हम जी न सकेंगे दुनियां में
बचपन में जब मंदिर जाता
कितना शिवजी से लड़ता था?
छीने क्यों तुमने ? माँ, पापा
भोले से नफरत करता था !
क्यों मेरा मस्तक झुके वहां, जिसने माँ की ऊँगली छीनी !
मंदिर के द्वारे बचपन से, हम गुस्सा होकर बैठे हैं !
एक दिन सपने में तुम जैसी,
माँ जन्मे कोख तुम्हारी से
जो दूध पिलाया बचपन में ,
यह शक्ति उसी से पायी है
जबसे तेरा आँचल छूटा,हम हँसना अम्मा भूल गए,
हम अब भी आंसू भरे,तुझे टकटकी लगाए बैठे हैं !
कैसे अपनों ने घात किया ?
कैसे अपनों ने घात किया ?
किसने ये जख्म,लगाये हैं !
कैसें टूटे , रिश्ते नाते ,
कैसे ये दर्द छिपाए हैं !
कैसे तेरे बिन दिन बीते , यह तुम्हें बताने का दिल है !
कैसे तेरे बिन दिन बीते , यह तुम्हें बताने का दिल है !
ममता मिलने की याद लिए,बस आस लगाये बैठे हैं !
कितना शिवजी से लड़ता था?
छीने क्यों तुमने ? माँ, पापा
भोले से नफरत करता था !
क्यों मेरा मस्तक झुके वहां, जिसने माँ की ऊँगली छीनी !
मंदिर के द्वारे बचपन से, हम गुस्सा होकर बैठे हैं !
एक दिन सपने में तुम जैसी,
कुछ देर बैठकर चली गयी ,
हम पूरी रात जाग कर माँ ,
बस तुझे याद कर रोये थे !
इस दुनिया से लड़ते लड़ते , तेरा बेटा थक कर चूर हुआ !
तेरी गोद में सर रख सो जाएँ, इस चाह को लेकर बैठे हैं !
एक दिन ईश्वर से छुट्टी ले
एक दिन ईश्वर से छुट्टी ले
कुछ साथ बिताने आ जाओ
एक दिन बेटे की चोटों को
खुद अपने आप देख जाओ
कैसे लोगों संग दिन बीते ? कुछ दर्द बताने बैठे हैं !
हम आँख में आंसू भरे, तुझे कुछ याद दिलाने बैठे हैं !
12 comments:
जीवन में माँ के महत्व को स्थापित करती एक भावुक काव्य रचना।
माँ के लिए जो भी कहा जाय कम ही है...।
बहुत भावभरी कविता मां जैसी ।
आज प्रात: आपकी इस मर्मस्पर्शी कविता के साथ मेरा दिन प्रारंभ हुआ. मन को छू गया.
सस्नेह -- शास्त्री
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है.
हर महीने कम से कम एक हिन्दी पुस्तक खरीदें !
मैं और आप नहीं तो क्या विदेशी लोग हिन्दी
लेखकों को प्रोत्साहन देंगे ??
http://www.Sarathi.info
सुंदर रचना....
बहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना....
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
bahut achchi rachana
एक दिन सपने में तुम जैसी,
कुछ देर बैठकर चली गयी ,
हम पूरी रात जाग कर माँ ,
बस तुझे याद कर रोये थे !
इस दुनिया से लड़ते लड़ते , तेरा बेटा थक कर चूर हुआ !
तेरी गोद में सर रख सो जाएँ, इस चाह को लेकर बैठे हैं !
मां के लिये सभी की भावनाओं को अभिव्यक्त करती रचना, शुभकामनाएं.
रामराम.
माता-पिता की बात ही कुछ अलग होती है, उनका स्थान जीवन में अद्वितीय होता है, उनकी कमी का अहसास सदा खलता है....बहुत अच्छी कविता आपकी...हृदय भर आया!!
आपको ये जानकर अत्यधिक प्रसन्नता होगी की ब्लॉग जगत में एक नई ब्लॉग डायरेक्टरी डायरेक्टरी शुरू हुई है। जिसका नाम Hindi Blog`s Reader , हिंदी ब्लाग रीडर है।
जिसमें आपके ब्लॉग को बहुलेखक ब्लॉग्स की श्रेणी में शामिल किया गया है। सादर ..... आभार।।
माँ की कोई तुलना नहीं है
भावपूर्ण कविता
बधाई
REVERSE YOUR AGE 25 years ago ,BE YOUNG physically&mentally.from HALDI RASAYAN & NIRGUNDI RASAYAN.-www.merasamast.in (only aayurwed)
बहुत सुंदर रचना....
कुछ और माँ की रचनाएँ पढ़िए
http://www.aashnamagazine.com/
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