही भीतर सत्ता और गरिमा को पहचाने क्यों कि हम ही शक्ति हैं और हम ही ख़ुद का प्रकाश ..

Tuesday, October 7, 2008

माँ !!!

जहां बचपन अपना छिपता उस पल्लू मैं,  है ये.... माँ
जहा चैन की नींद सोए..उस गोदी मै, है ये ......मा
जहा जीद करके किए है पूरे..उस अरमान मै, है ये..... माँ
जिसके गुस्से मै भी छलकता है...उस प्यार मै, है ये......माँ
जब कोई ना मिले तब रोने को..मिलते कंधे मै, है ये.....माँ
जिसकी सदा होती है..उस्स आरज़ू मै, है ये.....माँ
जिसका स्थान है सदा जहा..उस मन मै, है ये.....माँ
जहा छुपे है राज़ हमाँरे ..उस दिल मै है, ये......माँ
जिसके बिना लगे सूनापन..उस जीवन में, है ये .... माँ
जिसपे अंधा भरोसा है..वो सच्ची दोस्त, है ये .....माँ
जिसकी मौजूदगी फैलती जीवन मै..वो *खुशी*, है ये.....माँ

Wednesday, September 24, 2008

वंदे मातरम .

हम भारतियों के लिए वंदे मातरम भावना का चरम है ।

माँ ......हर धर्म सस्कृति समाज देश में ,इतिहास के हर मोड़ पे सर्वोच्च सम्मानित सम्बन्ध !

माँ की वंदना....... वंदे मातरम !........हम कहें .........वंदे मातरम !

'वंदे मातरम ' शब्द भारत के हैं ,पर सम्मान हर एक माँ का है !

फ़िर भी ......न कर सकें वंदना तो ना सही।

इतना तो करें....... किसी बेटे की गलती पे किसी ........

माँ को गाली तो न दें .

गलती बेटा करे .......गाली माँ खाए ??????????

वंदे मातरम !

माँ जैसा कोई नही होता ...



नारी हमेशा से ही हर रूप में पूजनीय रही है और उसका हर रूप अदभुत और सुंदर है| एक छोटी सी कहानी कहीं पढ़ी थी वो कहानी दिल को छू गयी !एक बेटे ने अपनी आत्मकथा में अपनी माँ के बारे में लिखा कि उसकी माँ की केवल एक आँख थी...इस कारण वह उस से नफ़रत करता था |एक दिन उसके एक दोस्त ने उस से आ कर कहा कि ;''अरे !तुम्हारी माँ कैसी दिखती है ना एक ही आँख में ?"" यह सुन कर वो शर्म से जैसे ज़मीन में धंस गया| उसका दिल किया यहाँ से कही भाग जाए , छिप जाए और उस दिन उसने अपनी माँ से कहा कि यदि वो चाहती है कि दुनिया में मेरी कोई हँसी ना उड़ाए तो वो यहाँ से चली जाए|

माँ ने कोई उतर नही दिया ,वह इतना गुस्से में था कि एक पल को भी नही सोचा कि उसने माँ से क्या कह दिया है और यह सुन कर उस पर क्या गुजरेगी | कुछ समय बाद उसकी पढ़ाई खत्म हो गयी ,अच्छी नौकरी लग गई और उसने शादी कर ली | एक घर भी खरीद लिया फिर उस के बच्चे भी हुए | एक दिन माँ का दिल नही माना | वो सब खबर तो रखती थी अपने बेटे के बारे में | जब एक दिन ख़ुद को रोक नही पायी तो उन से मिलने को चली गयी | उस के पोता -पोती उसको देख के पहले डर गए फिर ज़ोर ज़ोर से हँसने लगे बेटा यह देख कर चिल्लाया कि तुमने कैसे हिम्मत की यहाँ आने की ,मेरे बच्चो को डराने की और वहाँ से जाने को कहा |माँ ने कहा कि शायद मैं ग़लत पते पर आ गई हूँ मुझे अफ़सोस है ,और वो यह कह के वहाँ से चली गयी|

एक दिन पुराने स्कूल से पुनर्मिलन समरोह का एक पत्र आया | बेटे ने सोचा कि चलो सब से मिल के आते हैं !वो गया सबसे मिला ,यूँ ही जिज्ञासा हुई कि देखूं माँ है की नही अब भी पुराने घर में|

जब वह वहां गया तो .वहाँ जाने पर पता चला कि अभी कुछ दिन पहले ही उसकी माँ का देहांत हो गया है | यह सुन कर भी बेटे की आँख से एक भी आँसू नही टपका |तभी एक पड़ोसी ने कहा कि वो एक पत्र दे गयी है तुम्हारे लिए .....पत्र में माँ ने लिखा था कि ""मेरे प्यारे बेटे मैं हमेशा तुम्हारे बारे में ही सोचा करती थी और सदा तुम कैसे हो? कहाँ हो ?यह पता लगाती रहती थी | उस दिन मैं तुम्हारे घर में तुम्हारे बच्चो को डराने नही आई थी ,बस रोक नही पाई उन्हे देखने से इस लिए आ गयी थी, मुझे बहुत दुख है की मेरे कारण तुम्हे हमेशा ही एक हीन भावना रही ,पर इस के बारे में मैं तुम्हे एक बात बताना चाहती हूँ कि जब तुम बहुत छोटे थे तो तुम्हारी एक आँख एक दुर्घटना में चली गयी |अब मै माँ होने के नाते कैसे सहन करती कि मेरा बेटा अंधेरे में रहे ,इस लिए मैने अपनी एक आँख तुम्हे दे दी और हमेशा यह सोच के गर्व महसूस करती रही कि अब मैं अपने बेटे की आँख से दुनिया देखूँगी और मेरा बेटा अब पूरी दुनिया देख पाएगा उसके जीवन में अंधेरा नही रहेगा ..
सस्नेह तुम्हारी माँ

यह एक कहानी यही बताती है कि माँ अपनी संतान से कितना प्यार कर सकती है बदले में कुछ नही चाहती नारी का सबसे प्यारा रूप माँ का होता है बस वो सब कुछ उन पर अपना लुटा देती है और कभी यह नही सोचती की बदले में उसका यह उपकार बच्चे उसको कैसे देंगे ! नारी का रूप माँ के रूप में सबसे महान है इसी रूप में वो स्नेह , वात्सलय , ममता मॆं सब उँचाइयों को छू लेती है | उसके सभी दुख अपने बच्चे की एक मुस्कान देख के दूर हो जाते हैं!

तभी हमारे हिंदू संस्कार में माँ को देवता की तरह पूजा जाता है माँ को ही शिशु का पहला गुरु माना जाता है सभी आदर्श रूप एक नारी के रूप में ही पाए जाते हैं जैसे विद्या के रूप में सरस्वती ,धन के रूप में लक्ष्मी, पराक्रम में दुर्गा ,सुन्दरता में रति और पवित्रता में गंगा ..वो उषा की बेला है, सुबह की धूप है ,किरण सी उजली है इस की आत्मा में प्रेम बसता है|
किसी कवि ने सच ही कहा है कि ..

प्रकति की तुम सजल घटा हो
मौसम की अनुपम काया
हर जगह बस तुम ही तुम
और तुम्हारा सजल रूप है समाया !!


रंजना

Monday, September 22, 2008

* एक उलझन *

मेरे गुजराती ब्लॉग मै लिखा हुआ यहा हिन्दी मै पेश करती हू.... कुछ गलती हो तो माफ कीजिएगा.


*एक उलझ़न *
~~~~~~~~

क्या कहू??
कहने को कोई शब्द नही मिलते,
शब्द मिलते है तो,
सुनने को कोई अपने नही मिलते...
मन की बात किसे कहू???
जब कोई मुझे ही समझते...
उल़झन मै फंस जाती हँ,
तब याद आती है उस मॉं की
जिसके बिना ज़िंदगी मै,
सही मंज़िल नहीं मिलती....

Saturday, September 20, 2008

माँ कभी ख़त्म नही होती ....


माँ लफ्ज़ ज़िंदगी का वो अनमोल लफ्ज है ... जिसके बिना ज़िंदगी, ज़िंदगी नहीं कही जा सकती ...

मेरा बचपन थक के सो गया माँ तेरी लोरियों के बग़ैर
एक जीवन अधूरा सा रह गया माँ तेरी बातो के बग़ैर

तेरी आँखो में मैने देखे थे अपने लिए सपने कई
वो सपना कही टूट के बिखर गया माँ तेरे बग़ैर.....

********************************************************************************

आज तू बहुत दूर है मुझसे, पर दिल के बहुत पास है।
तुम्हारी यादों की वह अमूल्य धरोहर

आज भी मेरे साथ है,

ज़िंदगी की हर जंग को जीतने के लिए,
अपने सर पर मुझे महसूस होता
आज भी तेरा हाथ है।

कैसे भूल सकती हूँ माँ मैं आपके हाथों का स्नेह,

जिन्होने डाला था मेरे मुंह में पहला निवाला,
लेकर मेरा हाथ अपने हाथों में,

दुनिया की राहों में मेरा पहला क़दम था जो डाला

जाने अनजाने माफ़ किया था मेरी हर ग़लती को,

हर शरारत को हँस के भुलाया था,
दुनिया हो जाए चाहे कितनी पराई,
पर तुमने मुझे कभी नही किया पराया था,
दिल जब भी भटका जीवन के सेहरा में,
तेरे प्यार ने ही नयी राह को दिखाया था

ज़िंदगी जब भी उदास हो कर तन्हा हो आई,
माँ तेरे आँचल ने ही मुझे अपने में छिपाया था

आज नही हो तुम जिस्म से साथ मेरे,
पर अपनी बातो से , अपनी अमूल्य यादो से
तुम हर पल आज भी मेरे साथ हो..........
क्योंकि माँ कभी ख़त्म नही होती .........
तुम तो आज भी हर पल मेरे ही पास हो.........
माँ हर पल तुम साथ हो मेरे, मुझ को यह एहसास है


Thursday, September 18, 2008

माँ तू महान है

माँ, वो शब्द जिसके बारें मे सोचतें ही आंखों के सामने एक ममतामयी मूरत आ जाती है। ये वो शब्द है जिसको शब्दों या वाक्यों से परिभाषित करना असम्भव है। और मेरे लिए तो ये और कठिन कम है क्योकि शब्दों से जादू का खेल, मुझे नही आता।

माँ की ममता तो निश्वार्थ होती है, तो फिर कुछ शब्द कहके इसे अपमानित क्यो किया जाएँ?
मैं अब ये नही कहूँगा की मेरी माँ इस जगत की सबसे अच्छी माँ है क्योकि मैं जानता हूँ सब यही सोचेंगे और फिर हो जायेगा व्यर्थ का द्वंध। और वैसे भी इसकी तुलना करना.........

मैं, अंकित, यहाँ इंदौर में अपने घर से काफी दूर पढने के लिए आया हूँ। कोई भी दिन ऐसा नही जिस दिन मैंने माँ को याद नही किया हों। जैसा की मैंने पहले ही कहा है माँ को शब्दों में नही बाँध सकतें।

पर किसी ज़माने की एक कहावत याद आ गई, "जहाँ ना पहुचें रवि, वह पहुचे कवि। "
इसीलिए मैं अपनी चोटी सी कविता इस दुनिया की सभी माताओं को समर्पित करना चाहूँगा। आप तो जानते ही है की मैं कविता नही करता पर फिर भी बस ऐसे ही दिल चाहा, तो हाजिर है आपके सामने।
माँ तू महान है
गाए देवता भी तेरे गुणगान है।
तुने हमें चलना सिखाया
भला क्या है, बुरा क्या है
ये भी बताया।
तू किए कितने अनगिनत एहसान है
माँ......तू महान है।
रोती है तू, जब रोतें है हम
हसंती है तू, जब हसतें है हम
तुझमे जरा भी ना अभिमान है।
माँ...तू महान है।।
अब आगे नही लिख पाउँगा। इसके लिए माफ़ करें। और मुझे लगता है की ये पंकितयां भी कही से सुनी हुई ही है।
तो अब अंकित आपसे ये कह कहके विदा लेता है।
M = Motivater
O = Onlyone
T = Truelove
H = Heartiest
E = Exceptional
R = Responsible
That's Mother. So never Forget to Love Your Mother.
अंकित
प्रथम