आज मुझे एक बिशिष्ट कवि सम्मेलन में जाने का मौका मिला। विशिष्ट इसलिए कि यह नामी-गिरामी, स्थापित, प्रसिद्ध और पूर्णकालिक कवियों का मंच नहीं था। बल्कि यह सरकारी सेवा कर रहे अधिकारियों की काव्य-प्रतिभा को सामने लाने का एक प्रयास था।
इलाहाबाद स्थित उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र के सभागार में आयोजित इस ‘प्रशासनिक कवि सम्मेलन’ में जाने से पहले मुझे केवल उन अधिकारियों का नाम पता था। एक-दो को छो्ड़कर उनकी कवित्व क्षमता के बारे में मैं बिलकुल अन्जान था। उत्सुकता वश वहाँ जाना एक दुर्लभ सुख दे गया। लगभग तीन घण्टे तक हम अनेक काव्य रसों से सराबोर होते रहे।
लेकिन जिस एक गीत ने हमारी आँखें भिगो दीं उसे सुनाया इस कार्यक्रम के संयोजक और युवा गीतकार व शायर इमरान ‘प्रतापगढ़ी’ ने। इस नवयुवक की प्रतिभा विलक्षण है। यूँ तो इमरान ने अपने लिए संचालक की भूमिका चुनी थी और मंच को अपने वाकचातुर्य से जीवन्त रखा लेकिन श्रोताओं की जिद पर उसने जब एक बच्चे द्वारा अपनी बीमार माँ को बचा लेने के लिए की जा रही प्रार्थना को शब्द और स्वर दिया तो खचाखच भरा हाल नम आँखो के साथ तालियाँ बजाता रहा।
मैने उस दृश्य को अपने मोबाइल फोन के वीडियो कैमरे में उतारने की कोशिश की है। शोर शराबे के बीच ऑडियो क्वालिटी बहुत अच्छी तो नहीं है, लेकिन थोड़ा धैर्य से सुनने पर निश्चित ही मेरी तरह आपभी सिहर उठेंगे
इमरान ने गीत से पहले एक शेर पढ़ा:
कि जैसे याद की खुशबू किसी हिचकी से आती है।
मुझे आती है तेरे बदन से ऐ माँ वही खुशबू,
जो एक पूजा के दीपक में पिगलते घी से आती है॥
ये रहा गीत का वीडियो मोबाइल कैमरे से:
आपकी सुविधा के लिए इस मार्मिक गीत के शब्द यहाँ प्रस्तुत हैं:
खुदा मुझसे माँ की मोहब्बत न छीने इमरान ‘प्रतापगढ़ी’ |
प्रस्तुति: सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
19 comments:
बहुत सुंदर लगी कविता,
धन्यवाद
पढ़कर तो अच्छा लगा ही...सुनना और भी ज्यादा सुखद लगा.
bahut hi sunad aur dard bhari kavita...shukriya
bahut hi marmsparshi aur bhavnatmak kavita thi yah. hamare saath baantne ke liye dhanyavad.
तेरी हर बात चलकर यूँ भी मेरे जी से आती है, कि जैसे याद की खुशबू किसी हिचकी से आती है। मुझे आती है तेरे बदन से ऐ माँ वही खुशबू, जो एक पूजा के दीपक में पिगलते घी से आती है॥
sach kaha hai "MAA" ke liye
बहुत सुंदर और हार्दिक प्रार्थना है यह अवश्य सुनी जायेगी ।
मुझे आती है तेरे बदन से ऐ माँ वही खुशबू,
जो एक पूजा के दीपक में पिगलते घी से आती है॥
... अदभुत, मार्मिक, बेजोड अभिव्यक्ति है।
bakayi me ankhe nam kar di.
aapne apne mobile ka sadupyog achchhi tarah se kiya hai.
------------------------"VISHAL"
बड़ा प्यारा गीत है , आपका शुक्रिया त्रिपाठी जी ! गज़ब की अभिव्यक्ति जिसे भुलाना आसान नही !
yoon hi aadat hai blogs par chakallas ki. aj bhee bhatak hi raha tha ki thithak pada. aapake blog maa par maa se judi kai abhivyaktiyon ne jhakjhor diya.
sach bahut marmik .
ultimate ---superb ...the best one ever
इमरान -इस प्रखर व्यक्तित्व और ओजस्वी स्वर से परिचित कराने का आभार !
बहुत सुंदर लगा यह गीत .. धन्यवाद।
सिद्धार्थ जी इम्रान से कोयी सम्पर्क सम्भव है ?
मैंने आज ही आपका ब्लॉग देखा, और ये कविता पढ़ी, बहुत ही सुंदर, बहुत ही मार्मिक ढंग से माँ की बिवेचना की गयी है, माँ का अर्थ ही अनमोल है. माँ के बिना कुछ नहीं...
धन्यवाद...!
ati sundar...
Imran ke is soch aur kavita ko standing salute.
aur aapka bahat bahat shukriya.
dhanyavad.
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति इम्रंजी की माँ के लिए हमारी लाखों दुयाएँ
So cute very nice kuch bolne ko shabd nahi h.................
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