Saturday, February 7, 2009

माँ के लिए प्रार्थना... एक दर्द भरा गीत!

आज मुझे एक बिशिष्ट कवि सम्मेलन में जाने का मौका मिला। विशिष्ट इसलिए कि यह नामी-गिरामी, स्थापित, प्रसिद्ध और पूर्णकालिक कवियों का मंच नहीं था। बल्कि यह सरकारी सेवा कर रहे अधिकारियों की काव्य-प्रतिभा को सामने लाने का एक प्रयास था।

इलाहाबाद स्थित उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र के सभागार में आयोजित इस ‘प्रशासनिक कवि सम्मेलन’ में जाने से पहले मुझे केवल उन अधिकारियों का नाम पता था। एक-दो को छो्ड़कर उनकी कवित्व क्षमता के बारे में मैं बिलकुल अन्जान था। उत्सुकता वश वहाँ जाना एक दुर्लभ सुख दे गया। लगभग तीन घण्टे तक हम अनेक काव्य रसों से सराबोर होते रहे।

लेकिन जिस एक गीत ने हमारी आँखें भिगो दीं उसे सुनाया इस कार्यक्रम के संयोजक और युवा गीतकार व शायर इमरान ‘प्रतापगढ़ी’ ने। इस नवयुवक की प्रतिभा विलक्षण है। यूँ तो इमरान ने अपने लिए संचालक की भूमिका चुनी थी और मंच को अपने वाक‌चातुर्य से जीवन्त रखा लेकिन श्रोताओं की जिद पर उसने जब एक बच्चे द्वारा अपनी बीमार माँ को बचा लेने के लिए की जा रही प्रार्थना को शब्द और स्वर दिया तो खचाखच भरा हाल नम आँखो के साथ तालियाँ बजाता रहा।

मैने उस दृश्य को अपने मोबाइल फोन के वीडियो कैमरे में उतारने की कोशिश की है। शोर शराबे के बीच ऑडियो क्वालिटी बहुत अच्छी तो नहीं है, लेकिन थोड़ा धैर्य से सुनने पर निश्चित ही मेरी तरह आपभी सिहर उठेंगे

इमरान ने गीत से पहले एक शेर पढ़ा:

तेरी हर बात चलकर यूँ भी मेरे जी से आती है,

कि जैसे याद की खुशबू किसी हिचकी से आती है।

मुझे आती है तेरे बदन से ऐ माँ वही खुशबू,

जो एक पूजा के दीपक में पिगलते घी से आती है॥

ये रहा गीत का वीडियो मोबाइल कैमरे से:


आपकी सुविधा के लिए इस मार्मिक गीत के शब्द यहाँ प्रस्तुत हैं:

खुदा मुझसे माँ की मोहब्बत न छीने
अगर छीनना है जहाँ छीन ले वो
जमी छीन ले आसमाँ छीन ले वो
मेरे सर की बस एक ये छत न छीने
खुदा मुझसे माँ की मोहब्बत न छीने

अगर माँ न होती जमीं पर न आता
जो आँचल न होता कहाँ सर छुपाता
मेरा लाल कहकर बुलाती है मुझको
कि खुद भूखी रहकर खिलाती है मुझको
कि होंठों कि मेरी हँसी छीन ले वो
कि गम देदे हर एक खुशी छीन ले वो
यही एक बस मुझसे दौलत न छीने
खुदा मुझसे माँ की मोहब्बत न छीने

मुझे पाला पोसा बड़ा कर दिया है
कि पैरों पे अपने खड़ा कर दिया है
कभी जब अँधेरों ने मुझको सताया
तो माँ की दुआ ने ही रस्ता दिखाया
ये दामन मेरा चाहे नम कर दे जितना
वो बस आज मुझ पर करम कर दे जितना
जो मुझ पर किया है इनायत न छीने
खुदा मुझसे माँ की मोहब्बत न छीने

अगर माँ का सर पर नहीं हाँथ होगा
तो फ़िर कौन है जो मेरे साथ होगा
कहाँ मुँह छुपाकर के रोया करूंगा
तो फ़िर किसकी गोदी में सोया करूंगा
मेरे सामने माँ की जाँ छीनकर के
मेरी खुशनुमा दासताँ छीन कर के
मेरा जोश और मेरी हिम्मत न छीने
खुदा मुझसे माँ की मोहब्बत न छीने

इमरान ‘प्रतापगढ़ी’

प्रस्तुति: सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी

19 comments:

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर लगी कविता,
धन्यवाद

प्रताप नारायण सिंह (Pratap Narayan Singh) said...

पढ़कर तो अच्छा लगा ही...सुनना और भी ज्यादा सुखद लगा.

* મારી રચના * said...

bahut hi sunad aur dard bhari kavita...shukriya

Ashish Gupta said...

bahut hi marmsparshi aur bhavnatmak kavita thi yah. hamare saath baantne ke liye dhanyavad.

रज़िया "राज़" said...

तेरी हर बात चलकर यूँ भी मेरे जी से आती है, कि जैसे याद की खुशबू किसी हिचकी से आती है। मुझे आती है तेरे बदन से ऐ माँ वही खुशबू, जो एक पूजा के दीपक में पिगलते घी से आती है॥
sach kaha hai "MAA" ke liye

Asha Joglekar said...
This comment has been removed by the author.
Asha Joglekar said...

बहुत सुंदर और हार्दिक प्रार्थना है यह अवश्य सुनी जायेगी ।

कडुवासच said...

मुझे आती है तेरे बदन से ऐ माँ वही खुशबू,
जो एक पूजा के दीपक में पिगलते घी से आती है॥
... अदभुत, मार्मिक, बेजोड अभिव्यक्ति है।

Anonymous said...

bakayi me ankhe nam kar di.

aapne apne mobile ka sadupyog achchhi tarah se kiya hai.

------------------------"VISHAL"

Satish Saxena said...

बड़ा प्यारा गीत है , आपका शुक्रिया त्रिपाठी जी ! गज़ब की अभिव्यक्ति जिसे भुलाना आसान नही !

amitabhpriyadarshi said...

yoon hi aadat hai blogs par chakallas ki. aj bhee bhatak hi raha tha ki thithak pada. aapake blog maa par maa se judi kai abhivyaktiyon ne jhakjhor diya.
sach bahut marmik .

अनिल कान्त said...

ultimate ---superb ...the best one ever

Arvind Mishra said...

इमरान -इस प्रखर व्यक्तित्व और ओजस्वी स्वर से परिचित कराने का आभार !

संगीता पुरी said...

बहुत सुंदर लगा यह गीत .. धन्‍यवाद।

RAJ SINH said...

सिद्धार्थ जी इम्रान से कोयी सम्पर्क सम्भव है ?

VINAY CHOUDHARY said...

मैंने आज ही आपका ब्लॉग देखा, और ये कविता पढ़ी, बहुत ही सुंदर, बहुत ही मार्मिक ढंग से माँ की बिवेचना की गयी है, माँ का अर्थ ही अनमोल है. माँ के बिना कुछ नहीं...
धन्यवाद...!

jr... said...

ati sundar...
Imran ke is soch aur kavita ko standing salute.

aur aapka bahat bahat shukriya.

dhanyavad.

Prem said...

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति इम्रंजी की माँ के लिए हमारी लाखों दुयाएँ

Unknown said...

So cute very nice kuch bolne ko shabd nahi h.................